परिस्थितिजन्य व्यंग में हास्य उत्पन्न करनेवाले उत्कृष्ट कवि थे हुल्लड़ मुरादाबादी जी
परिस्थितिजन्य व्यंग में हास्य उत्पन्न करनेवाले उत्कृष्ट कवि थे हुल्लड़ मुरादाबादी जी
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दूसरों को हँसाना एक पुण्य कार्य है I खुद कष्ट सहकर दूसरों को कहकहे बांटना बहुत बड़ी तपस्या है, साधना है,
ये शब्द हुल्लड़ जी ने भाई पुनीत रस्तोगी को संबोधित पत्र में लिखे थे I इन शब्दों से ही पता चलता है कि वह अपनी रचनाधर्मिता तथा हास्य व्यंग लेखन के महत्व व उसकी गुणवत्ता के प्रति कितने समर्पित थे I
हुल्लड़ मुरादाबादी जी से मेरा व्यक्तिगत परिचय मुरादाबाद के एक कवि सम्मेलन में ही हुआ था जहाँ मैं श्रोता की हैसियत से गया था, वस्तुतः मेरी काव्य यात्रा तब तक शुरु भी नहीं हुई थीI
वह एक छोटी सी मुलाकात थी जो एक प्रशंसक और उसके चहेते कवि के बीच थीI किसी विशेष संवाद का अवसर ही नहीं थाI संभवतः यह 1971 या 72 का काल थाI उसी समय हमारे सम्माननीय मक्खन जी का भी काव्य क्षेत्र में उदय हो चुका था I
तदुपरान्त फरवरी 1973 में, मैं बैंक की नियुक्ति पर मुरादाबाद से बाहर चला गया था I इधर हुल्लड़ जी मुंबई पहुँच गये थे I उस समय दूरदर्शन पर कवि सम्मेलनों का हमें बेताबी से इंतजार रहता था और उनमें भी हुल्लड़ मुरादाबादी जी की प्रस्तुति की प्रतीक्षा रहती थी I मैं हास्य कवियों में श्री गोपाल व्यास, काका हाथरसी, जी का बहुत मुरीद था, लेकिन जब एक बार हुल्लड़ जी को सुना तो उनका प्रशंसक हो गयाI उनका हास्य अधिकतर सामाजिक विषमताओं के कारण उत्पन्न परिस्थितियों से ही उपजता था I व्यंग तो तमाम रचनाकार लिखते हैं, मैं भी लिखने का प्रयास करता हूँ, लेकिन उनकी रचनाओं में व्यंग तो होता ही था, साथ ही साथ हास्य भी जबरदस्त होता था, ऊपर से उनका प्रस्तुतीकरण इस अंदाज में होता था कि श्रोता हँसे बिना नहीं रह सकता था I
जैसे उनकी रचना 'ग़रीब़दास के चार बेटे' को ही लें I उनकी ये प्रस्तुति मैंने संभवत:मुरादाबाद के ही एक कवि सम्मेलन में सुनी थी I
उसमें गरीब दास ने अपने तीनों बेटों के उच्च शिक्षित होने का विवरण बताया, बातचीत वहाँ तक भी रोचक थी लेकिन उससे आगे की कुछ पंक्तियों में, भरपूर व्यंग और व्यंग का पटाक्षेप परिस्थितिजन्य हास्य से होता है; आप भी देखें::
चौथे का दिमाग ज़रूरत से ज्यादा हाई है,
पढ़ लिख नहीं पाया, इसलिये नाई है,
हेयर कटिंग सैलून चलाता है,
अच्छों अच्छों की हज़ामत बनाता है
मैंने कहा ग़रीब दास जी, अपनी रैपुटेशन सम्हालिये,
इस नाई को घर से निकालिए,
आपने अपने तीन बेटों को तो खूब पढ़ाया,
लेकिन ये मखमल में टाट का पैबंद कहाँ से आया,
बोले निकाल तो दूँ, लेकिन आजकल ये अपने बहुत काम आ रहा है,
बाकी तीनों तो बेरोज़गार हैं,
घर का खर्चा तो यही चला रहा है.
एक और रचना देखें:
पूज्यनीय विष्णु भगवान,
क्षीरसागर, बैकुंठ धाम,
सादर प्रणाम.
लक्ष्मी जी को चरण वंदन,
बहुत बुरा हाल है,
जबसे धरती पर आया हूँ तबसे कर रहा हूँ क्रंदन
पिछत्तर रुपये का सवाल है,
मनीआर्डर से भिजवा दें,
एक महीने के लिये ही सही,
मेरी गरीबी हटा दें
रचना लंबी है, किंतु जब ये पत्र पोस्ट आफिस पहुँचा तो पोस्टल कर्मियों ने चंदा करके साठ रुपये भिजवाए, उससे आगे की कविता व्यवस्था पर चोट के साथ साथ हँसी का ठहाका लगाने को मजबूर करती है:
चार दिन बाद उत्तर आया
बहुत बहुत धन्यवाद भगवान
आप तो हैं करुणा निधान,
लेकिन ये पोस्ट आफिस वाले हैं बड़े बेईमान,
आपने तो पिछत्तर ही भेजे होंगे,
पंद्रह रुपये ये खा गये
बाकी के साठ मुझ तक आ गये.
