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Showing posts from 2024

सुनो जरा कविता कुछ कहती है

            सुनो जरा कविता कुछ कहती है             जाने क्या क्या बातें करती है             तेरे मेरे भीतर बाहर के             सारे भाव उजागर करती है             सुनो जरा कविता कुछ कहती है             बातें जो आपस में होती हैं             बातें जो मन में रह जाती हैं             सुनी अनसुनी, कही अनकही भी             ये सबको जगजाहिर करती है             मन की पहुँच जहाँ तक होती है             ये उससे भी आगे चलती है             मन तो हार मान लेता है पर             कलम निरन्तर चलती रहती है             संसद के भीतर तक पहुँच गई             झूठ मूठ की ब...

फुटबॉल: दो वर्ष पूर्व अर्जेंटीना द्वारा फुटबॉल विश्व कप जीतने पर।

 दो वर्ष पूर्व की स्मृति से। अर्जेंटीना द्वारा फुटबॉल विश्व कप जीतने पर। अर्जेंटीना और लियोनल मैसी को बहुत बहुत बधाइयां कल का मैच शुरुआती अस्सी मिनट तक एकतरफा लग रहा था,  कोई सोच भी नहीं सकता था कि कोई उलटफेर होगा I अर्जेंटीना के खिलाड़ी थोड़े सुस्त हो गये थे और टाइम पास कर रहे थे जो स्वाभाविक भी था, लेकिन ऐसी सुस्ती कभी कभी घातक भी हो जाती है I मुझे बार बार लग रहा था कि फ्रांस जैसी टीम इतनी आसानी से कैसे हार सकती है I फिर वह हुआ जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती थी I जब म्बापे ने पेनाल्टी पर गोल दागा तभी मुझे आभास हो गया था कि अगर अर्जेंटीना के खिलाड़ी अब भी नहीं सम्हले तो स्कोर बराबर भी हो सकता है, और अभी मैं ये सोच ही रहा था कि म्बापे ने दूसरा गोल करके स्कोर बराबर कर दिया I जीता भले ही अर्जेन्टीना लेकिन फ्रांस के कप्तान म्बापे के ५७ सेकेंड में लगातार दो गोलों ने फ्रांस को गेम में वापस खड़ा कर दिया I  उनका दूसरा फील्ड गोल तो दर्शनीय था I एक्सट्रा टाइम में भी म्बापे ने ही गोल दागकर ३-३ पर स्कोर बराबर किया I  यद्यपि समग्रता में मेरा मानना है कि जीत का असली हकदार तो अर्...

श्री अयोध्या धाम और चित्रकूट यात्रा

  श्री अयोध्या धाम और चित्रकूट यात्रा कहते हैं कि किसी धाम या तीर्थ में व्यक्ति परमात्मा के बुलावे पर ही जाता है। यह बात हमने स्वयं भी कई बार अनुभव की है। बहुत बार ऐसा हुआ कि किसी तीर्थ में जाने का कार्यक्रम बना किंतु किसी न किसी व्यवधान के कारण नहीं जा सके। इसी वर्ष जब अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी तभी से अयोध्या जाने का बहुत मन था। पहले तो यही निश्चय किया था कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद दर्शन करने जायेंगे, लेकिन दूरदर्शन पर प्रतिदिन दर्शनार्थियों की बढ़ती भीड़ के समाचार देखकर यही निश्चय हुआ कि यह भीड़ जब सामान्य हो जायेगी तभी जायेंगे। उसके बाद धीरे धीरे अयोध्या जाने की इच्छा सुप्त चेतना में चली गई। विगत बृहस्पतिवार को अचानक हमारे एक सहजी भाई विनोद गुप्ता जी का फोन आया कि भाईसाहब कल अयोध्या चलना है। पूछने पर पता चला कि सात सहजयोगी परिवारों ने अयोध्या व चित्रकूट के भ्रमण व दर्शन का कार्यक्रम बनाया है, उसमें हमारा भी नाम है। मना करने का तो प्रश्न ही नहीं था, लेकिन हमने यह जरूर कहा कि दो दिन में अयोध्या व चित्रकूट दोनों जगह जाना व्यावहारिक नहीं है, केवल अयोध्या चलना चाहि...

