जन जन के कवि थे स्मृति शेष श्री रामलाल अन्जाना जी

 जन जन के कवि थे स्मृति शेष श्री रामलाल अन्जाना जी

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स्मृति शेष श्री रामलाल अन्जाना जी से मेरा कभी मिलना तो नहीं हुआ, बल्कि उनके बारे में जानकारी भी मुझे साहित्यिक मुरादाबाद के पटल पर ही मिली, वह भी तब मिली जब उनकी मृत्यु का समाचार मनोज जी ने पटल पर डाला था I 

पिछले दो तीन दिन से पटल पर उनसे संदर्भित विषयवस्तु के अध्ययन से तथा उनके संदर्भ में पटल पर उपलब्ध सामग्री से उनके सीधे, सरल और उदार व्यक्तित्व के बारे में जानकर मन उनके प्रति श्रद्धा से नत हो गया I पटल पर उपलब्ध उनके चित्रों में उनकी  एक सरल, सज्जन, सहज व्यक्तित्व की झलक स्पष्टत: दृष्टिगोचर होती है I

जीवन की  विषमताओं और तमाम झंझावातों के बावजूद अनवरत साहित्य सृजन में रत रहना भी उनके विलक्षण व्यक्तित्व का परिचय देता हैI

उनका सृजन भी जीवन की व्यावहारिकता तथा विषम परिस्थितियों पर आधारित है, उनका पारिवारिक जीवन भी आसान नही रहा, जीवन की विषमताओं, दुरूह परिस्थितिओं, सामाजिक परिस्थितिओं पर ही मुख्यत: उन्होंने अपनी कलम चलाई है I

उनके दोहा संगृह' दिल के रहो समीप 'से उद्धृत निम्न दोहे इसका प्रमाण हैं:

1.चलते चलते गिरे तो, कपड़े लोगे झाड़ İ

अगर निगाहों से गिरे, उठ न सकोगे यार II

2.पूजा कर या कथा कर, पहले बन इन्सान I

हुआ नहीं इन्सान तो, जप तप धूल समान II

3.प्यार सदा जीता मगर, हारा अत्याचार I

मुश्किल करो न सफर को, फैलाकर व्यभिचार ii

4.अँधियारों के शहर में, दिये हुए मजबूर I

राहें रोकें खाइयां, गड्ढे हुए फितूर II


साथ ही उनके सृजन मैं उनके दार्शनिक व्यक्तित्व का प्रभाव भी दिखता है, देखें उनके संगृह 'वक्त न रिश्तेदार किसी का से उद्धृत निम्न पंक्तियां:

1.कौन क्या ले जा सकेगा, कौन हीरे खा सकेगा

आसमानों पर बताओ, कौन घर बनवा सजेगा


समाज में व्याप्त वैमनस्य, कटुता व हिंसा की घटनाओं पर भी उन्होंने खूब लिखा है, और परस्पर प्यार के व्यवहार की आवश्यकता जताई है,

1.डरी डरी राहें हैं, सहमे चौराहे हैं

गली और कूचे सब, खून से नहाए हैं

2.गाँव जल रहा, हल्ला बोल

सोये मत अब आँखें खोल

वस्तुत: प्यार पर तो उन्होंने बहुत लिखा हैं:

3.प्यार ही तो जिंदगी है, और जीने की कथा है

दुश्मनी क्यों कर रहे हो, दुश्मनी में हर व्यथा है

हर किसी का हर किसी से, साँस भर का वास्ता है

बैर की बातें करो मत, प्यार सच्चा रास्ता हैं


जितनी पंक्तियां उद्धृत की जायें कम हैं, वस्तुत: उनकी प्रत्येक रचना में समाज की विसंगतियों और विषमताओं पर गंभीर चिंतन मिलता है और परस्पर प्यार के व्यवहार का संदेश मिलता है İ सृजन की भाषा भी आम बोलचाल की भाषा है, जिस कारण पढ़ते हुए कहीं भी क्लिष्टता नहीं महसूस होती İ

संक्षेप में कहा जाये तो श्री रामलाल अंजाना जन जन के कवि थे, उनकी रचनाओं में कहीं न कहीं प्रत्येक व्यक्ति की पीड़ा, हताशा, दर्द, झलकता है, साथ ही आध्यात्मिक और दार्शनिकता भी दिखती है और प्यार के व्यवहार के प्रति आगृह भी मिलता हैI

मैं साहित्यिक मुरादाबाद पटल के एडमिन डा• मनोज रस्तोगी जी के प्रति अत्यंत कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ, उन्हीं के सद्प्रयासों से हमें मुरादाबाद के दिवंगत साहित्यकारों का परिचय मिल सका हैं तथा, ऐसे ही कार्यक्रम में हमें मुरादाबाद के जनकवि स्मृतिशेष श्री रामलाल अंजाना जी के व्यक्तित्व व कृतित्व का परिचय मिला, इन्हीं शब्दों के साथ श्री अंजाना जी को शत शत नमन करते हुए लेखनी को विराम देता हूँI


श्रीकृष्ण शुक्ल, 

MMIG - 69,

रामगंगा विहार, 

मुरादाबाद  (उ.प्र.),

भारत İ

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