जब तिगरी मेले में भैंसागाड़ी पलट गयी।
जब तिगरी मेले में भैंसागाड़ी पलट गयी। बात वर्ष १९८९ की है। उस वर्ष हमारा स्थानांतरण बिलासपुर (रामपुर) से कांठ (मुरादाबाद) शाखा में हो गया था। कांठ में बच्चों की पढ़ाई की अच्छी सुविधा न होने के कारण हमने परिवार को मुरादाबाद में अपने पैतृक मकान में ही रखा और खुद दैनिक आवागमन करना शुरू कर दिया। उस वर्ष गंगा स्नान के अवसर पर अचानक सपरिवार तिगरी जाने का कार्यक्रम बन गया। तिगरी मेले में हम अपने विद्यार्थी जीवन में लगभग प्रत्येक वर्ष जाते थे। उद्देश्य यही था कि पत्नी व बच्चों को भी एक बार तिगरी मेला दिखा दिया जाये। सुबह 8.00 बजे हम सब रोडवेज की तिगरी मेला स्पेशल बस से चल दिये और लगभग 9.30 बजे मेले में पहुॅंच गये। सबसे पहले सीधे घाट पर पहुॅंचे और कपड़े उतार कर गंगा जी में कूद गये। बारी बारी से तीनों बच्चों को भी स्नान करवाया। तीनों बच्चे छोटे ही थे। बिटिया तो केवल तीन वर्ष की थी। हमारे बाद पत्नी ने स्नान किया। स्नानादि से निवृत्त होकर थोड़ी ठीक ठाक जगह ढूंढकर खाना खाया और गंगाजल पीकर फिर नाव पर सवार होकर गंगा पार जाकर गढ़ का मेला घूमा। मेले में श्रीमती जी की दिल...