विलक्षण व्यक्तित्व के स्वामी थे स्मृति शेष पुष्पेंद्र वर्णवाल जीI

 विलक्षण व्यक्तित्व के स्वामी थे स्मृति शेष पुष्पेंद्र वर्णवाल जीI

-----------------------------------------

स्मृति शेष आदरणीय पुष्पेंद्र वर्णवाल जी का मुझसे परिचय 2018 में हुआ था I वह साहित्यिक मुरादाबाद में शामिल हुए थे, किंतु उनके व्हाट्सएप पर उनका नाम उमेशपाल वर्णवाल लिखा था I एक बार साहित्यिक मुरादाबाद पर ही मेरी एक रचना पर उनका अच्छा सा कमेंट आया, मैंने भी धन्यवाद लिख दिया, क्योंकि उमेशपाल वर्णवाल नाम से मैं उन्हें पहचान नहीं सका था I फिर उनका फोन आया: मैं पुष्पेंद्र वर्णवाल हूँ, मैंने तुरंत प्रणाम किया और कहा आदरणीय आपको कौन नहीं जानता, हाँ मैं आपके दूसरे नाम से नहीं जानता था, बोले आप अच्छा लिख रहे हैं, कब से लिख रहे हैं, मैंने भी  उन्हें बता दिया कि वर्ष 84 से लिख रहा हूँ किंतु 87 के बाद व्यवधान आ गया और सेवानिवृत्ति के बाद अब 2016 से पुन: सक्रिय हुआ हूँ , मुरादाबाद में सहजयोग का भी अगुआ रहा हूँ, इस पर उन्होंने कहा आपकी रचना में आपकी आध्यात्मिकता का प्रभाव हैI

वह रचना थी

 'तन भी नश्वर मन भी नश्वर, सोच जरा फिर तेरा क्या है'

फिर उन्होंने अपने आध्यात्मिक व्यक्तित्व का भी परिचय दिया, और बताया कि वर्तमान में मैं असाध्य बीमारी के कारण अस्वस्थ चल रहा हूँ किंतु मैं इससे पार पा लूंगा और 120 वर्ष की आयु प्राप्त करूंगाI

उन्होंने अपनी प्रकाशित पुस्तकों, काव्य संग्रहों, महाकाव्य, खंड काव्य के प्रकाशित होने के विषय में भी बताया, और यह भी बताया कि उनके एक महाकाव्य पर जो अरिमर्दन के चरित्र के संदर्भ में है, उस पर भी कार्य चल रहा है किंतु अस्वस्थता के चलते प्रकाशित नहीं हो पा रहा है. जिसे उन्होंने मुरादाबाद के ही एक वरिष्ठ साहित्यकार के पास होना बताया था, जिनका नाम अब मुझे याद नहीं I

इसके बाद विजयादशमी के अवसर पर मैंने एक रचना शेयर की थी 

'रात स्वप्न में रावण आया' इसके संदर्भ में भी उनका फोन आया था और उन्होंने उस रचना की भी प्रशंसा की और यह भी कहा कि इसमें आपने बार बार जो टेक लगायी है, उसे हटा दो, मैंने भी तुरंत उसमें संशोधन कर लिया,

ऐसे ही लगभग दो तीन बार और उनसे बात हुई; प्रत्येक बार अत्यंत स्नेहपूर्ण वार्तालाप हुआ और मेरी उनसे भेंट करने की इच्छा अत्यधिक बलवती हो गयी थी किंतु वह और अस्वस्थ हो गये थे और संभल चले गये थे, वहाँ उनका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया और 04 जनवरी 2019 को वह कुघड़ी आ गयी जिस दिन वह इहलोक छोड़कर परलोक गमन कर गये I

उनके साहित्यिक कृतित्व पर तो मैं स्वयं को इस योग्य नहीं समझता कि समीक्षा कर सकूं, किंतु उनके आध्यात्मिक व्यक्तित्व और उसपर उनके दृढ़ विश्वास को मैं नमन करता हूँI आदरणीय रवि प्रकाश जी ने भी अपने लेख में इस तथ्य का जिक्र किया है I यह मुरादाबाद के हिन्दी साहित्य जगत का दुर्भाग्य ही है कि असमय हमने उनको खो दिया I

हम सभी हिन्दी साहित्यकारों का दायित्व है कि उनके अप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित करवाया जाये, विशेष तौर पर उनके अरिमर्दन महाकाव्य को प्रकाशित कराया जाये ( वो जिन साहित्यकार के पास हो वह ही प्रयास करें)

इन्हीं शब्दों के साथ श्री वर्णवाल जी की स्मृतियों को शत शत नमन करता हूँ I

साथ ही साहित्यिक मुरादाबाद के समूह प्रशासक श्री मनोज रस्तोगी जी का भी आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने  उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित यह विशेष कार्यक्रम आयोजित किया तथा चर्चा व समीक्षा हेतु उनका साहित्य पढ़ने को उपलब्ध कराया I

इन्हीं शब्दों के साथ अपनी बात समाप्त करता हूँ I


श्रीकृष्ण शुक्ल,

MMIG 69,

रामगंगा विहार,

मुरादाबाद उ.प्र.

भारत

Comments

Popular posts from this blog

आठ फरवरी को किसकी होगी दिल्ली।

ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I

होली पर मुंह काला कर दिया