स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1924 पर
नागरिक समाचार साप्ताहिक के स्वतंत्रता दिवस अंक में मुख पृष्ठ पर छपा मेरा आलेख.
स्वतंत्रता मिले बीत गए सत्तर साल
फिर भी बुरा है मेरे देश का हाल
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श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद
आज हम अपने देश की स्वतंत्रता की सत्तरवीं वर्षगाँठ मना रहे हैं. आज ही के दिन सन् १९४७ में हमारा देश स्वतंत्र हुआ था. अवाम में खुशी की लहर छा गई थी, लोगों में उम्मीद जागी थी कि अब अपना शासन होगा, जिसमें जिंदगी में सहूलियतें आएंगी, जुल्म समाप्त हो जाएंगे.
आज मुझे एक व्हाट्स ऐप ग्रुप पर सत्तर्र वर्ष पूर्व के दैनिक हिंदुस्तान का चित्र मिला.
उसमें प्रमुखता से दो शीर्षक छपे धे.
पहला:
शताब्दियों की दासता के बाद भारत में स्वतंत्रता का मंगल प्रभात:
बापू की चिर तपस्या सफल
दूसरा:
जबतक जनता की आँख में एक भी आँसू की बूँद होगी हमारा काम पूरा नहीं होगा. नेहरू
लेकिन आज आजादी के सत्तर साल बाद भी जब हम समग्रता में देखते हैं तब पाते हैं कि आज भी हमारे समाज में बहुत विषमताएं व्याप्त हैं.
जाति और धर्म के नाम पर वैमनस्यता हद से ज्यादा बढ़ गई है. अमीर और गरीब के बीच की खाई भी बहुत गहरी हो चुकी है.
सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी ने राजनीति और प्रशासन में अपनी जड़ें जमा ली हैं. और तो और गुंडों, माफियाओं, बाहुबलियों का राजनीति में वर्चस्व हो गया है.
स्थिति यह हो गई है कि एक आम आदमी आज सरकार से किसी सहायता की आशा नहीं करता. वह जो थोड़ा बहुत कमाता है उसी में गुजारा करके संतुष्ट है, बशर्ते कोई आपदा न आए, कोई सदस्य.बीमार न पड़ जाए, क्योंकि इन परेशानियों से निपटने के लिए उसके संसाधन पर्याप्त नहीं होते.
ऐसे मौकों पर अक्सर उसे अपनी जमीन, मकान दुकान आदि तक बेचने पड़ जाते हैं, और पूरा. परिवार सड़क पर आ जाता है.
इन परिस्थितियों में सोचने वाली बात.यह है कि आजादी के सत्तर साल बाद भी देश के अंदर आम आदमी के जीवन में अपेक्षित सुधार क्यों नहीं हुआ. किसी भी व्यक्ति की तीन महत्वपूर्ण जरूरतें होती हैं ः रोटी, कपड़ा और मकान.
बाकी सभी जरूरतें दूसरे नंबर पर आती हैं. हाँ इसके अतिरिक्त सभी को शिक्षा और स्वास्थ्य भी सुगमता से सुलभ हो यह भी आवश्यक है
ऐसा नहीं है कि सरकारों का इस दिशा में कोई प्रयास नहीं हुआ. समय समय पर सरकारों ने इस.दिशा में योजनाओं बनाईं, लेकिन आम आदमी की स्थिति जस की तस रही.
हमारे देश में संसाधनों की कोई कमी नहीं है, सरकार के पास विभिन्न करों के माध्यम से धन भी पर्याप्त आता है, सरकारें गरीबों के लिए विभिन्न योजनाओं में पर्याप्त धन का आबंटन भी करती हैं, लेकिन आम आदमी की स्थिति सुधरने का नाम नहीं लेती.
इस स्थिति के पीछे सबसे प्रमुख कारण है योजनाओं के क्रियान्वयन में आने वाली विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियों में व्याप्त भ्रष्टाचार.
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने तो सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि केन्द्र से.जो एक रुपया चलता है वह लाभार्थी तक पहुँचते पहुँचते सोलह पैसे रह जाते हैं.
वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी ने इस समस्या के तोड़ के रूप में जन धन खाते खुलवाए और तमाम भुगतान डिजिटल माध्यम से सीधे खातों में जाने लगा.
लेकिन अभी भी संपूर्ण क्रियान्वयन में बहुत छिद्र हैं.
सर्वप्रथम तो योजना के लाभ के पात्रों का चयन.
अक्सर होता यह है कि तमाम पात्र व्यक्ति छूट जाते हैं, या छोड़ दिए जाते हैं और अपात्र व्यक्ति योजना का लाभ उठा लेते हैं
यही कारण है कि आज एक तो क्या करोड़ों आँखों में आँसू हैं.
इन सारी बातों की जड़ में केवल एक ही तथ्य कारक है, वह है सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार.
प्रसन्नता की बात यह है कि वर्तमान केंद्र सरकार में भ्रष्टाचार या घोटाले का एक भी मामला सामने नहीं आया है.
हमारे प्रधानमंत्री जी तथा कुछ अन्य मंत्री भी बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं, लेकिन सरकारी दफ्तरों में और संबंधित एजेंसियों में अभी भी भ्रष्टाचार और दलालों का बोलबाला है
इससे कैसे निपटा जाए. सरकार अकेली इस से नहीं निपट सकती. इसके विनाश के लिए तो हम सभी को(जनता को) संकल्प बद्ध होना पड़ेगा. चाहे काम हो या न हो, हम रिश्वत नहीं देंगे.
हम सरकारी दफ्तरों में यदि गलत आचरण देखेंगे तो निर्भीकता से प्रतिकार करेंगे व सरकार तक इसकी शिकायत करेंगे.
जैसे प्रधानमंत्री जी कहते हैं, न खाऊँगा न खाने दूंगा, ऐसे ही हम प्रण कर लें कि अपने सामने कुछ गलत नहीं होने देंगे. भले ही इसके लिए हमें छोटे छोटे संगठन बनाने पड़ें.
इसके अतिरिक्त सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने के जो पात्र हैं, उनका चयन सही हो, कोई पात्र न छूटे इसका भी ध्यान इन सामाजिक संस्थाओं द्वारा रखा जाए.
जिस दिन जन जन में ये जागरूकता.हो जाएगी, भ्रष्टाचार स्वतः समाप्त होने लगेगा, और तब ही हमें असली स्वतंत्रता की अनुभूति होगी
आइए स्वतंत्रता की सत्तरवीं वर्षगाँठ को हम नए उत्साह और भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के निश्चय.के साथ मनाएं.
जय.हिंद, जय भारत.
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