जीवन की गज़ल

जीवन की गज़ल

हाथ नहीं लग पायी मंजिल,
चलते चलते शाम हो गयी।

बात अभी तक रही दिलों में,
जाने कैसे आम हो गयी।

अन्जाना पथ चलते चलते,
यूँ ही उम्र तमाम हो गयी।

साथ चल सकें अंत तलक वो,
कोशिश भी नाकाम हो गयी।

राह दिखायी जिसने सबको,
आज वही बदनाम हो गयी।

'कृष्ण' गज़ल जीवन की देखो,
बीच बहर अंजाम हो गयी।

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

Comments

Popular posts from this blog

आठ फरवरी को किसकी होगी दिल्ली।

ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I

होली पर मुंह काला कर दिया