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Showing posts from 2025

बाबरी गिरने की कहानी

 1.अशोक सिंघल जी मंदिर में रामलला विराजमान करने के लिए पाँच लोग इकट्ठा हुए थे , महंत दिग्विजयनाथ , बाबा राघवदास ,  बाबा अभिराम दास, रामचन्द्र परमहंस और हनुमान प्रसाद पोद्दार। नानाजी देशमुख का नाम भी इसमे आता है पर उन्होंने न कभी इसे स्वीकार किया न खंडन किया।   महंत दिग्विजयनाथ सिसोदिया राजपूत थे , बप्पा रावल और महाराणा प्रताप के प्रत्यक्ष वंशज। उनके बचपन का नाम राणा नान्हू सिंह था। चाचा ने उनकी संपत्ति हड़पने के लिए मात्र सात वर्ष कि उम्र में नाथ योगी फूलनाथ को सौंप दिया था। और अफवाह फैला दिया कि उनका भतीजा मेले में खो गया है। किस्मत उन्हें गोरखनाथ  मंदिर ले आई। वहाँ उन्होंने एक ईसाई कॉलेज सेंट एंड्रूस से अपनी पढ़ाई की। अच्छा लॉन टेनिस खेलते थे और अंग्रेजी बोलते थे।  क्रांतिकारी साधु थे और चौरा-चौरी कांड में जेल भी गए थे।  बाबा राघवदास पुणे के चित्तपावन ब्राह्मण थे , काँग्रेस के हिंदुत्ववादी धडे के प्रमुख नेता थे। 1948 मे अयोध्या मे विधानसभा का उपचुनाव होने वाला था। सोशलिस्टों के तरफ से आचार्य नरेंद्रदेव उम्मीदवार थे। फैजाबाद के मुसलमानों में उनकी मजबूत ...

जिस वृक्ष की डाल पर बैठे हैं, उसी को काट रहे हैं हम लोग

 जिस वृक्ष की डाल पर बैठे हैं, उसी को काट रहे हैं हम लोग प्रत्येक वर्ष सितंबर के महीने का अंत होते होते जैसे ही मौसम में थोड़ी ठंडक शुरु होती है, वातावरण में धुंध और घुटन के कारण सांस लेना मुश्किल होने लगता है! सुबह को टहलने वाले लोग भी वातावरण में व्याप्त इस प्रदूषण के कारण परेशान होते हैं, यद्यपि वे स्वस्थ रहने के लिये टहलने निकलते हैं, लेकिन उल्टे बीमारी लेकर आ जाते हैं! हैरानी की बात तो यह है कि अभी तक सरकारों ने इस प्रदूषण के कारणों पर कोई गंभीर चिंतन नहीं किया, न ही कोई कार्यक्रम चलाया, बस किसानों द्वारा खेतों में पराली जलाने, व दीवाली पर आतिशबाजी पर प्रदूषण का ठीकरा फोड़ा जाता रहा, जबकि अभी कुछ दिनों पूर्व ही हुए अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि प्रदूषण के कारकों में पराली के धुंए का योगदान नगण्य है!  यही बात दीवाली की आतिशबाजी के संदर्भ में भी कही जा सकती है, क्योंकि उससे भी जो प्रदूषण होता है, वह केवल एक दिन के लिये होता है, जिसका प्रभाव अगले दिन तक समाप्त हो जाता है! खेतों में पराली जलाने का कार्य भी पंद्रह बीस दिनों चलता है! वैसे भी पराली तो मात्र सूखी पत्तियां हैं, सूखी प...

हमें श्री राम सरीखा बनना होगा।

 हमें श्री राम सरीखा बनना होगा। विजयादशमी का पर्व हम सभी ने धूमधाम से मनाया, इस पर्व को दशहरा भी कहा जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की‌ विजय का पर्व है। विजयादशमी के दिन ही श्री राम ने लंकेश रावण का वध किया था। वह लंकेश जो परम विद्वान था, वेद शास्त्रों का ज्ञाता महान पंडित, ब्राह्मण था, पृथ्वी पर सर्वाधिक बलवान था, जिसने नव गृहों को भी अपना बंदी बना लिया था, जिससे देवता भी भय खाते थे, भला उस रावण का वध करने की श्री राम को क्यों आवश्यकता पड़ी।  श्री रामचरितमानस में प्रभु श्री राम के जन्म के संदर्भ में लिखित एक दोहा ही रावण के वध के कारण को वर्णित करने के लिये पर्याप्त है। वह दोहा है: विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार। निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुण गो पार।। उस समय पृथ्वी पर अत्याचारी दानवों का इतना आतंक था कि ब्राह्मण अपना पूजा पाठ भी नहीं कर सकते थे, रावण से संरक्षण प्राप्त राक्षस उनके यज्ञ विध्वंस कर देते थे, मारते पीटते थे, लूटपाट करते थे, सुंदर स्त्रियां भी सुरक्षित नहीं थीं। स्वयं रावण भी जिस पर मोहित हो जाता था उससे जबरन विवाह करना चाहता था। मयदानव की पुत्री मंद...

