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Showing posts from 2020

चलो अब लौटें अपने गाँव

प्रवासी मजदूरों की वापसी पर तीन दोहे जाना मीलों दूर है, थके हुए हैं पाँव फिर भी चलते जा रहे, वापस अपने गाँव।। याद आ रहे हैं बहुत, घर आँगन खलिहान। वो मक्के की रोटियाँ, वो बरगद की छाँव।। विपदा के इस दौर में, सबने छोड़ा साथ। ध्वस्त सभी सपने हुए, लौटे खाली हाथ। गीत चलो अब लौटें अपने गाँव उखड़ने लगे यहाँ से पाँव। चलो अब लौटें अपने गाँव। बुला रहा है बूढ़ा पीपल,  अरु बरगद की छाँव। चलो अब लौटें अपने गाँव। शहर की चकाचौंध में हम, गाँव को बिल्कुल भूल गये। छोड़ अपनी खेती बाड़ी, चाकरी में ही मगन भये। कालचक्र कुछ ऐसा घूमा, जीवन पर है दाँव, चलो अब लौटें अपने गाँव। समय ने बदली अपनी चाल। हुआ है  बुरा सभी का हाल।। निभाया नहीं किसी ने साथ। चल दिये सभी छुड़ाकर हाथ।। बेबस बेघर पड़े सड़क पर, दिखे न कोई  ठाँव। चलो अब लौटें अपने गाँव।। गाँव में सब ही थे अपने। शहर में हैं केवल सपने। जब तलक रहे गाँठ में दाम, दोस्त सब लगते थे अपने। द्वार सभी के बंद हो गये, मिली न कोई ठाँव। चलो अब लौटें अपने गाँँव। गाँव में अपना है खलिहान, भले है कच्चा वहाँ मकान, स्वर्ग ही बसता है इसमें, शहर तो बना हुआ शमशान। लौट के बुद्धू ...

गज़ल 'आशियाँ ही आशियाँ'

आशियाँ ही आशियाँ (गज़ल) जिन दरख्तों को गिराना चाहती हैं आँधियाँ।। कुछ परिन्दों ने बना रक्खे हैं उनमें आशियाँ। कल यहाँ पर खेत थे बस और कुछ पगडंडियाँ। अब यहाँ पर दूर तक हैं आशियाँ ही आशियाँ।। खेत थे, खलिहान थे, कुछ बाग़ थे, कुछ बस्तियाँ। बिल्डिंगें हैं, मॉल हैं, कुछ टॉवरें, कुछ चिमनियाँ।। इस नदी के तीर पर जबसे बनी हैं बस्तियाँ। जी नहीं पाती हैं तबसे इस नदी में मछलियां।। चूसने मकरंद भँवरे अब यहाँ भी आ गये। आज इन गुंचों से गायब हो रही हैं तितलियां। बाप बेटे की यहाँ आपस में बनती ही नहीं। फासला इक उम्र का है दो दिलों के दरमियाँ।। क्या करें कैसे करें किससे करें अब गुफ्तगू। 'कृष्ण' अपने साथ बस दीवार दर या खिड़कियाँ।। श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद। (उ.प्र.) 244001 मोबाइल नं. 9456641400

कवि पत्नी की नोंकझोंक

07.02.2020 कवि जी और घराणी में नित नोंकझोंक चलती थी। अपना घर तुम स्वयं सम्हालो, वो अक्सर कहतीं थी।। आप गोष्ठियों में सखियों सँग मौज मजा करते हो। घर में आकर मोबाइल में व्यस्त रहा करते हो। मुझसे घर में भी सीधे मुँह बात नहीं करते हो। और कामवाली से भी अच्छे से बतियाते हो।। न हूँ नौकरानी, बीबी हूँ, कान खोलकर, सुन लो। बहुत हो गया अपना घर अब खुद तुम स्वयं संभालो। मुझको कम मत समझो, मैं भी खूब लिखा करती थी। विद्यालय के कार्यक्रमों में प्रथम रहा करती थी। मुझको थोड़ी आजादी दो, मैं लिखने लग जाऊँ। मंचों पर जाकर मैं भी अब थोड़ा नाम कमाऊँ।। रौद्ररूप उनका लख कर, भेजा अपना चकराया। आत्मसमर्पण करके हमने उनको त्वरित मनाया। उसी दिवस जाकर उनको स्मार्टफोन दिलवाया। व्हाट्सएप का संचालन भी, उनको तुरत सिखाया। नोंकझोंक तो छूटी लेकिन आयी विपदा भारी। ऑनलाइन वो रहें कृष्ण,  पर हम काटें तरकारी।। श्रीकृष्ण शुक्ल,  MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद (उ.प्र.) 244001 मोबाइल नं. 9456641400.

