गदहा ही काम आयेगा

 गदहे की सवारी

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एक नेता जी ने एक गदहे को अपना वाहन बनाया

चुनाव प्रचार में उसको गाँव गाँव में घुमाया

गली गली में नेताजी वादों का पिटारा खोलते गये

और अंतत: नेताजी चुनाव जीत गये 

जीत के बाद गली गली में उनके अभिनंदन का कार्यक्रम शुरु हुआ

नेताजी को फूल मालाओं से लादा जाने लगा

साथ ही उनके गदहे को भी माल्यार्पण किया जाने लगा

नेता जी तो थे ही खुश,

गदहा उनसे भी अधिक खुश

धीरे धीरे नेताजी के हाल चाल बदल गये,

उधर गदहे की चाल भी बदल गयी

नेताजी पब्लिक को गरियाने लगे

गदहा भी दुलत्ती झाड़ने लगा

एक दिन धोखे से दुलत्ती नेताजी की टोपी उछाल गयी

गदहे को तुरंत उसकी औकात बता दी  गयी

नेताजी ने तुरंत उसको धकिया कर बाहर निकलवा दिया

और अपने लिये एक खूबसूरत घोड़ी का इंतजाम कर लिया

अब गदहा रोज भीड़ के बीच में रेंकता है,

ससुरा मेरी पीठ पर, मेरे बलबूते इतना बड़ा नेता बन गया

और चुनाव जीत कर मुझी को ठग गया

खुद घोड़ी की सवारी करता है

और जिसने उसे नेता बनाया उसे गदहा समझता है। 

ये भी भूल बैठा है कि एक दिन फिर चुनाव आयेगा

और उस वक्त कोई घोड़ा या घोड़ी नहीं, 

ये गदहा ही काम आयेगा,

ये गदहा ही काम आयेगा। 


श्रीकृष्ण शुक्ल,  

MMIG - 69,

रामगंगा विहार,  मुरादाबाद।

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