लोकसभा में संविधान पर चर्चा में प्रधानमंत्री जी ने विपक्ष की हवा निकाल दी।

 लोकसभा में संविधान पर चर्चा में प्रधानमंत्री जी ने विपक्ष की हवा निकाल दी। दिनांक 13.दिसंबर के संपादकीय 'चलिए गतिरोध तो टूटेगा' में आदरणीय वत्स जी ने सही लिखा है कि राहुल गांधी सहित समस्त विपक्ष संसद में कोई चर्चा होने ही नहीं देना चाहता हैं। यही कारण है कि संसद की कार्यवाही शुरु होते ही वह शोर शराबा शुरु कर देते हैं और कार्यवाही नहीं चलने देते। कांग्रेस तो वही घिसा पिटा विषय लेकर हंगामा करती जा रही है। अडाणी पर चर्चा के साथ साथ उन्होंने संविधान का विषय भी उठा दिया। वह समझते थे कि सरकार इस विषय को भी गंभीरता से नहीं लेगी, लेकिन सरकार ने संविधान पर चर्चा को मान लिया तथा दिनांक 13 और 14 दिसंबर संविधान पर चर्चा के लिये तय हुए। चर्चा की शुरुआत रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की और उन्होंने कहा कि कांग्रेस संविधान को हाईजैक करने की कोशिश करती है, पीढ़ियों से कांग्रेस के नेताओं ने संविधान को परिवार की जेब में ही रखे देखा है, यही वजह है कि हम जहां संविधान को माथे से लगाते हैं विपक्ष के नेता उसे जेब में लेकर चलते हैं। कांग्रेस परिवार की नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने संसद में अपना पहला भाष...

महाकुंभ: सामाजिक समरसता का उत्सव

 महाकुंभ: सामाजिक समरसता का उत्सव महाकुंभ में मौनी अमावस्या के दिन डुबकी लगाने के लिये आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है।  वस्तुत: यह सनातन चेतना की‌ जागृति का परिणाम है, जो हिन्दू सोया पड़ा था उसकी जागृति तो काशी में विश्वनाथ धाम तथा अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से ही शुरू हो गयी थी, यदि कुछ चेतना अब भी सुप्त थी तो वह महाकुंभ के इस अवसर पर जागृत हो गयी। निरंतर मीडिया से जानकारी मिल रही थी कि यह महाकुंभ 144 वर्ष में आया है, और हमारी पीढ़ी अत्यंत सौभाग्यशाली है जिसे इस महाकुंभ का हिस्सा बनने का अवसर मिला है। इसके बाद महाकुंभ 144 वर्ष बाद 2169 में आयेगा, तब तक 3-4 पीढ़ियां निकल जायेंगी। महाकुंभ की चाक चौबंद व्यवस्था की जानकारी और फोटोज भी मीडिया निरंतर दिखा रहा है। इन सब कारणों से श्रद्धालुओं में अत्यंत उत्साह है। वस्तुतः कुंभ हमारी सामाजिक समरसता का महानतम उत्सव है। सरकार का काम तो केवल प्रबंधन है, अन्यथा सरकार व्यवस्था न करती तब भी लोग महाकुंभ में आते और स्नान करते। व्यवस्था करना सरकार की जिम्मेदारी है, जो वह पूरृण कुशलता के साथ कर रही है। कुंभ में ही वास्तविकता में सनातन ...