लॉकडाउन की मधुशाला

लॉकडाउन की मधुशाला मतवाले का हाल न पूछो, नहीं मिल रही थी हाला। बोतल खाली, सागर खाली, खाली था मधु का प्याला। दिन चालीस हुए तो आखिर, घड़ी तसल्ली की आयी। मंदिर मस्जिद बंद पड़े हैं, किंतु खुल गयी मधुशाला। बूँद बूँद को तरस गया था, रोज नीट पीने वाला। रोज प्रार्थना करता था प्रभु, खुलवा दो अब मधुशाला। ऊपरवाले ने भी शायद, उसकी पीड़ा को जाना। कहीं न प्यासा ही मर जाये, अतः खोल दी मधुशाला।। पीनेवाला श्वास श्वास में, रटता था हाला हाला। कोई याद मुझे भी  करता, सोच रहा ऊपरवाला।। श्रद्धा से तुम जो माँगोगे, मुझसे वो ही पाओगे। अतः बंद हैं मंदिर मस्जिद, अत: खुल गयी मधुशाला। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद MMIG 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद। उ.प्र.। मोबाइल नं. 9456641400

हम अब भी जमीं पर हैं

एक.शेर वो भी क्या जमाना था, ये भी क्या जमाना है। हम तब भी जमीं पर थे, हम अब भी जमीं पर हैं। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद। MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद। मोबाइल नं. 9456641400

घर वापसी

घर वापसी -------------- पापा, अभी कितना और चलना है, घर कब पहुँचेंगे, नन्हीं मुनिया ने राकेश से पूछा। पहुँच जायेंगे बिटिया, जल्दी पहुँच जायेंगे, कहते कहते राकेश का स्वर भर्रा गया था। तीन दिन हो गये चलते चलते, मुनिया अब परेशान होने लगी है, अभी और कितने दिन लगेंगे, राकेश की पत्नी संतोष ने पूछा। मुनिया की माँ, अभी तो कई दिन लगेंगे, लेकिन जब घर से निकल आये हैं तो परेशानियां तो सहनी ही पड़ेंगी। वहाँ भी तो परेशान ही थे। न नौकरी रही, न आमदनी, ऊपर से मकान मालिक रोज मकान खाली करने को धमका रहा था। राकेश ने संतोष को समझाया। हुम्म: वो तो अच्छा हुआ, मैंने मोटे मोटे रोट और मठरियां बनाकर साथ में रख ली थीं चार पाँच दिन का काम तो चल ही जायेगा, यहाँ तो रास्ते में कहीं कोई दुकान या ढाबा भी खुला हुआ नहीं मिल रहा, संतोष बोली। लॉकडाउन को चालीस दिन हो चुके थे। पास की जमापूँजी खत्म हो चुकी थी। किसी से कोई सहायता की उम्मीद न थी। न रेलें चल रही थी न बसें। जी कड़ा करके उसने पैदल ही घर वापसी का निर्णय ले लिया। सिर पर बड़ी सी अटैची, पत्नी के पास भी एक गठरी थी और पाँच साल की नन्हीं मुनिया भी पैदल पैदल चल रही थी।  श...