लोकसभा में संविधान पर चर्चा में प्रधानमंत्री जी ने विपक्ष की हवा निकाल दी।

लोकसभा में संविधान पर चर्चा में प्रधानमंत्री जी ने विपक्ष की हवा निकाल दी। दिनांक 13.दिसंबर के संपादकीय 'चलिए गतिरोध तो टूटेगा' में आदरणीय वत्स जी ने सही लिखा है कि राहुल गांधी सहित समस्त विपक्ष संसद में कोई चर्चा होने ही नहीं देना चाहता हैं। यही कारण है कि संसद की कार्यवाही शुरु होते ही वह शोर शराबा शुरु कर देते हैं और कार्यवाही नहीं चलने देते। कांग्रेस तो वही घिसा पिटा विषय लेकर हंगामा करती जा रही है। अडाणी पर चर्चा के साथ साथ उन्होंने संविधान का विषय भी उठा दिया। वह समझते थे कि सरकार इस विषय को भी गंभीरता से नहीं लेगी, लेकिन सरकार ने संविधान पर चर्चा को मान लिया तथा दिनांक 13 और 14 दिसंबर संविधान पर चर्चा के लिये तय हुए। चर्चा की शुरुआत रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की और उन्होंने कहा कि कांग्रेस संविधान को हाईजैक करने की कोशिश करती है, पीढ़ियों से कांग्रेस के नेताओं ने संविधान को परिवार की जेब में ही रखे देखा है, यही वजह है कि हम जहां संविधान को माथे से लगाते हैं विपक्ष के नेता उसे जेब में लेकर चलते हैं। कांग्रेस परिवार की नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने संसद में अपना पहला भाषण...

मानव मन के भावों के चित्रकार थे आनंद कुमार गौरव जी।

 मानव मन के भावों के चित्रकार थे आनंद कुमार गौरव जी।--------------------------------------------------------- स्मृति शेष आनंद कुमार गौरव जी से मेरा पहला परिचय 5 वर्ष पूर्व हिन्दी साहित्य संगम की गोष्ठी में हुआ था।  उसके कुछ समय बाद ही वह बीमारी के कारण सक्रिय नहीं थे। जब वह थोड़े स्वस्थ हुए तब उनके जन्मदिन के अवसर पर हस्ताक्षर द्वारा उनके सम्मान में उन्हीं के आवास पर एक गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें मैं भी सम्मिलित हुआ था। उसी गोष्ठी में उनके व्यक्तित्व व कृतित्व का वास्तविक परिचय मिला। वह एक बैंककर्मी रहते हुए साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय थे और निरंतर उत्कृष्ट रचनाकर्म में लगे थे। उक्त गोष्ठी में ही उन्होंने कुछ गीत सुनाए थे। अत्यंत सुंदर गीत, अत्यंत सुमधुर कंठ व ठहराव भरी आवाज में उनकी प्रस्तुति ह्रदय की गहराई से उतरती हुई प्रतीत हो रही थी। गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, विविध छंद व अतुकांत रचनाओं के साथ साथ वह उपन्यास भी लिखते थे। उनके दो उपन्यास: ऑंसुओं के उस पार तथा थका हारा सुख प्रकाशित हुए हैं। इसके अलावा गीत संग्रह 'मेरा हिन्दुस्तान कहॉं है, और कविता संग्रह 'शून्य के उस पार' प्रक...

स्पंदन: मॉं की स्मृतियों को जीवंत करती अनूठी पुस्तक

 स्पंदन: मॉं की स्मृतियों को जीवंत करती अनूठी पुस्तक ---------------------------------------------------------- आज अचानक श्रीमती अनीता गुप्ता की पुस्तक 'स्पंदन' मेरे समक्ष आ गई। यद्यपि यह पुस्तक मैंने पहले ही पूरी पढ़ ली थी, फिर भी एक बार पुनः पन्ने पलटने लगा और धीरे-धीरे पूरी पुस्तक दोबारा पढ़ी गयी। वस्तुत: श्रीमती अनिता गुप्ता की यह पुस्तक 'स्पंदन' मॉं की यादों के साथ साथ लेखिका के पुश्तैनी घर की यादों के संस्मरणों का एक अद्भुत संग्रह है।  अपनी माताजी के साथ बालपन, शैशव काल, युवावस्था तथा विवाह के बाद की स्मृतियों का अनमोल खजाना है यह संग्रह। अत्यंत भावपूर्ण व स्मृति पटल पर उन दृश्यों को चलचित्र की भांति उकेरती उनकी शैली पुस्तक को पठनीय बनाते रखती है‌। बीच बीच में मॉं के महत्व को दर्शाती उनकी पंक्तियां अत्यंत प्रभावशाली हैं कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं: 'मॉं  सृष्टि के अनुरूप परमात्मा का अनमोल उपहार है। मॉं में संपूर्ण प्रकृति है, मॉं का कोई मोल नहीं।' 'मॉं की ममता में कोई मिलावट नहीं, कोई दिखावट नहीं, कोई गिरावट नहीं।' 'मॉं  बेटी का रिश्ता सबसे खास होत...

