दिल्ली : क्यों जली
दिल्ली :क्यों जली।
दिल्ली को सुलगाने की पटकथा शाहीन बाग में ही लिखी जा रही थी। पूरे शासन प्रशासन का ध्यान शांतिपूर्ण धरने पर लगा था जहाँ तिरंगा था, भारत माता की जय के नारे थे, बिरयानी थी और बंद सड़क थी। तमाम लोगों को परेशानी हो रही थी लेकिन उनकी चिंता न तो सरकार को थी, न पुलिस को और न ही सुप्रीम कोर्ट को। न्यायालय यह तो कह रहा था कि धरने की आड़ में आप सड़क बंद नहीं रख सकते लेकिन पुलिस को बलपूर्वक धरना खत्म कराने का निर्देश भी नहीं दे रहा था, उल्टे धरनाधर्मियों से वार्ता करने के लिये लगातार प्रतिनिधि भेज रहा था। न्यायालय का काम ये कब से हो गया, ये समझ से परे है।
धरने वाले लोगों ने इसे सरकार की, पुलिस की कमजोरी माना और यह भी जान लिया कि न्यायालय भी इस मामले में खुलकर हस्तक्षेप नहीं करेगा।
इसी की आड़ में दंगे की पटकथा लिखी गयी। छतों पर पत्थर, पैट्रोल बम, आदि इकट्ठे किये गये और जब सारी तैयारी हो गयी तो जाफराबाद में भी सड़क पर धरना शुरू कर दिया गया। विरोध हुआ तो हिंसा शुरू कर दी गयी। यहाँ भी दो दिन तक पुलिस की निष्क्रियता ने उपद्रवियों का मनोबल और बढ़ा दिया जिसका नतीजा तीसरी रात में भयंकर आगजनी, पथराव, पैट्रोल बमों से हमला व मारकाट के रूप में सामने आया।
यहाँ प्रशासन की भी बहुत बड़ी लापरवाही रही। यदि पहले ही दिन पर्याप्त पुलिस बल इन इलाकों में लगा दिया जाता तो दंगा इतना नहीं भड़कता, लेकिन प्रशासन की लापरवाही ने इतने लोगों की जान लील ली, और तमाम लोगों की दुकानें और उद्योग जलाकर उन्हें सड़क पर ला दिया।
अब आवश्यकता है तमाम सीसीटीवी कैमरों व अन्य उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर दंगाइयों को चिन्हित करके कठोरतम दंड दिया जाये और उनकी संपत्ति कुर्क करके क्षतिपूर्ति की जाये, जैसा योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में किया।
जब दंगाइयों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे होंगे और उनकी संपत्ति से क्षतिपूर्ति की जायेगी तभी लगेगा कि वाकई प्रशासन काम कर रहा है।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
दिल्ली को सुलगाने की पटकथा शाहीन बाग में ही लिखी जा रही थी। पूरे शासन प्रशासन का ध्यान शांतिपूर्ण धरने पर लगा था जहाँ तिरंगा था, भारत माता की जय के नारे थे, बिरयानी थी और बंद सड़क थी। तमाम लोगों को परेशानी हो रही थी लेकिन उनकी चिंता न तो सरकार को थी, न पुलिस को और न ही सुप्रीम कोर्ट को। न्यायालय यह तो कह रहा था कि धरने की आड़ में आप सड़क बंद नहीं रख सकते लेकिन पुलिस को बलपूर्वक धरना खत्म कराने का निर्देश भी नहीं दे रहा था, उल्टे धरनाधर्मियों से वार्ता करने के लिये लगातार प्रतिनिधि भेज रहा था। न्यायालय का काम ये कब से हो गया, ये समझ से परे है।
धरने वाले लोगों ने इसे सरकार की, पुलिस की कमजोरी माना और यह भी जान लिया कि न्यायालय भी इस मामले में खुलकर हस्तक्षेप नहीं करेगा।
इसी की आड़ में दंगे की पटकथा लिखी गयी। छतों पर पत्थर, पैट्रोल बम, आदि इकट्ठे किये गये और जब सारी तैयारी हो गयी तो जाफराबाद में भी सड़क पर धरना शुरू कर दिया गया। विरोध हुआ तो हिंसा शुरू कर दी गयी। यहाँ भी दो दिन तक पुलिस की निष्क्रियता ने उपद्रवियों का मनोबल और बढ़ा दिया जिसका नतीजा तीसरी रात में भयंकर आगजनी, पथराव, पैट्रोल बमों से हमला व मारकाट के रूप में सामने आया।
यहाँ प्रशासन की भी बहुत बड़ी लापरवाही रही। यदि पहले ही दिन पर्याप्त पुलिस बल इन इलाकों में लगा दिया जाता तो दंगा इतना नहीं भड़कता, लेकिन प्रशासन की लापरवाही ने इतने लोगों की जान लील ली, और तमाम लोगों की दुकानें और उद्योग जलाकर उन्हें सड़क पर ला दिया।
अब आवश्यकता है तमाम सीसीटीवी कैमरों व अन्य उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर दंगाइयों को चिन्हित करके कठोरतम दंड दिया जाये और उनकी संपत्ति कुर्क करके क्षतिपूर्ति की जाये, जैसा योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में किया।
जब दंगाइयों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे होंगे और उनकी संपत्ति से क्षतिपूर्ति की जायेगी तभी लगेगा कि वाकई प्रशासन काम कर रहा है।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
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