संतरा है या संतरी
विगत 19 जुलाई को गीत ऋषि नीरज जी की पुण्य तिथि थी.
नीरज जी के साथ का एक पुराना संस्मरण प्रस्तुत कर रहा हूँ:
संतरा है या संतरी
----------------------
बात 1986 की है. रामपुर में हमने सवेरा साहित्यिक संस्था की शाखा , आदरणीय कारेन्द्र देव त्यागी उर्फ मक्खन मुरादाबादी जी के सहयोग से बनाई थी. संस्था ने रामपुर में एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन व मुशायरा आयोजित किया था. उसमें नीरज जी को भी बुलाया गया था. नीरज जी आदर्श कालोनी में ही अपने किन्हीं मित्र के यहाँ ठहरे थे.
मुझे नीरज जी को कवि सम्मेलन स्थल तक लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.
सम्मेलन प्रारंभ होने से लगभग एक घंटा पूर्व में वहाँ पहुँच गया.
नीरज जी उस समय बाथरूम में थे और कवि सम्मेलन के लिए तैयार हो रहे थे.
जब तक वो आते तब तक उस घर की गृहस्वामिनी चाय बना लाईं. चाय के दौरान ही थोड़ी देर में ही नीरज जी ने मेरा पूरा परिचय पूछ लिया, मैं बैंक अधिकारी हूँ, हिन्दी में लेखन करता हूँ आदि आदि. छोटी सी मुलाकात में बिल्कुल फ्रेंक हो गए.
कार्यक्रम स्थल पर स्व शैलेन्द्र जौहरी भी मिल गए. हम तीनों की बातचीत चल ही रही थी कि अचानक नीरज जी बोले, गला सूख रहा है जरा एक दो संतरे ले आओ. मैं तुरंत घर गया और वहाँ रखे संतरों में से चार पाँच संतरे लेकर पहुँच गया. संतरे थोड़े छोटे छोटे थे. नीरज जी ने संतरा हाथ में लिया, घुमाया, फिर बोलेः ये संतरा है या संतरी है. मैं अचकचा कर झेंप गया, लेकिन प्रत्युत्पन्नमति से तुरंत कहा हाँ ये तो संतरी ही है, संतरा बाजार गया है मैं अभी लाता हूँ. इस पर वह खुलकर हँसे. थोड़ी देर में संतरे भी आ गए, उन्होंने केवल दो तीन फांकें ही चूसीं।
तब तक सम्मेलन पर कवियों की आमद हो गई थी.और हम.सभी मंच पर चले गए. वह कवि सम्मेलन भी सुबह चार बजे तक चला था. संचालन आदरणीय मक्खन मुरादाबादी जी ने किया था. मुझे भी उस कवि सम्मेलन में काव्यपाठ करने का अवसर मिला था. मैंने इक्कीसवीं सदी पर एक कविता सुनाई थी और नीरज जी ने मुझे अलग से बुलाकर कहा था बहुत अच्छी कविता थी. ऐसे ही लिखते रहो.
आज इस प्रसंग को लिखने का एक ही उद्देश्य है, वह है उनका नए और अन्जान रचनाकारों से त्वरित आत्मीयता, खुलेपन, और प्रोत्साहित करने के स्वभाव के बारे में परिचित कराना I
स्मृतियों में वह सदैव जीवित रहेंगे I
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 68,
रामगंगा विहार, मुरादाबाद
Comments
Post a Comment