हिन्दी सजल के विभिन्न रंगों में रंगे फूलों का गुलदस्ता है दिनांक 11.11.2024 की साप्ताहिकी।

हिन्दी सजल के विभिन्न रंगों में रंगे फूलों का गुलदस्ता है दिनांक 11.11.2024 की साप्ताहिकी। --------------------------------------------------------- मात शारदे मुझे तार दो, शुचिता दे जीवन संवार दो। आखर आखर की पावनता, जन जन के मन में उतार दो। अत्यंत सुंदर, सरल व सहज ये पंक्तियां आदरणीय श्री वीरेंद्र सिंह बृजवासी जी की शारदे वंदना की हैं जो सजल विधा में लिखी गई हैं। दैनिक आर्यावर्त केसरी की विगत सोमवार की साप्ताहिकी हिंदी काव्य की नव विधा सजल को ही समर्पित रही। विभिन्न साहित्यकारों की सजल विधा में सृजित रचनाएं इस अंक का आकर्षण रहीं। वस्तुत:, सजल विधा उर्दू ग़ज़ल की तरह ही पूर्णतः: हिन्दी को समर्पित तथा हिन्दी काव्य की मात्राओं की मापनी पर आधारित विधा है। इससे पहले हिन्दी के साहित्यकार ग़ज़ल की विधा में ही हिन्दी में सृजन करते थे तथा उसे हिन्दी ग़ज़ल कहते थे। उनका मात्रा भार उर्दू की बहर की मापनी के अनुसार होता था, तथा उसमें उर्दू ग़ज़ल के ही नियम लागू होते थे, और हिन्दी ग़ज़ल की विधा उर्दू की ही विधा के रूप में जानी जाती थी। इसी कारण से हिन्दी के कलमकारों ने हिन्दी की स्वतंत्र विधा सजल का...

ह्रदय के भावों का काव्यात्मक रूप है भावामृत।

  ह्रदय के भावों का काव्यात्मक रूप है भावामृत। श्री चंद्रहास कुमार हर्ष जी का प्रथम काव्य संग्रह भावामृत यद्यपि काव्य संग्रह है, तथापि काव्य रचनाओं के साथ साथ इसमें संस्मरण युक्त आलेख भी हैं, जो लेखक के जीवन वृत्त का परिचय देते हैं। काव्य संग्रह के प्रारंभ में अपनी बात में श्री हर्ष ने अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के साथ साथ अपने जीवन काल के विभिन्न घटनाक्रमों  का उल्लेख किया है, जिनमें कुछ कष्टप्रद हैं तो कुछ सुखमय भी हैं। उनके जीवन वृत्त को पढ़कर उनके संघर्षपूर्ण जीवन का परिचय मिलता है, साथ ही उनके साहसी व जुझारू व्यक्तित्व का भी पता चलता है। काव्य संग्रह के अंत में उनके पैतृक गांव का नाम हैजरी केसे पड़ा, इसके विषय में भी एक अत्यंत रोचक संस्मरण है। वस्तुतः अपनी बात में निहित आत्मकथ्य और अंत में गांव के हैजरी नामकरण संबंधी संस्मरण, दोनों ही इस पुस्तक को और अधिक पठनीय बनाते हैं। लेखक की सेवानिवृत्ति के पश्चात जीवन की दूसरी पारी में अपने मन की भावनाओं का अक्स काव्यरूप में उकेर देने के प्रयास ने ही उन्हें रचनाधर्मिता की प्रेरणा दी और मन के भाव काव्य रूप में परिवर्तित होने लगे। यद्यप...

वन नेशन वन इलैक्शन

 आज के आर्यावर्त केसरी में वन नेशन वन इलैक्शन पर  बहुत अच्छा और तथ्यपरक संपादकीय लिखा है आदरणीय वत्स जी ने। वैसे भी वन नेशन वन इलैक्शन भारत में नयी बात तो नहीं है। पहले तो विधानसभा और लोकसभा के चुनाव साथ साथ ही होते थे। जब तक सरकारें पूरे पॉंच वर्ष चलती रहीं, चुनाव भी साथ साथ होते रहे। वत्स जी ने सही लिखा है। बार बार आचार संहिता लगने से तमाम विकास कार्यों पर पाबंदियां लग जाती हैं। राजनेताओं की प्राथमिकता भी चुनाव हो जाती है और विकास पिछड़ जाता है। एक साथ चुनाव करवाने का एक लाभ यह भी है कि बार बार चुनावों पर होने वाले अनावश्यक खर्च से बचा जा सकता है। एक बार में ही चुनावी प्रक्रिया के बाद पॉंच वर्ष के लिये निश्चिंतता से विकास और जनहित के कार्यों पर सरकारें पूरा ध्यान केंद्रित रख सकती हैं।इसमें एक प्रश्न ये अवश्य उठ सकता है कि एक साथ चुनाव के बाद यदि लोकसभा या कोई विधानसभा मध्य अवधि में भंग होती है तब क्या होगा। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने इस संदर्भ में उचित सुझाव दिया है कि संबंधित विधानसभा या लोकसभा का मध्यावधि चुनाव यदि करवाना पड़े तो वह चुनाव ...