कोरोना का संकट मित्रों, कब तक हमें डरायेगा।

कोरोना का संकट मित्रों, कब तक हमें डरायेगा। ---------------------------------------------------- कोरोना का संकट मित्रों, कब तक हमें डरायेगा। अनुशासन में अगर रहेंगे, तो संकट टल जायेगा।। लॉकडाउन में कब तक खुद को, घर में कैद रखेंगे हम। अकर्मण्य रहकर जीवन का, कब तक भार सहेंगे हम।। ऐसे भी तो बैठे बैठे, जीवन ढल ही जायेगा। कोरोना का संकट मित्रों, कब तक हमें डरायेगा। माना यह विषाणु घातक है, जीवन तक हर लेता है। किंतु जिंदगी यदि बाकी है, कौन मार फिर सकता है। श्वास श्वास है प्रभु के हाथों, वो ही हमें बचायेगा। कोरोना का संकट मित्रों, कब तक हमें डरायेगा। जीवन पथ पर साथ समय के, हम सबको चलना होगा। किंतु सुरक्षा चक्र न टूटे, यह निश्चय करना होगा। अनुशासन में रहकर मित्रों, भारत इसे हरायेगा। कोरोना का संकट मित्रों, कब तक हमें डरायेगा। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद। MMIG 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद। (उ.प्र.) मोबाइल नं. 9456641400

कब तक घर में बंद रहूँगा।

कब तक घर में बंद रहूँगा। -------------------------------- छोटू पापा से ये बोला, कब तक घर में बंद रहूँगा बैठे बैठे ऊब गया हूँ, कब बाहर जाकर खेलूंगा। पापा ने उसको समझाया, बाहर जाने में खतरा है। बाहर कोरोना का संकट, जाने कहाँ कहाँ पसरा है। कुछ दिन घर में बंद रहेंगे, इसकी कड़ी टूट जाएगी। बाहर आने जाने पर से, पाबंदी भी हट जाएगी। तो क्या मैं घर के अंदर ही, निपट अकेला पड़ा रहूँगा। बैट बॉल, से दूर बताओ, घर में कब तक सड़ा रहूँगा। घर में कहाँ अकेले हो तुम, मैं भी तो हूँ, मम्मी भी हैं। घर में रहकर खेल खेलने, के कितने ही साधन भी हैं।। कुछ दिन हमको दोस्त समझ लो, लूडो, बिजनैस, कैरम खेलो। जब चाहे साथी बच्चों से, तुरत वीडियो चैटिंग कर लो।। मान गया छोटू फिर बोला, अच्छा घर में ही खेलूँगा। रोज हराऊँगा दोनों को, घर में तो मैं ही जीतूँगा। श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद। मोबाइल नं.9456641400

छुप कर के घर में आप भी खुद को बचाइए

2212 1212 2212 12 कुछ दिन तो घर की रोटी और दाल खाइए। महफूज आप घर में हैं बाहर न जाइए।। छुप छुप के वार करता है दुश्मन अजीब है। छुप कर के घर में आप भी खुद को बचाइए।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

कैसी आफत कोरोना

कैसी आफत कोरोना ------------------------- कैसी आफत कोरोना, चहुँ दिशि है इसका रोना। अब तो बस घर में रह कर, लंबी ताने है सोना। घर में भी आराम नहीं, घर में कोई काम नहीं। घर में रहना मुश्किल है, खाने को भी दाम नहीं। जाने अब कितने दिन तक, पानी पीकर है सोना। पाबंदी मजबूरी है, जीवन बड़ा जरुरी है। किंतु भूख भी हावी है, बंद पड़ी मजदूरी है। ऐसे भी तो है मरना, फिर काहे का है रोना। फसलें हैं तैयार खड़ी, कैसी विपदा आन पड़ी खेतों में यदि सूख गईं, खाओगे क्या फिर लकड़ी। किंचित सोचो क्या सबको, सालों भूखे है सोना। ईश्वर पालनकर्ता है, वो ही सबका भर्ता है। श्वास श्वास बस याद रखो, पग पग संकट हर्ता है। तुम क्यों चिंता करते हो, होने दो जो है होना। पाबंदी का मान करो, मास्क लगाकर काम करो। सामाजिक दूरी का तुम, हर पल हर क्षण ध्यान करो अनुशासित हो जाओगे, मिट जाएगा कोरोना। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