मिडिल क्लास के सपनों को पंख लगाने वाला बजट

 मिडिल क्लास के सपनों को पंख लगाने वाला बजट  ------------------------------- आज संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने यद्यपि बजट भाषण की शुरुआत करते हुए इसे महिलाओं व किसानों पर केंद्रित बजट बताया था, और बजट भाषण के दौरान भी जितनी घोषणाएं की जा रही थीं उनसे भी यही अनुमान लग रहा था कि बजट महिलाओं, किसानों, छोटे कारोबारियों को दृष्टिगत रखते हुए बनाया गया है। मध्यम वर्ग तथा उच्च आय वर्ग वालों की रुचि मुख्यतः बजट में आयकर दरों और मिलने वाली छूट तक सीमित रहती है। जो सामान्यतः बजट भाषण के अंत में की जाती हैं। बजट भाषण समाप्त होते होते भी वित्त मंत्री ने यह तो कहा कि आयकर का बिल लाकर नया कानून बनाया जायेगा। आयकर को आसान बनाया जायेगा। इससे यह लगा कि अभी आयकर में कुछ नहीं होगा और बिल का इंतजार करना पड़ेगा। लेकिन इसके तुरंत बाद ही वित्त मंत्री जी ने आयकर के संदर्भ में जो घोषणाएं करनी प्रारंभ कीं उससे आयकर देने वाले हम जैसे मध्य आय वर्ग वालों की खुशी का ठिकाना न रहा। वस्तुतः आयकर छूट की सीमा तो उम्मीद से भी अधिक बढ़ा दी गई है। अभी तक यह सात लाख थी और आशा की जा रही थी कि शायद सरकार इसे...

अंततः दिल्ली आपदा से मुक्त हो गई

1. दिल्ली चुनाव : आठ तारीख का इंतजार  दिल्ली में चुनाव की तारीख जैसे जैसे पास आती जा रही है वैसे वैसे आम आदमी पार्टी की ओर से चुनाव प्रचार मर्यादा की सारी सीमाएं लांघता जा रहा है। आम आदमी पार्टी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल रोज एक नया झूठा जुमला उछाल देते हैं। वस्तुतः केजरीवाल को भी अहसास हो गया है कि इस बार उनकी पार्टी का जीतना आसान नहीं है, यही कारण है कि वह निरंतर वोटर्स को डराने का उपक्रम कर रहे हैं, जैसे कि अगर भाजपा की सरकार आई तो उनकी जिंदगी मुश्किल हो जायेगी। मुफ्त की बिजली पानी बंद हो जायेगी, मुहल्ला क्लीनिक बंद हो जायेंगी, मुफ्त की जो सुविधाएं मिल रही हैं वह सब भाजपा सरकार बंद कर देगी।  सबसे बड़ा और अविश्वसनीय झूठ तो उन्होंने ये बोला कि हरियाणा में भाजपा सरकार ने यमुना के पानी में जहर मिला दिया और वह ऐसा जहरीला पानी था जो ट्रीटमेंट प्लांट से भी नहीं निकाला जा सकता‌ था, इसलिए हमने उस पानी को दिल्ली में आने से रोक लिया। यदि ये पानी दिल्ली में घरों तक पहुंच जाता तो जेनोसाइड (नरसंहार) हो जाता। केजरीवाल का यह बयान खुद उनको ही उपहास का पात्र बना रहा है। य...

भीड़ की मानसिकता या रेलवे का गैरजिम्मेदाराना रवैया

 क्या थी हादसे की वजह : भीड़ की मानसिकता या रेलवे का गैरजिम्मेदाराना रवैया नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में 18 यात्रियों की जान चले जाने की घटना बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह रेलवे की कार्य प्रणाली पर भी लगाती है। भले ही रेलवे इसे भीड़ की मानसिकता के कारण हुई भगदड़ का मामला बताकर पल्ला झाड़ रहा हो, जिसे दो गाड़ियों (प्रयागराज एक्सप्रेस और प्रयागराज स्पेशल) के एक जैसे नाम होने के कारण प्लेटफार्म के अनाउंसमेंट के बाद उत्पन्न हुई भ्रम की स्थिति में यात्रियों की भीड़ द्वारा एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म की ओर जाने के दौरान कुछ यात्रियों के गिरकर दब जाने के कारण होने वाला एक हादसा बताया जा रहा है। मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार स्टेशन पर प्रयागराज जाने वाले यात्रियों की अत्यधिक भीड़ थी। प्रयागराज एक्सप्रेस प्लैटफॉर्म 14 से जानी थी, और उससे जाने वाले यात्री वहॉं जा रहे थे। तभी अनाउंसमेंट हुआ कि प्रयागराज स्पेशल प्लेटफार्म 16 से जाएगी। इससे भ्रमित होकर प्रयागराज एक्सप्रेस के यात्री भी प्लेटफार्म 16 की ओर दौड़े और संकरी सीढ़ियों पर कुछ लोगों के गिरने और दबने से हादसा हुआ जिसमें 18 यात्रिय...

ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है,

 ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है, अलविदा मनोज कुमार जी, अलविदा  आज सुबह ही टीवी पर अपने समय के दिग्गज अभिनेता व निर्देशक मनोज कुमार के निधन का समाचार मिला, जो ह्रदय को क्षुब्ध कर गया। मनोज कुमार अपने समय के सशक्त और लोकप्रिय अभिनेता थे। उनकी मृत्यु आज प्रातः 3.30 बजे मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में हुई। इस समय उनकी आयु 87 वर्ष थी। उनका जन्‍म 13 जुलाई 1937 को ऐबटाबाद पाकिस्तान में हरिकिशन गिरि गोस्वामी के घर में हुआ था। विभाजन के समय उनका पर‍िवार दिल्ली आ गया था।  फिल्मों से उन्हें लगाव था ही, उन्हें अभिनय की प्रेरणा  फिल्म शबनम में दिलीप कुमार के किरदार से मिली, और वह मुंबई आ गये। उनके निधन से भारतीय फिल्म जगत ने एक ऐसी सशक्त शख्सियत को खो दिया जिनके स्थान की पूर्ति होना बहुत मुश्किल है। मनोज कुमार जी एक सशक्त अभिनेता ही नहीं थे, बल्कि  अभिनय के साथ साथ वह एक अच्छे निर्देशक भी थे। अपनी फिल्म उपकार के साथ ही उन्होंने देश भक्ति की पृष्ठभूमि को लेकर कई फिल्मों का निर्माण किया और उनकी ये सभी फिल्में अपने समय की सुपरहिट फिल्में रहीं। अपनी दे...

नरेन्द्र मोदी : एक जुझारू, साहसी व दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व ।

 नरेन्द्र मोदी : एक जुझारू, साहसी व दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व । आज हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी का जन्म दिन है। पिछत्तर वर्ष पूर्व आज ही के दिन उनका जन्म गुजरात के वड़नगर में एक साधारण परिवार में हुआ था। आपके पिताजी वड़नगर के रेलवे स्टेशन पर चाय का स्टाल लगाते थे। किशोर अवस्था में मोदी जी भी अपने पिता के साथ प्लेटफार्म पर व गाड़ियों में चाय बेचने का कार्य करते थे। उस समय कौन जानता था कि एक निम्न मध्यम वर्ग के साधारण परिवार में जन्मा यह बालक आगे चलकर भारत का प्रधानमंत्री बनेगा। किंतु समय और भाग्य कब किस दिशा में ले जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता, साथ ही यह भी सत्य है कि व्यक्ति का पुरुषार्थ उसे सदैव अपने कार्यक्षेत्र में सफलता दिलाता है और किसी भी परिस्थिति में अग्रणी बनाता है। यह बात मोदी जी पर शत् प्रतिशत सही दिखती है। छात्र जीवन में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सदस्यता ग्रहण करके राष्ट्र की सेवा का संकल्प लिया, और संघ के प्रचारक का कठोर दायित्व ग्रहण किया। धीरे धीरे संघ में नयी जिम्मेदारियां मिलती गईं और उनका कुशलता से निर्वहन करते रहे। संघ से ही भाजपा में आये और अप...

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 आदरणीय/आदरणीया यू ट्यूब पर सुनिये मेरी रचनाएं और मेरे वीडियो को लाइक कीजिये । मुझे विश्वास है कि आपने यह यू ट्यूब चैनल सब्सक्राइब कर लिया होगा । यदि अभी तक आपने नहीं किया है तो कृपया कर  लीजिए ।    आपसे यह भी विनम्र निवेदन है कि अपने परिवार में सभी मोबाइल फोन में यू ट्यूब पर इस चैनल को सब्सक्राइब कर लीजिए ।  आपको सिर्फ निम्न लिंक पर क्लिक करना है और सब्सक्राइब कर 🔔 आइकॉन पर क्लिक करना है ।   कृपया इस पोस्ट को अपने परिचितों और मित्रों को भी फॉरवर्ड/शेयर कर दीजिए।   ⬇️⬇️⬇️⬇️ https://youtube.com/playlist?list=PLfw8_01RK-fgmkG46P2JjgzkCVUNO40X0&si=hlMx3C_0rtM9E6z6

