भीड़ की मानसिकता या रेलवे का गैरजिम्मेदाराना रवैया

 क्या थी हादसे की वजह : भीड़ की मानसिकता या रेलवे का गैरजिम्मेदाराना रवैया


नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में 18 यात्रियों की जान चले जाने की घटना बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह रेलवे की कार्य प्रणाली पर भी लगाती है। भले ही रेलवे इसे भीड़ की मानसिकता के कारण हुई भगदड़ का मामला बताकर पल्ला झाड़ रहा हो, जिसे दो गाड़ियों (प्रयागराज एक्सप्रेस और प्रयागराज स्पेशल) के एक जैसे नाम होने के कारण प्लेटफार्म के अनाउंसमेंट के बाद उत्पन्न हुई भ्रम की स्थिति में यात्रियों की भीड़ द्वारा एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म की ओर जाने के दौरान कुछ यात्रियों के गिरकर दब जाने के कारण होने वाला एक हादसा बताया जा रहा है।

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार स्टेशन पर प्रयागराज जाने वाले यात्रियों की अत्यधिक भीड़ थी। प्रयागराज एक्सप्रेस प्लैटफॉर्म 14 से जानी थी, और उससे जाने वाले यात्री वहॉं जा रहे थे। तभी अनाउंसमेंट हुआ कि प्रयागराज स्पेशल प्लेटफार्म 16 से जाएगी। इससे भ्रमित होकर प्रयागराज एक्सप्रेस के यात्री भी प्लेटफार्म 16 की ओर दौड़े और संकरी सीढ़ियों पर कुछ लोगों के गिरने और दबने से हादसा हुआ जिसमें 18 यात्रियों की मृत्यु हो गई।

किंतु क्या ये महज एक हादसा है?  नहीं, ये हादसा नहीं , बल्कि गैर इरादतन हत्या का मामला है। आप इस बात को वाहियात बताकर हॅंसी में भी उड़ा सकते हैं, लेकिन विचारणीय प्रश्न यह है कि इतनी भीड़ उन चारों प्लेटफार्म्स पर इकट्ठी किसने की। एक सवारी गाड़ी में अधिकतम 22 बोगी होती हैं, जिनमें 12 स्लीपर में कुल 864 यात्री जा सकते हैं, 5 एसी बोगी में अधिकतम 320 यात्री, और 2 सामान्य व 1 महिला व दिव्यांग कोच में अधिकतम 270 यात्री सफर कर सकते हैं। अर्थात एक गाड़ी में अधिकतम 1454 यात्री सफर कर सकते हैं। प्लेटफार्म बदलने की स्थिति में स्वाभाविक है कि केवल ये 1454 यात्री ही दूसरी ओर जायेंगे, शेष अपने प्लेटफार्म पर ही रहेंगे। कुछ अन्य यात्री भी उस समय पुल पर आवागमन कर रहे होते हैं लेकिन महज 1454 लोगों के आवागमन से ऐसी भगदड़ नहीं हो सकती।

मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि रेलवे द्वारा प्रति घंटा 1500 जनरल टिकट प्रयागराज के बेचे जा रहे थे। अर्थात 5-6 घंटे में प्रयागराज के 9000 टिकट बेचे जा चुके थे और इन 9000 अधिकृत यात्रियों की भीड़ उस समय प्लेटफार्म 14 व 16 के बीच भाग रही थी। जबकि सामान्य बोगियों की अधिकतम क्षमता दोनों गाड़ियों में क्या थी, यह जानना भी जरूरी है। प्रयागराज एक्सप्रेस में सामान्य यात्रियों की अधिकतम क्षमता लगभग 270 रही होगी, जिसमें पीछे से भी यात्री सफर कर रहे होंगे।

प्रयागराज स्पेशल को यदि पूर्णतः सामान्य भी मान लिया जाये तो इसमें भी अधिकतम 22×90=1980 यात्री सफर कर सकते हैं। दो अन्य गाड़ियां जो लेट थीं उनमें भी 270×2=520 यात्री बैठ सकते थे।

