जब कानों में सीटियां बजने लगीं
संस्मरण:
जब कानों में सीटियां बजने लगीं
बात तब की है जब हम कक्षा 9 में पढ़ते थे I घर में नयी नयी बिजली लगी थी, उस समय हर कमरे, बराम्दे आदि में छत से टंगी डोरी में होल्डर लटका कर उसमें बल्ब लगा दिया जाता था और दीवार में काले रंग का स्विच होता था I
हमने विज्ञान में पढ़ा तो बहुत था कि अगर विद्युत प्रवाह के संपर्क में आ गये और कहीं से भी अर्थ हो गया तो करंट लगता है और चिपका लेता है। हमारी बालक बुद्धि ने इसका प्रयोग करने की योजना बनायी। बराम्दे में एक लकड़ी का डेस्क रखा था उस पर खड़े हो गये और बटन आन करके उंगली होल्डर में डाल दी, और जो जोर का झटका लगा तो तुरंत डेस्क से छलांग लगा दी।
लेकिन सर भन्ना गया और देर तक कानों में सीटियां बजती रहीं, और दिमाग की प्रत्येक खिड़की खुल गयी।
बाद मे जब सीधे हुए तो दिमाग पर जोर डाला कि यार हम तो लकड़ी के डेस्क पर खड़े थे , कहीं से अर्थ तो हुआ नहीं था फिर झटका कैसे लगा, थोड़ी देर में ही जहन में आ गया कि हमने स्विच तो आन कर रखा था, और होल्डर में उंगली डालने से निगेटिव पाजीटिव दोनों मिल गये सो झटका लग गया।
बहरहाल विज्ञान में जो पढ़ा था उस प्रयोग की पुष्टि हो गयी, यही सोच कर संतोष किया, इति सिद्धम ।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद उ.प्र.
भारत I
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