नमन उन्हें, जिन्होंने हमारा‌ व्यक्तित्व निर्माण किया

 नमन उन्हें, जिन्होंने हमारा‌ व्यक्तित्व निर्माण किया आज शिक्षक दिवस है। देशभर में हम सब अपने अपने शिक्षकों को याद करते हैं, सम्मानित करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने में तमाम शिक्षकों का योगदान रहता है किन्तु उनमें से एक या दो ही ऐसे होते हैं जिनका उसके व्यक्तित्व के निर्माण में उल्लेखनीय योगदान होता है। इस संदर्भ में अपनी आध्यात्मिक गुरु माताजी श्री निर्मला देवी जी को सादर शत् शत् नमन करता हूॅं जिन्होंने मुझे आध्यात्मिक चेतना प्रदान कर जीवन को आध्यात्मिकता में ढालने का अवसर प्रदान किया और मेरा संपूर्ण व्यक्तित्व ही परिवर्तित हो गया।  लेकिन यहॉं हम भौतिक व सामाजिक जीवन में मार्गदर्शन करने वाले गुरुजनों की बात करेंगे। वैसे तो मनुष्य के सर्वप्रथम गुरु उसके माता-पिता ही होते हैं और उनसे ही तमाम प्राथमिक आचार व्यवहार सीखने को मिलता है। मेरे भी प्रथम गुरु मेरे माता-पिता ही थे। हमारा परिवार एक संयुक्त परिवार था। हमारे साथ ही हमारे बाबा (दादाजी) भी रहते थे। हमारे बाबा स्वयं एक शिक्षक थे और अत्यंत प्रतिष्ठित शिक्षक थे। जब मैं तीन वर्ष का ही था तब से ही उन्होंने मुझ...

पानी पर तैरती चोटियां।

 पानी पर तैरती चोटियां। कहते हैं मनुष्य को बचपन की घटनाएं, तीन चार साल की अवस्था के बाद ही याद रहती है। बात काफी हद तक सही भी है क्योंकि मैं भी जब अपने बचपन में झांकता हूॅं तो स्कूल में प्रवेश के समय की और पढ़ाई के दौरान घटी कुछ घटनाएं ही याद आती हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि अत्यंत छोटी अवस्था में घटी एक दो घटनाएं मुझे अब भी याद हैं। उस समय मेरी आयु बमुश्किल दो वर्ष की होगी। हमारे मौसाजी इलाहाबाद बैंक में शाखा प्रबंधक थे, और उनका स्थानांतरण कलकत्ता हो गया था। उसी समय में हम सपरिवार कलकत्ता घूमने गये थे। हमारे पिताजी, माताजी, मेरे से तीन वर्ष बड़ी हमारी बहन और दो वर्ष का मैं।  कलकत्ता यात्रा की सिर्फ दो यादें मेरे स्मृति पटल पर अंकित हैं। एक तो वहां हम पिताजी की गोद में कलकत्ता की सड़कों पर घूमने निकले थे, वहीं सामने से ट्राम आयी और हमारे पिताजी ने हाथ दिखाने को कहा, हमने हाथ उठाया और ट्राम रुक गयी और हम सभी ट्राम में चढ़ गये। वह दृश्य स्मृति पटल पर अब तक अंकित है। दूसरी घटना कुछ इस प्रकार है कि हमारा व मौसाजी का परिवार हुगली नदी में नहाने के लिए गये थे। हुगली नदी का वह मटम...

