गृहस्थी का मनोविज्ञान
गृहस्थी का मनोविज्ञान
सुनो जी, आज मेरे सर में बहुत दर्द है, बुखार सा भी लग रहा है। आज मुझसे कुछ काम नहीं होगा, सुनीता बिस्तर पर लेटे लेटे श्याम बाबू से बोली।
अरे, कोई बात नहीं, तुम आराम करो, कहते हुए श्याम बाबू उठे, फटाफट चाय बनायी, टोस्टर में दो टोस्ट सेके और पत्नी के पास आ कर बोले : लो उठो, चाय पीलो, थोड़ा आराम आ जायेगा। दोनों ने मिलकर चाय पी। चाय पीकर श्याम बाबू ने पत्नी का ब्लड प्रेशर व बुखार नापा; सब कुछ नार्मल था। श्याम बाबू समझ गये कि अकेलेपन और हर वक्त काम करने के कारण सुनीता को मानसिक थकान है। कोरोना के कारण पिछले वर्ष से कहीं बाहर भी नहीं जा सके हैं, इसी कारण स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन आ गया है। फिर भी प्रकट में वह बोले बुखार तो नहीं है, ब्लड प्रेशर भी नार्मल है, ऐसा करो एक क्रोसिन खा लो। दस बजे के बाद डाक्टर साहब से बात करके हाल बताकर दवाई लिखवा लेंगे, और हाँ, खाने की चिंता तुम मत करो, पंडित जी के होटल से स्पेशल थाली मंगवा लेंगे, एक थाली में हम दोनों का काम चल जायेगा, कहते हुए वह पत्नी के पास ही बैठ गये और उसे क्रोसिन देकर आराम से लिटा दिया।
थोड़ी ही देर बाद सुनीता उठ गयी और काम करने लगी। श्याम बाबू बोले अरे तुम आराम करो, काम हो जायेगा, और हाँ, इधर आकर बैठो, डाक्टर साहब से भी तो बात करनी है, उन्हें पूरा हाल बता देना। दवाई मैं ले आऊँगा, दो तीन दिन में ठीक हो जाओगी।
ना जी, अब मैं ठीक हूँ, मुझे नहीं बात करनी, वो मुआ डाक्टर पाँच सौ रुपये पहले जमा करायेगा और दवाईया भी पांच छह सौ की लिख देगा, और खून भी टैस्ट करायेगा। फालतू में हजार बारह सौ की चपत लग जायेगी। कहते हुए सुनीता रोज की तरह काम में लग गयी। श्याम बाबू ने भी संतोष की सांस ली और रोज की तरह अखबार लेकर बैठ गये।
संयोग से अखबार का जो पृष्ठ सामने था उस पर एक हैडलाइन थी,: बुढ़ापा और गृहस्थी का मनोविज्ञान'।
श्यामबाबू बुदबुदाये, ये क्या मनोविज्ञान सिखायेंगे, अरे गृहस्थी का मनोविज्ञान तो अनुभव से ही आता है, और अनुभव होते होते बुढ़ापा भी आ ही जाता है।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद।
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