होली पर मुंह काला कर दिया

 होली के अवसर आज ही रचित:


होली के दिन सवेरे ही सवेरे हमारे पडोसी ने घंटी बजा दी।

जब तक हम कुछ समझ पाते , हमारे चेहरे पे कालिख लगा दी।

हमने कहा भैय्ये क्यूं पैसे बरबाद कर रहे हो।

ब्लैक बोर्ड पर कोयला रगड़ रहे हो।

हमारे कालिख लगाकर अपना टाइम भी बरबाद कर रहे हो।

कालिख ही मलनी थी तो किसी एजरी केजरी का मुँह काला करते।

या किसी सहारा वहारा के जा के मलते।

या किसी कोयला मंत्री को ही घेर लेते।

तुम्हारा भी अखबार में फोटू छप जाता , फुटेज पा लेते

हो सकता है कोई आम आदमी लपक लेता और टिकट पा लेते।

मामू सुबह सुबह रंग लगाकर तुमने हमारा ही नहीं अपनी भाभी का मूड भी खराब कर दिया।

भला उनसे पहले हमारा मुंह तुमने कैसे काला कर दिया।

अब तो तुम्हें हमारे यहां से चाय और गुझिया भी नहीं मिलेगी।

और मामू जब बोहनी ही खराब हुई है तो पूरी होली ऐसी ही रहेगी।

रही बात हमारी तो हम जैसों से तो सूरदास भी रह गया था दंग।

तभी तो कह गया था:

सूरदास ये काली कमली चढै न दूजो रंग।

रचयिता: श्रीकृष्ण शुक्ल

दिनांक: 16.3.2014.

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