इस प्रकार 4 घंटों में सामान्य यात्रियों को वहन करने की क्षमता केवल 2770 थी, जबकि रेलवे प्रति घंटे 1500 के हिसाब से 6 घंटे में ही केवल प्रयागराज के 9000 टिकट जारी करके यात्रियों को स्टेशन परिसर में घुसा चुका था, अन्य गंतव्य स्थलों का आंकड़ा इसमें शामिल नहीं है) टिकट जारी करते वक्त रेलवे यह नहीं देखता कि रेलवे पर उन्हें गाड़ी में सीट दिलाने की क्षमता है या नहीं। ये यात्री चाहे धक्का-मुक्की करके रिजर्व डिब्बों में चढ़ें, चाहे एसी में चढ़ें, टॉयलेट में घुसें, गैलरी में खड़े हों, दो डिब्बों की कपलिंग पर खड़े हों, चाहे डाले पर लटकते हुए सफर करते हुए अपनी जान दें, रेलवे की बला से। रेलवे को तो सिर्फ टिकट बेचने से मतलब है। यात्रा का पूरा किराया लेकर भी यात्रा हेतु यात्री को गंतव्य तक बैठने की सीट देना रेलवे की कर्तव्य प्रणाली में नहीं है। इस मामले में अंग्रेजी शासनकाल की मानसिकता रेलवे की कार्यप्रणाली में आज तक जस की तस है। आम आदमी को सीट देने की क्या जरूरत, बस किराया लो और छोड़ दो। अपने-आप धक्के खा खाकर सफर कर लेगा। कहीं न कहीं घुस ही जाएगा, कपलिंग या डाले पर लटक कर ही चला जाएगा, फिर चाहे वह गिरे या मरे, रेलवे की कोई जिम्मेदारी नहीं। किराया तो आ ही गया है। वह तो भला हो विद्युतीकरण का, अन्यथा प्रतिवर्ष तमाम लोग छतपर सफर करते हुए गिरकर मर जाते थे।

ऐसा नहीं है कि रेलवे को इसकी जानकारी नहीं है, जानकारी पूरी है, बराबर है, बस रेलवे जनरल टिकट वाले यात्रियों को सुविधा देना ही नहीं चाहती, वरना आज के कंप्यूटर क्रांति के युग में टिकट के साथ सीट नंबर देना कतई असंभव नहीं है। इंटरसिटी गाड़ियों में आप यह कर भी रहे हैं। भले ही उन गाड़ियों में भी सामान्य टिकट वाले घुसे होते हैं और बैठे हुए यात्रियों के लिये असुविधा उत्पन्न करते हैं। इस अव्यवस्था के पीछे भी आपका सामान्य यात्रियों के प्रति गैरजिम्मेदाराना रवैया है। अरे आप पर प्रत्येक गाड़ी में जितनी सामान्य सीटें खाली हैं, उतने टिकट दो। कोई जबरदस्ती तो आपसे टिकट छीन नहीं लेगा। निरंतर एक ही स्टेशन के जनरल टिकट बेचते जाने के पीछे आपकी क्या मजबूरी है। आपकी यही मानसिकता तो स्टेशनों के अंदर भगदड़ कराती है। आप टिकट नहीं बेचोगे तो आदमी स्टेशन में जाएगा ही नहीं। जिस दिन टिकट मिलेगा, उस दिन जाएगा। सीट निर्धारित होगी तो यात्री हड़बड़ी भी नहीं करेगा, आराम से जाकर अपनी सीट पर बैठ जाएगा।

अब इसी प्रकरण में आपने 5-6 घंटों में ही 8-9 हजार टिकट बेचकर इतनी बड़ी अधिकृत भीड़ स्टेशन पर चार प्लेटफार्म्स में घुसा दी, फिर असावधानीवश एक से नाम वाली गाड़ियों का प्लेटफार्म एनाउंस किया। जहॉं प्लेटफार्म पर पैर रखने को जगह न हो और सीट निर्धारित न हो, वहॉं तो यात्री गाड़ी में घुसने और जगह लेने के लिये भागम भाग करेगा ही, यही भगदड़ का और लोगों के गिरने और मरने का कारण भी बना। इसी लिये इसे भीड़ की मानसिकता नहीं, रेलवे द्वारा गैर इरादतन हत्या कहा जाना चाहिए।

आशा है अब भी रेलवे के अधिकारी गण सचेत हो जायेंगे, और सामान्य यात्रियों के संदर्भ में ऐसी व्यवस्था जरुर करेंगे कि सामान्य टिकट भी तभी दिया जाये जब सीट उपलब्ध हो, वरना टिकट न दिया जाये।


श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

19.02.2025

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