गॉंव की बारात और बैलगाड़ी का सफर
गॉंव की बारात और बैलगाड़ी का सफर
बात वर्ष 64-65 की है। हमारे पिताजी के बड़े ममेरे भाई बिलारी के पास गॉंव हजरतनगर गढ़ी में रहते थे। उनके बेटे के विवाह में हमारा पूरा परिवार गया था। बारात गढ़ी से अन्य गॉंव में जानी थी। गॉंव की ही तमाम बैलगाड़ियों में सजे धजे बैल जोड़कर उन बैलगाड़ियों पर सवार होकर बारात अपने गंतव्य की ओर चल दी थी। हम जिस बैलगाड़ी में बैठे थे उसके चालक से धीरे-धीरे हमारी दोस्ती हो गई। बैलगाड़ी में बैठे बैठे ही उन्होंने हमें गाड़ी हॉंकना, नियंत्रित करना, मोड़ना व रोकना आदि, सब सिखा दिया और फिर बैलों की रस्सी हमारे हाथ में दे दी। हमने भी कभी तेज भगाकर तो कभी एकदम रोक कर खूब आनंद लिया। शाम होते होते हम लड़की वालों के गॉंव के पास पहुॅंच गये। गॉंव से लगभग एक किलोमीटर पहले से ही बारात की अगवानी में घरातियों के गॉंव की बैलगाड़ियां सजी धजी तैयार थीं। फिर गॉंव के बाहर बाहर ही बारी बारी से बैलगाड़ियों की रेस हुई। बैलगाड़ियों की अद्भुत प्रतिस्पर्धा का दृश्य हमारे लिये अनोखा था।
खैर गॉंव में पहुॅंचने के बाद बारातियों को एक आम के बाग में ठहरा दिया गया। हमारे लिये यह भी प्रथम अनुभव था। बाग में ही जमीन पर दरियां बिछी थीं, ओढ़ने के लिये चादरें भी थीं। वहीं बारात ठहरी। सायं आठ बजे बारातियों को भोजन भी करवा दिया गया। उसके बाद चढ़त बारात का आयोजन हुआ। चढ़त के बाद हम तो सो गये क्योंकि दिन भर में काफी थक गये थे। अगले दिन पूरे दिन चौहरी, कंगना, मिलाई आदि की गतिविधियां चलती रहीं। उन दिनों गॉंव में बारात तीन दिन रुकती थी। तीसरे दिन सुबह विदा होनी थी। जब काफी देर हो गई और विदाई की कोई सुगबुगाहट नहीं हुई तो हमें उत्सुकता हुई कि क्यों देर हो रही है, तो पता चला कि किसी बात पर नाराज़ होकर दूल्हे राजा गायब हो गये हैं। दोनों पक्ष के बड़े लोगों में आपस में बातचीत तथा मान मनौव्वल होती रही। खैर जैसे तैसे दूल्हे राजा को ढूॅंढ कर मनाया गया और लगभग दोपहर बारह बजे के बाद विदाई हुई शाम तक बारात वापस गढ़ी पहुॅच गई।
गॉंव की शादी का हमारा यह प्रथम अनुभव था।
बैलगाड़ी में इतनी लंबी यात्रा करना, खुद बैलगाड़ी हांकना इन सबका आनंद भी अनूठा था।
तीन दिन की शादी तो हमने एक अन्य जगह भी देखी थी, लेकिन गॉंव में आम के बाग में ठहरने का ये एकमात्र अनुभव था।
आज भी जब उस शादी की याद आती है तो महसूस होता है कि कितना सहज व सरल जीवन था उस समय। बाराती व घराती दोनों ओर के गॉंव वाले भरपूर आनंद लेते थे व सभी सहयोग करते थे। न कोई आडम्बर न दिखावा। पूरे गॉंव के लोग आवभगत में ऐसे लगे थे मानों उन्हीं की बेटी की शादी हो। बाराती भी सब सहजता से शादी का आनंद ले रहे थे। न कोई शिकवा न शिकायत।
काश समाज में वह प्रेम किसी प्रकार वापस आ जाये तो देश का कल्याण हो जाये।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
T-5 / 1103,
आकाश रेजीडेंसी एपार्टमेंट्स,
आदर्श कालोनी, कांठ रोड,
मुरादाबाद, उ.प्र.
29.08.2025
Comments
Post a Comment