नोट: प्रभु आइन्दा ड्राफ्ट भेजना
ऐसे ही कलियुग की जगह क्यू युग वाली कविता है जिसमें व्यंग तो है ही साथ ही जबरदस्त हास्य भी है:
कुतुबमीनार पर पहुँचकर जैसे ही हमने पाँव आगे बढ़ाया, पीछे से एक चिल्लाया,
लाइन में आइए,
पहले मेरा नंबर है
दो अक्टूबर से खड़ा हूँ,
आज चौदह नवंबर है I
ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने अतुकांत शैली में ही लिखा हो,
अतुकांत शैली तो उनकी विशेषता थी, साथ ही उन्होंने गीत, गज़लें और दोहे भी खूब लिखे, लेकिन इनमें भी उनका व्यंग मिश्रित हास्य प्रमुखता से पाया जाता है:
उनकी अलग अलग गज़लों के कुछ शेर देखें:
दुम हिलाता फिर रहा है चंद वोटों के लिये
इसको जब कुर्सी मिलेगी भेड़िया हो जायगा
हास्य कवियों द्वारा मंच पर चुटकुलेबाजी पर भी उन्होंने इस तरह लिखा:
गद्य में भी चुटकुले हैं, पद्य में भी चुटकुले
रो रहा है मंच पर ह्यूमर सटायर आजकल
नेताओं के ऊपर व्यंग करते हुए वह लिखते हैं:
संविधान भी इन्हें नमस्ते करता है,
खुद ही हैं कानून हमारे नेता जी
एक और देखें:
हर तरफ भेड़चाल है दद्दा
कुर्सियों का कमाल है दद्दा
पहले होता था दाल में काला
अब तो काले में दाल है दद्दा
ऐसा भी नहीं है कि हुल्लड़ जी ने सिर्फ हास्य व्यंग ही लिखा हो I उनके इन दोहों में सकारात्मक शिक्षा और संदेश तथा आध्यात्मिकता भी निहित है:
बहुत सफलता बुरी है, भेजा करे खराब
जो कांटों में खिला है, असली वही गुलाब
देरी कर दो क्रोध में, टल जाता है क्रोध
खुद अपनी ही आग में, जल जाता है क्रोध
जब तक मन में अहम है, गायब है भगवान
जिसने जाना स्वयं को वह खुद है भगवान
कवि संवेदनशील है, कवि में दया अपार
कवियों ने ही किया है, अश्रु कणों से प्यार
पटल पर उनके कुछ गीत भी पढ़ने को मिले I
उनके गीतों को पढ़कर उनके ह्रदय की पीड़ा और मन के अंतर्द्वंद की झलक मिलती है I मुंबई जैसी मायानगरी में पहुँचकर ही संभवत: ये गीत कवि की कलम से निकले होंगे.
ज़िन्दगी के मंडप में, हर खुशी कँवारी है
किससे माँगने जायें, हर कोई भिखारी है
कहकहों की आँखों में आँसुओं का रेला है
कल भी मन अकेला था, आज भी अकेला है
एक और गीत की पंक्तियां देखें
यह तो सच है धन भी पाया
और कमाया नाम
लेकिन मन के विश्वासों को
कर बैठे नीलाम
हमने कविता की देवी को
चौराहे पर नाच नचाया
ज़रा सोचिये इस जीवन में
हमने क्या खोया क्या पाया ?
मैंने संभवत: 2013 में अंतिम बार हुल्लड़ जी को सहारा सिटी लखनऊ के कार्यक्रम में सुना था, जिसका प्रसारण टीवी पर आया था I उक्त कार्यक्रम स्वर्गीय हरिवंशराय बच्चन की जयंती पर आयोजित हुआ था, श्रोताओं में मुलायम सिंह यादव अखिलेश यादव, अमर सिंह, बच्चन परिवार व सहारा श्री मौजूद थेI उस कार्यक्रम में उन्होंने अपनी प्रस्तुति जो कौन बनेगा करोड़पति द्वितीय पर व्यंग था, सुनाई थी और भरपूर हँसाया था I
उस समय क्या पता था कि यही उनका अंतिम कार्यक्रम होगा I
उसी के कुछ समय बाद उनकी अस्वस्थता की खबरें मिलीं और 12 फरवरी 2014 को सबको हँसानेवाले हुल्लड़ जी सबको गमगीन कर गये I
साहित्यिक मुरादाबाद के प्रशासक डा• मनोज रस्तोगी का ह्रदय से धन्यवाद, उनके सद्प्रयासों से हमें हास्य कविता के सम्राट हुल्लड़ मुरादाबादी जी जिन्होंने अपने साथ साथ देश विदेश में मुरादाबाद के नाम को भी खूब ख्याति दी, की स्मृतियों को जीवंत करने का अवसर मिला I इन्हीं शब्दों के साथ हुल्लड़ जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ I
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद I
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