चलो अब लौटें अपने गाँव
प्रवासी मजदूरों की वापसी पर
तीन दोहे
जाना मीलों दूर है, थके हुए हैं पाँव
फिर भी चलते जा रहे, वापस अपने गाँव।।
याद आ रहे हैं बहुत, घर आँगन खलिहान।
वो मक्के की रोटियाँ, वो बरगद की छाँव।।
विपदा के इस दौर में, सबने छोड़ा साथ।
ध्वस्त सभी सपने हुए, लौटे खाली हाथ।
गीत
चलो अब लौटें अपने गाँव
उखड़ने लगे यहाँ से पाँव।
चलो अब लौटें अपने गाँव।
बुला रहा है बूढ़ा पीपल,
अरु बरगद की छाँव।
चलो अब लौटें अपने गाँव।
शहर की चकाचौंध में हम,
गाँव को बिल्कुल भूल गये।
छोड़ अपनी खेती बाड़ी,
चाकरी में ही मगन भये।
कालचक्र कुछ ऐसा घूमा,
जीवन पर है दाँव,
चलो अब लौटें अपने गाँव।
समय ने बदली अपनी चाल।
हुआ है बुरा सभी का हाल।।
निभाया नहीं किसी ने साथ।
चल दिये सभी छुड़ाकर हाथ।।
बेबस बेघर पड़े सड़क पर,
दिखे न कोई ठाँव।
चलो अब लौटें अपने गाँव।।
गाँव में सब ही थे अपने।
शहर में हैं केवल सपने।
जब तलक रहे गाँठ में दाम,
दोस्त सब लगते थे अपने।
द्वार सभी के बंद हो गये,
मिली न कोई ठाँव।
चलो अब लौटें अपने गाँँव।
गाँव में अपना है खलिहान,
भले है कच्चा वहाँ मकान,
स्वर्ग ही बसता है इसमें,
शहर तो बना हुआ शमशान।
लौट के बुद्धू घर को आये,
वापस उल्टे पाँव।
चलो अब लौटें अपने गाँव।
श्रीकृष्ण शुक्ल।
MMIG -69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद।
मोबाइल नं. 9456641400
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