जब होली खेलने के चक्कर में जान पर बन आई

 जब होली खेलने के चक्कर में जान पर बन आई बात वर्ष 1959 की है। हमारी उम्र पांच वर्ष से कुछ अधिक थी। होली के बाद दुल्हैंडी का दिन था। सुबह लगभग 8 बजे हमारे पिताजी ने हमें तैयार किया, स्वयं झकाझक सफेद कुर्ता पायजामा पहना। बाल्टी में रंग घोला गया। उन दिनों बांस की पिचकारियां ही बाजार में मिलती थीं, यद्यपि पीतल की पिचकारियां भी होती थीं, लेकिन वह मंहगी होती थीं। बांस की पिचकारी में अंदर जो डंडी होती थी उस पर नीचे की ओर कपड़ा लपेट कर मोटा किया जाता था और वह वाशर का काम करता था। पिताजी ने पिचकारी तैयार करके हमें दे दी और सामने खड़े होकर कहा रंग छोड़ो। हमने भी पिचकारी में रंग भरकर उनके कुर्ते पायजामे पर बढ़िया चित्रकारी कर दी।  इस प्रकार पिचकारी की टैस्टिंग पूरी हो गयी।  इसके बाद हम पिताजी के साथ पिचकारी और रंग की बाल्टी लेकर छत पर चले गये ताकि गली में आने जाने वालों पर रंग डाल सकें। हमारे मकान में बीच में बड़ा सा आंगन था जिसके तीन ओर छज्जा था जिस पर कोई रेलिंग नही थी। हम सभी अक्सर छज्जे पर भाग दौड़ करते रहते थे, जो सामान्य बात थी। छज्जे के बाद बैठक की मुंडेर पर से हम ग...

जब तिगरी मेले में भैंसागाड़ी पलट गयी।

जब तिगरी मेले में भैंसागाड़ी पलट गयी। बात वर्ष १९८९ की है। उस वर्ष हमारा स्थानांतरण बिलासपुर (रामपुर) से कांठ (मुरादाबाद) शाखा में हो गया था। कांठ में बच्चों की पढ़ाई की अच्छी सुविधा न होने के कारण हमने परिवार को मुरादाबाद में अपने पैतृक मकान में ही रखा और खुद दैनिक आवागमन करना शुरू कर दिया। उस वर्ष गंगा स्नान के अवसर पर अचानक सपरिवार तिगरी जाने का कार्यक्रम बन गया। तिगरी मेले में हम अपने विद्यार्थी जीवन में लगभग प्रत्येक वर्ष जाते थे। उद्देश्य यही था कि पत्नी व बच्चों को भी एक बार तिगरी मेला दिखा दिया जाये।  सुबह 8.00 बजे हम सब रोडवेज की तिगरी मेला स्पेशल बस से चल दिये और लगभग 9.30 बजे मेले में पहुॅंच गये। सबसे पहले सीधे घाट पर पहुॅंचे और कपड़े उतार कर गंगा जी में कूद गये। बारी बारी से तीनों बच्चों को भी स्नान करवाया।  तीनों बच्चे छोटे ही थे। बिटिया तो केवल तीन वर्ष की थी। हमारे बाद पत्नी ने स्नान किया। स्नानादि से निवृत्त होकर थोड़ी ठीक ठाक जगह ढूंढकर खाना खाया और गंगाजल पीकर फिर नाव पर सवार होकर गंगा पार जाकर गढ़ का मेला घूमा।  मेले में श्रीमती जी की दिल...

गॉंव की बारात और बैलगाड़ी का सफर

गॉंव की बारात और बैलगाड़ी का सफर बात वर्ष 64-65 की है। हमारे पिताजी के बड़े ममेरे भाई बिलारी के पास गॉंव हजरतनगर गढ़ी में रहते थे। उनके बेटे के‌ विवाह में हमारा पूरा परिवार गया था। बारात गढ़ी से अन्य गॉंव में जानी थी। गॉंव की ही तमाम बैलगाड़ियों में सजे धजे बैल जोड़कर उन बैलगाड़ियों पर सवार होकर बारात अपने गंतव्य की ओर चल दी थी। हम जिस बैलगाड़ी में बैठे थे उसके चालक से धीरे-धीरे हमारी दोस्ती हो गई। बैलगाड़ी में बैठे बैठे ही उन्होंने हमें गाड़ी हॉंकना, नियंत्रित करना, मोड़ना व रोकना आदि, सब सिखा दिया और फिर बैलों की रस्सी हमारे हाथ में दे दी। हमने भी कभी तेज भगाकर तो कभी एकदम रोक कर खूब आनंद लिया। शाम होते होते हम लड़की वालों के गॉंव के पास पहुॅंच गये। गॉंव से लगभग एक किलोमीटर पहले से ही बारात की अगवानी में घरातियों के गॉंव की बैलगाड़ियां सजी धजी तैयार थीं। फिर गॉंव के बाहर बाहर ही बारी बारी से बैलगाड़ियों की रेस हुई। बैलगाड़ियों की अद्भुत प्रतिस्पर्धा का दृश्य हमारे लिये अनोखा था। खैर गॉंव में पहुॅंचने के बाद बारातियों को एक आम के बाग में ठहरा दिया गया।  हमारे लिये यह भी प्रथम...

