शाहीन बाग का प्रभाव
शाहीन बाग का प्रभाव।
मेरे विचार से शाहीन बाग प्रकरण भाजपा के लिये भारी पड़ा।
शाहीन बाग से एक संदेश ये अवश्य गया कि भाजपा की केंद्र सरकार ऐसे धरना प्रदर्शनों से सख्ती से निपटने में अक्षम है।
क्योंकि देश में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि धरना प्रदर्शन के कारण कोई सड़क बंद कर दी गयी हो और प्रशासन ने उसे न खुलवाया हो। यहाँ तो सरकार ने धरना समाप्त करवाने की कोई कोशिश नहीं की बल्कि उसका सहारा लेकर ध्रुवीकरण की कोशिश करती रही।
यही कारण हुआ कि धरने वालों के हौसले बढ़ते चले गये और आज देश के तमाम शहरों में ऐसे धरने हो रहे हैं।
शाहीन बाग का धरना भी खत्म करवाया जा सकता था।
पुलिस, महिला पुलिस, तथा आर ए एफ आदि बल लगाकर धरना देनेवालों को घेरकर निरुद्ध करना चाहिए था, और मार्ग खुलवाना चाहिए था। महिलाएं और बच्चे यदि धरने पर बैठे हैं, तो क्या उन्हें सड़क रोककर आम जन को असुविधा पहुँचाने की आजादी दी जानी चाहिए।
वहाँ तमाम राजनेताओं ने भड़काऊ भाषण दिये। उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई। सिर्फ उसका प्रोपेगेंडा करके ध्रुवीकरण की कोशिश होती रही।
इससे तो यही संदेश गया कि भाजपा भी धरना खत्म नहीं करवाना चाहती। उस पर एक बयान ये भी आया कि ग्यारह तारीख को भाजपा की सरकार बनते ही एक घंटे में शाहीन बाग खाली हो जायेगा।
जनता मूर्ख थोड़े ही है। उसे तो पहले से पता है कि दिल्ली की पुलिस केंद्र के अधीन है। केंद्र चाहे तो एक घंटे में शाहीन बाग खाली हो जायैगा।
कुल मिलाकर शाहीन बाग के इस प्रकरण से भाजपा को नुकसान ही हुआ।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
12.02.2020.
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