तालाबंदी में शादी

दोस्तों घर में बंद हुए आज बारहवां दिन है। हम सब घर में ही कैद हो गये हैं। न गोष्ठियां हो पा रही हैं न आयोजन। महामारी की गंभीरता ने मानो घरों में बंद लोगों की मुस्कुराहट छीन ली है। इसीलिये आज की गोष्ठी में प्रस्तुत है आजकल के ही हालात पर एक हास्य रचना। तालाबंदी में शादी ---------------------- कोरोना के कारण हर सूँ पाबंदी है। गली मुहल्ले गाँव शहर तालाबंदी है। मेले टेले आयोजन सब रद्द हुए हैं। घर से बाहर जाने पर भी पाबंदी है। जिनके घर शादी की बजनी थी शहनाई। तालाबंदी ने उनकी भी बाट लगाई।। कार्ड बँट चुके थे बुक थे नाई, हलवाई। शादी वाले दिन ये कैसी आफत आई। घोड़ी, बाजा, बैंड, बराती सजे खड़े थे। तालाबंदी ने सबकी ही बैंड बजायी।। घर से बाहर जाने पर भी पाबंदी है। कैसे चढ़े बरात महाँ तालाबंदी है। दूल्हा दुल्हन व्हाट्सएप पर उधर मस्त थे। और निराशा में घरवाले इधर पस्त थे। पंडित जी बोले ये अच्छा सगुन  नहीं है। सात महीने से पहले अब लगन नहीं है। घरवाले कोशिश में थे कि बात बन जाए। जैसे भी हो किसी तरह शादी हो जाए। जैसे तैसे शादी की परमीशन पायी। किंतु पाँच लोगों की उसमें शर्त लग...

पशु पक्षी आजाद मगर इन्सान बंद हैं

लॉकडाउन पर मेरी ताजा रचना। कामकाज है ठप्प विश्वमर में मंदी है। शहर शहर हर गाँव गली ताला बंदी है। एक वायरस ने ऐसा आतंक मचाया। खुली हवा में साँसों पर भी पाबंदी है। घर से बाहर आवाजाही पूर्ण बंद है दफ्तर और बजार बंद हैं, रेल बंद है। कुदरत ने भी देखो कैसा खेल रचाया। पशु पक्षी आजाद मगर इन्सान बंद है। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद। मोबाइल: 9456641400

क्या होता है कोरोना

प्रस्तुत है मेरी त्वरित रचित बाल कविता। क्या होता है ये कोरोना ----------------------------- छोटू ने मम्मी से पूछा एक बात बतलाओ। क्या होता है यह कोरोना, आप मुझे समझाओ। बंद हुए स्कूल, खेलने पर भी पाबंदी है। शापिंग माल, सिनेमा, मंदिर में तालाबंदी है। पापा ने भी बंद कर दिया, दफ्तर आना जाना। घर में ही दफ्तर ले आये, इसका भेद बताना। मास्क लगाये घूम रहे, क्यों लोग मुझे बतलाओ। क्या होता है यह कोरोना आप मुझे समझाओ। मम्मी ने उसको पुचकारा, अपने पास बिठाया। ये है नया बुखार प्यार से उसको ये बतलाया। है विषाणु के कारण जो छूने से ही आता है। अलग थलग रहने से इसका खतरा मिट जाता है। इसकी दवा नहीं बचाव से इसको दूर भगाओ। खुद को स्वच्छ रखो तनिक भी इससे मत घबराओ। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद। मोबाइल: 9456641400.

होली पर दिमागी चकल्लस : बुरा न मानो होली है

होली पर दिमागी चकल्लस : बुरा न मानो होली है आजकल किसी कवि सम्मेलन का संयोजन करना हो तो ये ख्याल रखना पड़ता है कि दो तीन हास्य व्यंग के कवि अवश्य बुलाए जाएं, ताकि श्रोताओं की दिलचस्पी बनी रहे। वस्तुतः आजकल श्रोताओं की रुचि कविताओं और गीतों में कम होती जा रही है, थोड़ा बहुत आकर्षण हास्य व्यंग की कविताओं का शेष है। हास्य कविता लिखना वास्तव में टेढ़ी खीर है। आज के दौर में व्यक्ति अत्यधिक शुष्क और असंवेदनशील हो गया है, मनोविनोद तो जीवन में मानो समाप्तप्राय हो गया है। इसीलिये व्यक्ति के तनावग्रस्त मस्तिष्क को हँसने की स्थिति तक ले आना वास्तव में काम तो मुश्किल ही है। यही वजह है कि हास्य कवि अधिकतर चुटकुले सुनाते हैं, या चुटकुलों पर आधारित रचनाएं बनाते हैं।  आजकल अधिकतर हास्य रचनाएं छंदमुक्त, गद्यात्मक शैली में होती हैं। हास्य रचनाओं में प्रस्तुतिकरण भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कहने के ढंग से भी हास्य उत्पन्न होता है।हमने हुल्लड़ मुरादाबादी जी की तमाम रचनाएं सुनीं हैं। वह इस शैली के मास्टर थे। यद्यपि पहले हास्य कवि भी छंदबद्ध लेखन ही करते थे तथा खूब हँसाते थे। श्री गोपाल व्यास त...

