दर्द और पीड़ा के गायक थे श्री राम अवतार त्यागी
दर्द और पीड़ा के गायक थे श्री राम अवतार त्यागी
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मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं ,
यह पंक्तियां हमने विभिन्न अवसरों पर न जाने कितनी बार सुनीं होंगी, यहाँ तक कि अन्य देशभक्ति गीतों की तरह ही, ये पंक्तियां भी हमें कंठस्थ हो गयीं, लेकिन इन पंक्तियों के रचयिता स्मृति शेष श्री राम अवतार त्यागी जी हमारे ही मंडल में ग्राम कुरकावली, सम्भल के रहनेवाले थे, यह तथ्य मुझे साहित्यिक मुरादाबाद के पटल पर श्री राम अवतार त्यागी जी के संबंध में यदा कदा चर्चाओं में ही ज्ञात हुआ I
श्री राम अवतार त्यागी जी के बारे में साहित्यिक मुरादाबाद पटल पर ही उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चल रहे कार्यक्रम में विभिन्न साहित्यकारों के विचारों को पढ़कर उनके विराट व्यक्तित्व का परिचय हुआ I
साहित्यिक मुरादाबाद पटल पर ही उनकी तमाम रचनाएं भी पढ़ने को मिलीं जिनसे उनके कृतित्व का आंशिक परिचय मिला, ये थोड़ी सी रचनाएं ही पर्याप्त थीं उनकी रचनाधर्मिता का परिचय कराने में I
पटल पर उनकी जितनी रचनाएं पढ़ने को मिलीं वह उनकी उत्कृष्ट सृजन क्षमता को दर्शाती हैं, मूलत: वह गीतकार थे किंतु गीतों के अतिरिक्त, गज़लों का भी सृजन उन्होंने किया है, कुछ मुक्तक भी पटल पर पढ़ने को मिले I
श्री राम अवतार त्यागी जी की रचनाओं को पढ़कर ही आभास हो जाता है कि वह सामाजिक परिदृष्य, जिंदगी की विषमताओं, व्यवस्था की विसंगतियों, सामाजिक ताने बाने और मानवीय स्वभाव पर बड़ी पैनी नजर रखते थे, और अपनी रचनाओं में बड़ी बेबाकी से इन्हें उजागर करते थे I
उनकी रचनाओं में उनकी खुद्दारी और स्वाभिमान की स्पष्ट झलक मिलती है, स्वाभिमान के आगे व्यवस्था से समझौता करना उन्का स्वभाव नहीं है, और उनके स्वभाव की यही विशेषता उनकी रचनाधर्मिता में मिलती है I उनकी ये पंक्तियाँ इस तथ्य को प्रमाणित करती हैं:
मेरे पीछे इसीलिए तो धोकर हाथ पड़ी है दुनिया,
मैंने किसी नुमाइश घर में सजने से इन्कार कर दिया I
उन्हीं की एक गज़ल का यह शेर भी देखें:
कोई खुद्दार दीपक जले किसलिये
जब सियासत अँधेरों का घर हो गयीI
साथ ही एक खुद्दार आदमी की अहमियत जताते हुए वह व्यवस्था को आइना भी दिखाते हैं:
इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ,
मत बुझाओ,
रोशनी जब मिलेगी, मुझसे मिलेगी
उनकी रचनाओं में विरोध के साथ साथ दर्द और पीड़ा को भी बड़ी सहजता से व्यक्त किया गया है:
मैं हूँ दर्द आदमी कब हूँ,
सह भी लिया दर्द यदि मैंने,
अपने संबंधी सपनों का,
बोलो क्या जबाब दूंगा मैं,
चादर के अबोध प्रश्नों का
और
मैं दर्द भरे गीतों का गायक हूँ,
मेरी बोली कितने में तोलोगे
फिल्म जिंदगी और तूफान का उनका लिखा हुआ यह गीत भी इसी दर्द को बखूबी व्यक्त करता हैI
एक हसरत थी के आँचल का मुझे प्यार मिले,
मैंने मंजिल को तलाशा मुझे बाजार मिले,
जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है
ऐसे कालजयी गीतों के रचनाकार श्री राम अवतार त्यागी जी की स्मृतियों को मैं बार बार नमन करता हूँ, और साहित्यिक मुरादाबाद के प्रशासक श्री मनोज रस्तोगी जी का भी बहुत आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने श्री त्यागी जी से संबंधित इतनी महत्वपूर्ण सामग्री पटल पर उपलब्ध कराई, और उनके सद्प्रयासों से हमें श्री त्यागी जी के विषय इतनी अधिक जानकारी मिल सकी I
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG -69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद I
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