गज़ल 'आशियाँ ही आशियाँ'

आशियाँ ही आशियाँ (गज़ल)

जिन दरख्तों को गिराना चाहती हैं आँधियाँ।।
कुछ परिन्दों ने बना रक्खे हैं उनमें आशियाँ।

कल यहाँ पर खेत थे बस और कुछ पगडंडियाँ।
अब यहाँ पर दूर तक हैं आशियाँ ही आशियाँ।।

खेत थे, खलिहान थे, कुछ बाग़ थे, कुछ बस्तियाँ।
बिल्डिंगें हैं, मॉल हैं, कुछ टॉवरें, कुछ चिमनियाँ।।

इस नदी के तीर पर जबसे बनी हैं बस्तियाँ।
जी नहीं पाती हैं तबसे इस नदी में मछलियां।।

चूसने मकरंद भँवरे अब यहाँ भी आ गये।
आज इन गुंचों से गायब हो रही हैं तितलियां।

बाप बेटे की यहाँ आपस में बनती ही नहीं।
फासला इक उम्र का है दो दिलों के दरमियाँ।।

क्या करें कैसे करें किससे करें अब गुफ्तगू।
'कृष्ण' अपने साथ बस दीवार दर या खिड़कियाँ।।

श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG-69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद। (उ.प्र.)
244001
मोबाइल नं. 9456641400

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