दिल्ली : क्यों जली

दिल्ली :क्यों जली। दिल्ली को सुलगाने की पटकथा शाहीन बाग में ही लिखी जा रही थी। पूरे शासन प्रशासन का ध्यान शांतिपूर्ण धरने पर लगा था जहाँ तिरंगा था, भारत माता की जय के नारे थे, बिरयानी थी और बंद सड़क थी। तमाम लोगों को परेशानी हो रही थी लेकिन उनकी चिंता न तो सरकार को थी, न पुलिस को और न ही सुप्रीम कोर्ट को। न्यायालय यह तो कह रहा था कि धरने की आड़ में आप सड़क बंद नहीं रख सकते लेकिन पुलिस को बलपूर्वक धरना खत्म कराने का निर्देश भी नहीं दे रहा था,  उल्टे धरनाधर्मियों से वार्ता करने के लिये लगातार प्रतिनिधि भेज रहा था। न्यायालय का काम ये कब से हो गया, ये समझ से परे है। धरने वाले लोगों ने इसे सरकार की, पुलिस की कमजोरी माना और यह भी जान लिया कि न्यायालय भी इस मामले में खुलकर हस्तक्षेप नहीं करेगा। इसी की आड़ में दंगे की पटकथा लिखी गयी। छतों पर पत्थर, पैट्रोल बम, आदि इकट्ठे किये गये और जब सारी तैयारी हो गयी तो जाफराबाद में भी सड़क पर धरना शुरू कर दिया गया। विरोध हुआ तो हिंसा शुरू कर दी गयी। यहाँ भी दो दिन तक पुलिस की निष्क्रियता ने उपद्रवियों का मनोबल और बढ़ा दिया जिसका नतीजा तीसरी रात में भयं...

वीरों का वंदन : समीक्षा

वीरों का वंदन, पुलवामा के शहीदों को समर्पित कृति। हर सैनिक के शुभ मस्तक पर मैं टीका चन्दन करती हूँ, हो गये शहीद वतन पर जो, हम उन्हें भूल न पायेंगे, पुलवामा अमर शहीदों को यह कलम समर्पित करती हूँ। ये पंक्तियां पुलवामा के शहीदों के सर्वोच्च बलिदान की पहली पुण्यतिथि पर लोकार्पित, डा• रीता सिंह द्वारा रचित काव्य संग्रह वीरों का वंदन से उद्धृत की गयी हैं। दिनांक 14.02.2020 को चंदौसी में पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि स्वरूप आयोजित वृहद कार्यक्रम में इस कृति का लोकार्पण हुआ। डा• रीता सिंह के शब्दों में 'इस काव्य संग्रह में प्रस्फुटित मेरे भाव देश के उन सभी जवानों को श्रद्धांजलि है, जो भारत माँ के लिये अपने जीवन की बीच राह में अर्पित हो गये। बासंती उल्लास के मास में पुलवामा में अचानक हुए आतंकी हमले में जब देश ने अचानक एक साथ चालीस वीर सपूतों को खो दिया तब उनके लिये मेरे ह्रदय में उमड़े भावों ने कविता के रूप लेकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने की अभिलाषा व्यक्त की, जिसके फलस्वरूप इस लघु काव्य संग्रह की उत्पत्ति हो सकी।' वीरों का.वंदन पच्चीस छोटी बड़ी कविताओं का संग्रह है। प्रारंभि...

