कविता या चुटकुले

 एक चिंतन मेरी ओर से भी:


कविता या चुटकुले


एक दिन एक कवि सम्मेलन में एक श्रोता 

खड़ा होकर चिल्लाया

ये क्या सुनाते हो आप, 

ये कविता नहीं चुटकुले हैं,

कल ही के अखबार में छपे हैं,

उन्हीं चुटकुलों पर मुलम्मा चढ़ाते हो,

और शान से मंच पर सुनाते हो,

और लिफाफा भी तगड़ा ले जाते हो,

जरा तो शरम करो यार

कुछ तो ऐसा सुनाओ जिसमें राग रंग रस छंद नजर आये

कविता में कुछ तो कवित्व नजर आये

मैं थोड़ा सकपकाया, फिर चिल्लाया,

जी हाँ, आप सच कह रहे हो,

हम चुटकुले सुनाते हैं, 

लेकिन भैय्ये सच तो यह भी है कि,

आप भी तो चुटकुले ही सुनना चाहते हो,

एक बार नहीं बार बार सुनते हो, 

वन्स मोर वन्स मोर करते हो,

और यदि हम गीत गज़ल या मुक्तक सुनाते हैं, 

तो आप ही हमें हूूट भी करते हो,

ऐसा नहीं है कि हम गीत गजल रस छंद नहीं लिखते

हमारे संकलन तो देखो,

उनमें तो यही सब हैं दिखते,

यहाँ तो हम आपका विशुद्ध मनोरंजन करते हैं, 

माल वही बिकता है जिसके खरीदार होते हैं,

इसीलिए हम भी चुटकुले सुनाते हैं,

किंतु इन्हीं चुटकुलों के बीच में 

आपकी सोई चेतना को भी जगाते हैं,

और भैय्ये निश्चिंत रहो,

जिस दिन ये सोई चेतना जाग जायेगी,

मंचों पर चुटकुले नहीं,

विशुद्ध कविता नज़र आयेगी,


श्रीकृष्ण शुक्ल, 

MMIG - 69,

रामगंगा विहार, मुरादाबाद  I

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