दादा प्रोफेसर महेंद्र प्रताप : स्मृतियों में

 दादा प्रोफेसर महेंद्र प्रताप : स्मृतियों में स्मृति शेष दादा महेन्द्र प्रताप जी से मेरा सर्वप्रथम साक्षात्कार  वर्ष 1967 में ही हुआ था। उस समय मैं हाईस्कूल का छात्र थाI  वस्तुत: दादा की बड़ी सुपुत्री वंदना जी हमररी बड़ी बहन के साथ प्रताप सिंह कन्या इंटर कालिज में पढ़ती थीं, दोनों मे मित्रता थी, व एक दूसरे के घर आना जाना रहता थाI  ऐसे ही अवसर पर जब दीदी वंदना दीदी के साथ उनके घर जाती थीं तो मुझे उन्हें लिवाने जाना पड़ता थाI मुझे स्मरण है जब मैं पहली बार कटरा नाज स्थित उस मकान में गया था तो दादा ने मेरी पढ़ाई के बारे में व परिवार के बारे में बात की थी, साथ में माताजी भी बैठीं थींI दादा का वह हँसता मुस्कुराता चेहरा आज भी मेरे मनस्पटल पर ज्यों का त्यों अंकित हैI.  तदुपरान्त एक बार रेलवे के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में संगीत व कवि गोष्ठी का कार्यक्रम था, वह कार्यक्रम मनोरंजन सदन में आयोजित हुआ थाI  उस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर दादा महेन्द्र प्रताप जी ने ही की थी, कवियों की संख्या अत्यंत सीमित थीI  उस कार्यक्रम में मैंने सर्वप्रथम उन्हें काव्यपाठ करते ...

बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे कीर्तिशेष ललित मोहन भारद्वाज जी

 बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे कीर्तिशेष ललित मोहन भारद्वाज जी —------------------------------------------------------––- कीर्तिशेष श्री ललित मोहन भारद्वाज जी से यद्यपि मेरा कोई परिचय नहीं था तथापि साहित्यिक मुरादाबाद के पटल पर उनकी रचनाओं को पढ़ने के पश्चात साहित्य व कला के क्षेत्र में उनके विराट व्यक्तित्व का परिचय मिलाI उच्च स्तर के साहित्य सृजन के साथ साथ पत्रिका का संपादन व प्रकाशन, आकाशवाणी में एक्जीक्यूटिव के दायित्व का निर्वहन, थियेटर करना, साथ ही फिल्म में मुख्य भूमिका के रूप में अभिनय करना, ये सभी गुण उनके विलक्षण व्यक्तित्व को दर्शाते हैंI यद्यपि उन्होंने मुक्तकों के साथ साथ तमाम गीत भी लिखे तथापि उनका प्रतिबिम्ब नामक एक ही संग्रह प्रकाशित हुआ  जो एक मुक्तक संगृह हैI इसके अलावा उनकी रचनाएं उन्हीं की पत्रिका प्रभायन के साथ साथ अन्य विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईंI उनकी रचनाओं में उनके आध्यात्मिक चिंतन, तथा जीवन दर्शन का सहज परिचय मिलता हैI उनका मुक्तक संग्रह अध्यात्म, चिंतन और जीवन दर्शन से परिपूर्ण है, इसके साथ ही श्रंगार रस का भी उनके गीतों में समावेश हैI ज...