जीवन की गज़ल

जीवन की गज़ल हाथ नहीं लग पायी मंजिल, चलते चलते शाम हो गयी। बात अभी तक रही दिलों में, जाने कैसे आम हो गयी। अन्जाना पथ चलते चलते, यूँ ही उम्र तमाम हो गयी। साथ चल सकें अंत तलक वो, कोशिश भी नाकाम हो गयी। राह दिखायी जिसने सबको, आज वही बदनाम हो गयी। 'कृष्ण' गज़ल जीवन की देखो, बीच बहर अंजाम हो गयी। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

फ्री बिजली पानी के गणित को समझना होगा।

फ्री बिजली, पानी के गणित को समझना होगा। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की प्रचंड विजय के बाद हम दिल्ली के वोटर्स को मुफ्तखोर, लालची, गद्दार आदि तमाम विशेषणों से नवाज रहे हैं, लेकिन हमें इस फ्री के गणित का अध्ययन अवश्य करना चाहिए।  फ्री बिजली पानी के संदर्भ में जो केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता कहते रहे , हमें उस कथन पर गौर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनता को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने की हमारी जिम्मेदारी है। फ्री बिजली और फ्री पानी केवल 200 यूनिट बिजली और बीस हजार लीटर पानी प्रतिमाह फ्री उपलब्ध कराने की बात हुई। घरों में रोशनी के लिये बल्ब जलाने लायक व हवा के लिये पंखा या पानी गर्म करने लायक बिजली, बुनियादी जरूरत है, जो 200 यूनिट में पूरी हो जाती है। इसी प्रकार 20000 लीटर प्रति माह पानी, अर्थात 667 लीटर प्रतिदिन, जो एक सामान्य आकर के परिवार के नहाने धोने की जरूरत ही पूरी कर सकता है, केवल इतना पानी मुफ्त दिया जा रहा है। सीधी सी बात है सरकार ने बुनियादी जरूरतों लायक बिजली और पानी उपलब्ध कराने की अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने की शुरुआत की। यह सुविधा अमीर गरीब सभी को ...

शाहीन बाग का प्रभाव

शाहीन बाग का प्रभाव। मेरे विचार से शाहीन बाग प्रकरण भाजपा के लिये भारी पड़ा। शाहीन बाग से एक संदेश ये अवश्य गया कि भाजपा की केंद्र सरकार ऐसे धरना प्रदर्शनों से सख्ती से निपटने में अक्षम है। क्योंकि देश में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि धरना प्रदर्शन के कारण कोई सड़क बंद कर दी गयी हो और प्रशासन ने उसे न खुलवाया हो। यहाँ तो सरकार ने धरना समाप्त करवाने की कोई कोशिश नहीं की बल्कि उसका सहारा लेकर ध्रुवीकरण की कोशिश करती रही। यही कारण हुआ कि धरने वालों के हौसले बढ़ते चले गये और आज देश के तमाम शहरों में ऐसे धरने हो रहे हैं। शाहीन बाग का धरना भी खत्म करवाया जा सकता था। पुलिस, महिला पुलिस, तथा आर ए एफ आदि बल लगाकर धरना देनेवालों को घेरकर निरुद्ध करना चाहिए था, और मार्ग खुलवाना चाहिए था।  महिलाएं और बच्चे यदि धरने पर बैठे हैं, तो क्या उन्हें सड़क रोककर आम जन को असुविधा पहुँचाने की आजादी दी जानी चाहिए। वहाँ तमाम राजनेताओं ने भड़काऊ भाषण दिये। उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई। सिर्फ उसका प्रोपेगेंडा करके ध्रुवीकरण की कोशिश होती रही। इससे तो यही संदेश गया कि भाजपा भी धरना खत्म नहीं कर...

सबको आज जगाना होगा

सबको आज जगाना होगा संविधान के इस उत्सव पर, सबको आज जगाना होगा। राष्ट्रद्रोहियों के चंगुल से, अब गणतंत्र बचाना होगा।। आग लगाना, सड़क घेरना, ये कैसी आजादी है। इस विध्वंसक मनोवृत्ति में, जन धन की बरबादी है।। विकृत मानसिकता वालों से, अब ये देश बचाना होगा। संविधान के इस उत्सव पर सबको आज जगाना होगा।। हिंदू मुस्लिम मिलजुलकर सदियों से रहते आये हैं। मुट्ठी भर आतंकी आकर नफरत बोते आये हैं।। नफरत की दीवार गिराकर, फिर विश्वास जगाना होगा। संविधान के इस उत्सव पर सबको आज जगाना होगा। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद। 24.01.2020

