ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I

 ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I

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ओस की बूँदें यद्यपि आकार प्रकार में छोटी सी होती हैं किंतु सौंदर्य में अप्रतिम होती हैं, पत्ते पर पड़ी ओस की बूँद मोती का अहसास दिलाती है, घास पर पड़ी ओस पर नंगे पाँव चलने से उसकी शीतलता मस्तिष्क तक पहुँचती है I

कुछ कुछ ऐसी ही अनुभूति आदरणीय अशोक विश्नोई जी के हाइकू संग्रह 'ओस की बूँदें'  पढ़ने पर होती है I हाइकू यद्यपि जापानी छंद है किंतु यह सूक्ष्म आकार का छंद ओस की बूँद की तरह ही अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम है I हाइकू केवल तीन पंक्तियों का वार्णिक छंद है, जिसमें विषम चरणों में पाँच वर्ण होते हैं तथा सम चरण में सात वर्ण होते हैं I 

दोहों की तरह हाइकू भी काव्य की ऐसी विधा है जिसमें छोटी सी कविता में बड़ा संदेश दिया जा सकता है I

श्री अशोक विश्नोई जी की इस पुस्तक में लगभग चार सौ हाइकू प्रकाशित हैं, जिनमें उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में विभिन्न परिस्थितियों पर सशक्त अभिव्यक्ति दी है, फिर चाहे वह सामाजिक हो, राजनीतिक हो, व्यक्तिगत व्यवहार पर हो, यहाँ तक कि साहित्य और साहित्यकारों के आचार विचार और व्यवहार पर भी उनकी लेखनी चली है I

उनकी भाषा अत्यंत सरल, सामान्य बोलचाल की भाषा है, चूँकि वह एक अच्छे व्यंगकार भी हैं अत: उनके हाइकू में भी कई जगह अत्यंत पैने और धारदार  तरीके से तो कहीं चुटीले अंदाज में व्यंग मिलता है I

पुस्तक से उद्धृत कुछ हाइकू प्रस्तुत हैं :

सर्वप्रथम राजनीति और नेताओं का विषय ही लेते हैं:


1. जितना नंगा,  राजनीति में वह,  उतना चंगा I

2. लोकतंत्र है,  जैसा जी चाहे कर,  तू स्वतंत्र है I

3. गिरगिट हैं,  नौटंकी करने में,  नेता फिट हैं I


उपरोक्त तीनों हाइकू, राजनीति और राजनेताओं के चेहरे, चाल और चरित्र को उजागर करने में सफल हैं I

सामाजिक व्यावहारिता पर कुछ छंद देखिए:


4. अधर सी ले,  अधिक मत बोल,  दर्द को पी ले I

5. रफू कर लो,  फट गये जो रिश्ते,  उन्हें बचा लो I

6. कुछ तो गढ़ो,  खो गये खत कहीं,  चेहरे पढ़ो I


उपरोक्त छंद आम आदमी की दशा और दिशा को दर्शाने में पूर्णत: सक्षम हैं I

न्यायपालिका पर भी उनकी कलम प्रभावशाली ढंग से चली है, देखें ये हाइकू:

7. हद हो गई,  बिना कसूर के ही,  सजा हो गई I

सामान्य जनजीवन में व्यवस्था द्वारा दी गयी विषमताओं पर प्रहार करता हुआ यह हाइकू भी अत्यंत प्रभाव छोड़ता है:

8. बरसात में,  सड़कें हैं बोलतीं,  राज खोलती I

साहित्यकार की संवेदनशीलता और निरपेक्ष भाव से लेखन कर्म पर भी उनकी कलम चली है, देखें यह हाइकू:

9. साहित्यकार,  संवेदना में जीता,  कितनी बार I

कुल मिलाकर अपने इस हाइकू संग्रह में श्री विश्नोई जी ने जीवन व समाज के हर पहलू पर अत्यंत सशक्त रूप से कलम चलाई है और अपनी व्यंगात्मक शैली से वह प्रभावी रूप से अपनी बात पाठकों तक पहुँचाने में सफल रहे हैं I

उनकी यह पुस्तक सभी साहित्य प्रेमियों के लिये पठनीय है I

इन्हीं शब्दों के साथ मैं श्री अशोक विश्नोई जी को बारंबार बधाई देता हूँ और अभिनंदन करता हूँ, साथ ही कामना करता हूँ कि उनकी लेखनी अनवरत चलती रहे और हमें भविष्य में भी उनके और काव्य संग्रह पढ़ने को मिलते रहें I


श्रीकृष्ण शुक्ल,

MMIG - 69,

रामगंगा विहार,

मुरादाबाद I

18.07.2022

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