होली पर दिमागी चकल्लस : बुरा न मानो होली है

 आज मुक्त दिवस है; पटल पर खामोशी है I तो लीजिए एक बिना सिर पैर की हास्य रचना पढ़ लीजिए: होली पर दिमागी चकल्लस : बुरा न मानो होली है आजकल किसी कवि सम्मेलन का संयोजन करना हो तो ये ख्याल रखना पड़ता है कि दो तीन हास्य व्यंग के कवि अवश्य बुलाए जाएं, ताकि श्रोताओं की दिलचस्पी बनी रहे। वस्तुतः आजकल श्रोताओं की रुचि कविताओं और गीतों में कम होती जा रही है, थोड़ा बहुत आकर्षण हास्य व्यंग की कविताओं का शेष है। हास्य कविता लिखना वास्तव में टेढ़ी खीर है। आज के दौर में व्यक्ति अत्यधिक शुष्क और असंवेदनशील हो गया है, मनोविनोद तो जीवन में मानो समाप्त हो गया है। इसीलिये व्यक्ति के तनावग्रस्त मस्तिष्क को हँसने की स्थिति तक ले आना वास्तव में काम तो मुश्किल ही है। यही वजह है कि हास्य कवि अधिकतर चुटकुले सुनाते हैं, या चुटकुलों पर आधारित रचनाएं बनाते हैं।  आजकल अधिकतर हास्य रचनाएं छंदमुक्त, गद्यात्मक शैली में होती हैं। हास्य रचनाओं में प्रस्तुतिकरण भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कहने के ढंग से भी हास्य उत्पन्न होता है। हमने हुल्लड़ मुरादाबादी जी की तमाम रचनाएं सुनीं हैं। वह इस शैली के मास्टर थे। यद्यपि प...

दर्द और पीड़ा के गायक थे श्री राम अवतार त्यागी

 दर्द और पीड़ा के गायक थे श्री राम अवतार त्यागी -–------------------------------------------------ मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं ,  यह पंक्तियां हमने विभिन्न अवसरों पर न जाने कितनी बार सुनीं होंगी, यहाँ तक कि अन्य देशभक्ति गीतों की तरह ही, ये पंक्तियां भी हमें कंठस्थ हो गयीं, लेकिन इन पंक्तियों के रचयिता स्मृति शेष श्री राम अवतार त्यागी जी हमारे ही मंडल में ग्राम कुरकावली, सम्भल के रहनेवाले थे, यह तथ्य मुझे साहित्यिक मुरादाबाद के पटल पर श्री राम अवतार त्यागी जी के संबंध में यदा कदा चर्चाओं में ही ज्ञात हुआ I श्री राम अवतार त्यागी जी के बारे में साहित्यिक मुरादाबाद पटल पर ही उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चल रहे कार्यक्रम में विभिन्न साहित्यकारों के विचारों को पढ़कर उनके विराट व्यक्तित्व का परिचय हुआ I साहित्यिक मुरादाबाद पटल पर ही उनकी तमाम रचनाएं भी पढ़ने को मिलीं जिनसे उनके कृतित्व का आंशिक परिचय मिला, ये थोड़ी सी रचनाएं ही पर्याप्त थीं उनकी रचनाधर्मिता का परिचय कराने में I पटल पर उनकी जितनी रचनाएं पढ़ने को मिलीं वह उनकी उत...

गृहस्थी का मनोविज्ञान

 गृहस्थी का मनोविज्ञान सुनो जी, आज मेरे सर में बहुत दर्द है, बुखार सा भी लग रहा है। आज मुझसे कुछ काम नहीं होगा, सुनीता बिस्तर पर लेटे लेटे श्याम बाबू से बोली। अरे, कोई बात नहीं, तुम आराम करो, कहते हुए श्याम बाबू उठे, फटाफट चाय बनायी, टोस्टर में दो टोस्ट सेके और पत्नी के पास आ कर बोले : लो उठो, चाय पीलो, थोड़ा आराम आ जायेगा। दोनों ने मिलकर चाय पी। चाय पीकर श्याम बाबू ने पत्नी का ब्लड प्रेशर व बुखार नापा; सब कुछ नार्मल था। श्याम बाबू समझ गये कि अकेलेपन और हर वक्त काम करने के कारण सुनीता को मानसिक थकान है। कोरोना के कारण पिछले वर्ष से कहीं बाहर भी नहीं जा सके हैं, इसी कारण स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन आ गया है। फिर भी प्रकट में वह बोले बुखार तो नहीं है, ब्लड प्रेशर भी नार्मल है, ऐसा करो एक क्रोसिन खा लो। दस बजे के बाद डाक्टर साहब से बात करके हाल बताकर दवाई लिखवा लेंगे, और हाँ, खाने की चिंता तुम मत करो, पंडित जी के होटल से स्पेशल थाली मंगवा लेंगे, एक‌ थाली में हम दोनों का काम चल जायेगा, कहते हुए वह पत्नी के पास ही बैठ गये और उसे क्रोसिन देकर आराम से लिटा दिया। थोड़ी ही देर बाद सुनीता उठ ग...