अथ आलू महात्म्य

अथ आलू महात्म्य ------------------------ टिंडे, भिंडी, बैंगन चाहे जितना शोर मचायें। आलू अपनी पर आयें तो सबको नाच नचायें।। बाकी सारे तो केवल सीजन में इठलाते हैं। आलू पूरे साल शान थाली की बढ़वाते हैं।। हर सब्जी के साथ मिलें थाली का स्वाद बढ़ायें। सबका साथ, विकास सभी का मूल मंत्र अपनायें।। यों तो प्याज टमाटर भी सबमें घुल मिल जाते हैं। लेकिन दोनों आसमान पे अक्सर चढ़ जाते हैं। आलू चाहे रहे अकेला फिर भी साथ निभाये। आलू की टिक्की भैया दावत की शान बढ़ाये।। कभी कभी कोई मेहनतकश रोटी दाल न पाता। वो भी आलू को उबालकर चटकारे ले खाता। एक अकेला आलू है जो सबकी भूख मिटाये। इसीलिये सारी सब्जी का राजा वह कहलाये। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद। 04.02.2020

जनता ठहरी भोली भाली

दिल्ली चुनाव के मद्देनज़र: जनता ठहरी भोली भाली ------------------------------- अबकी बारी दिल्ली वाली, सबकी बातें मस्के वाली।। सपने बाँटो और रिझाओ, जनता ठहरी भोली भाली।। 'आप' प्रलोभन दिखलाते हो, हम खुद के श्रम का खाते हैं। झूठे वादे, झूठी आशा, 'आप' यही लेकर आते हैं।। हम क्यों झाँसे में आ जाएं, चाल आपकी देखी भाली।। सपने बाँटो और रिझाओ, जनता ठहरी भोली भाली।। दिखते नये नये हथकंडे, सबके अपने अपने फंडे। हरे, तिरंगे, नीले, भगवे, अपने झंडे, अपने डंडे।। हिन्दू मुस्लिम अगड़ा पिछड़ा, वही सियासत वोटों वाली। समझ न पाती कुटिल इरादे, जनता ठहरी भोली भाली।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

मुक्तक : उनको कौन जगाए।

मुक्तक कुछ जागे हैं, कुछ सोये हैं। कुछ अपने में ही खोये हैं।। लेकिन उनको कौन जगाये। जो जागे हैं, पर सोये हैं।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

नववर्ष मात्र इतना करना

नववर्ष मात्र इतना करना पूरा करना सबका सपना चहुँ ओर शांति सुख चैन रहे माँ बहनों का सम्मान रहे वहशी हैवान दरिंदों से नारी की अस्मत बची रहे फिर हो कायम गौरव अपना नववर्ष मात्र इतना करना। नव युवक देश का मान करें सब राष्ट्रवाद का गान करें भारत माता के वैभव का हर पल हर क्षण सम्मान करें सबके हाथों में फहराये मात्र तिरंगा ही अपना हों कृषक सुखी संपन्न सभी वो आत्मघात नहिं करे कभी फसलों का समुचित मूल्य मिले होगा प्रसन्न वो कृषक तभी। भारत गाँवों में बसता है पूरा करना उनका सपना। अब जाति धर्म का द्वेष मिटे, आतंकवाद का दंश हटे, सीमाएं सभी सुरक्षित हों नापाक इरादे सभी मिटे संपूर्ण विश्व में कायम हो भारत का ही गौरव अपना नववर्ष मात्र इतना करना। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद। 04.01.2020

रूढ़ियों को तोड़िए

रूढ़ियों को तोड़िए, धर्मांधता को छोड़िए। और सबको राष्ट्र की धारा में लाकर जोड़िए।। हैं नहीं केवल अँधेरे, रौशनी भी है यहाँ। बस जरा अपने ह्रदय की खिड़कियों को खोलिए।। कहीं बढ़कर ये स्वयं अपना ही मुख न नोंच लें। हाथ के नाखून को बढ़ने से पहले तोड़िए।। हिंदू, मुसलमाँ सिक्ख, ईसाई की चर्चा छोड़कर। सभी का इन्सानियत से आज नाता जोड़िए।। देश उपवन है यहाँ पर हर तरह के फूल हैं। कृष्ण सबको एक माला में पिरोकर जोड़िए। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।।