ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है,

 ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है,

अलविदा मनोज कुमार जी, अलविदा 


आज सुबह ही टीवी पर अपने समय के दिग्गज अभिनेता व निर्देशक मनोज कुमार के निधन का समाचार मिला, जो ह्रदय को क्षुब्ध कर गया। मनोज कुमार अपने समय के सशक्त और लोकप्रिय अभिनेता थे। उनकी मृत्यु आज प्रातः 3.30 बजे मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में हुई। इस समय उनकी आयु 87 वर्ष थी।

उनका जन्‍म 13 जुलाई 1937 को ऐबटाबाद पाकिस्तान में हरिकिशन गिरि गोस्वामी के घर में हुआ था। विभाजन के समय उनका पर‍िवार दिल्ली आ गया था।  फिल्मों से उन्हें लगाव था ही, उन्हें अभिनय की प्रेरणा  फिल्म शबनम में दिलीप कुमार के किरदार से मिली, और वह मुंबई आ गये। उनके निधन से भारतीय फिल्म जगत ने एक ऐसी सशक्त शख्सियत को खो दिया जिनके स्थान की पूर्ति होना बहुत मुश्किल है।

मनोज कुमार जी एक सशक्त अभिनेता ही नहीं थे, बल्कि 

अभिनय के साथ साथ वह एक अच्छे निर्देशक भी थे। अपनी फिल्म उपकार के साथ ही उन्होंने देश भक्ति की पृष्ठभूमि को लेकर कई फिल्मों का निर्माण किया और उनकी ये सभी फिल्में अपने समय की सुपरहिट फिल्में रहीं। अपनी देशभक्ति पर आधारित फिल्मों के कारण ही उन्हें भारत कुमार भी कहा जाने लगा था।

उनके अभिनय की शुरुआत 1957 में बनी फिल्म 'फैशन' में एक छोटे से रोल से हुई।  लीड रोल में वह सर्वप्रथम 1960 में बनी फिल्म कांच की गुड़िया में आये। लेकिन उन्हें असली पहचान 1962 में फिल्म 'हरियाली और रास्ता' से मिली।

उनकी सर्वकालीन हिट फिल्मों की बात करें तो वह कौन थी, हरियाली और रास्ता, शहीद, हिमालय की गोद में, 

पहचान, उपकार, पूरब और पश्चिम, शोर, रोटी कपड़ा और मकान, क्रांति आदि ऐसी फिल्में हैं जो आज भी दर्शकों को थिएटर तक खींच लाती हैं।

उनकी फिल्मों में कहानी के साथ साथ संगीत का पक्ष भी बहुत सशक्त होता था। उनकी प्रत्येक फिल्म के एक-दो गाने अवश्य हिट होते थे।

बहुत से गाने तो आज तक लोकप्रिय हैं, जिनमें 

शोर फिल्म का संतोषानंद जी द्वारा लिखा गया कालजयी गीत : एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है, ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है,

उपकार फिल्म का गीत ' मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती,

पूरब और पश्चिम का गाना: है प्रीत जहॉं की रीत सदा, मैं गीत वहॉं के गाता हूॅं,

क्रांति का गाना: जिंदगी की न टूटे लड़ी, प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी,

पहचान का गाना: बस यही अपराध मैं हर बार करता हूॅं, आदमी हूॅं आदमी से प्यार करता हूॅं, आदि आदि।


उन्हें भारतीय सिनेमा और कला में उनके योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा 1992 में पद्म श्री और 2015 में सिनेमा के क्षेत्र में सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इसके अतिरिक्त उन्होंने कई फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीते, जिनमें उपकार और रोटी कपड़ा और मकान के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार शामिल है।


उनके निधन से देश ने एक महान कलाकार और महान देशभक्त को खो दिया। उनकी फिल्में सदैव ही उनकी स्मृतियों को जीवंत रखेंगी और देशभक्ति का संदेश देती रहेंगी। जब जब उनकी फिल्मों के गीत या डॉयलॉग्स कानों में गूॅंजेंगे, स्मृति पटल पर उनकी छवि उभर आयेगी।


तूफान को आना है, आकर चले जाना है, 

जीवन का मतलब तो आना और जाना है,

दो पल के जीवन से एक उम्र चुरानी है,

ज़िन्दगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है।

इन्हीं शब्दों के साथ उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूॅं:

अलविदा मनोज कुमार जी, अलविदा।


श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

Comments

Popular posts from this blog

आठ फरवरी को किसकी होगी दिल्ली।

ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I

होली पर मुंह काला कर दिया