वेदों का काव्यात्मक अनुवाद : एक विलक्षण कार्य।

 वेदों का काव्यात्मक अनुवाद : एक विलक्षण कार्य। ----------------------------------------------------- यह तो सभी को ज्ञात है कि वेद ही सनातन संस्कृति का आधार है। वेदों की रचना स्वयं ब्रह्मदेव द्वारा की गई है।  वेदों की ऋचाओं के सस्वर उच्चारण से अभीष्ट परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं। लेकिन ये सभी वेद मंत्र संस्कृत में लिखे हुए हैं और जन सामान्य को इनका अर्थ समझ में नहीं आता, और जब अर्थ न पता हो तो किस मंत्र का क्या तात्पर्य है , कब किस मंत्र का उच्चारण उपयुक्त है, यह भी नहीं ज्ञान होता। इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत जी द्वारा चारों वेदों के काव्यात्मक अनुवाद का बीड़ा उठाया गया। काम वास्तव में अत्यंत कठिन था और इसके लिये भगीरथ प्रयास की आवश्यकता थी, किंतु कहते हैं न कि लक्ष्य भले ही असंभव दिखता हो किंतु बिना थके बिना रुके निरंतर कर्म करते रहने से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। यही बात श्री राजपूत पर भी लागू होती है। अपने अनथक श्रम से उन्होंने तीन वेदों का काव्यात्मक अनुवाद पूर्ण कर लिया है और उन तीनों वेदों के अनुवाद का प्रकाशन भी हो चुका है।...

मॉं जय जयकार तुम्हारी

मॉं निर्मल सबसे न्यारी, मॉं जग की पालनहारी, -2 मॉं आदिशक्ति अवतारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। मैं आया शरण तुम्हारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। तुम जगजननी कल्याणी, मॉं तुम ही वीणापाणी,   ----2 तुम करतीं सिंह सवारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। मैं  आया शरण तुम्हारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। सुख संपति साधन सारे, भरतीं सबके भंडारे-----2 मॉं तुम ही अजर बिहारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। मैं  आया शरण तुम्हारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। मॉं अजर, अमर, अविनाशी, मॉं अगणित पूर्णमासी,----2 मॉं सब देवों से न्यारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी। मैं  आया शरण तुम्हारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। मॉं गणपति के संग आना, अनुपम चैतन्य बहाना --2 हैं विनती यही हमारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। पीतल नगरी आभारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। निर्मल मॉं सबसे न्यारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। मॉं जय जयकार तुम्हारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। तुम आदिशक्ति अवतारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। मैं आया शरण तुम्हारी, मॉं जय जयकार तुम्हारी।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।।

हिंदुत्व अभी तक सोया है -2.

 फिर से इस पर आघात हुए,  फिर बेबस होकर रोया है। आघात बराबर जारी हैं, हिंदुत्व अभी तक सोया है। ये जात पांत में बॅंटा हुआ, खुद का हित जान न पाया है। ये आज यहॉं कल कहीं और, केवल पिटता ही आया है। घर जला पड़ोसी का फिर भी, ये अपने में ही खोया है। आघात बराबर जारी है, हिंदुत्व अभी तक सोया है। हम थे अखंड, फिर खंड खंड, अब सीमित भारत अचल रहे। इसको भी खंडित करने को, कुछ वहशी फिर से मचल रहे। निज पौरुष को क्यों भूल रहा,  आशंका में क्यों खोया है। आघात बराबर जारी है, हिंदुत्व अभी तक सोया है। है धर्म अहिंसा परम किंतु, जब संकट स्वयं धर्म पर हो। तब कैसे कोई चुप बैठे, आसन्न मृत्यु जब सर पर हो। खंडित भारत माॅं का तूने, तो ऑंचल सदा भिगोया है। आघात बराबर जारी है, हिंदुत्व अभी तक सोया है। गांडीव छोड़कर जब अर्जुन, हो युद्ध धर्म से विमुख अड़ा, केशव ने उसको समझाया, तू धर्म पक्ष में यहॉं खड़ा। माना सारे संबंधी हैं,  लेकिन ये सभी अधर्मी है। इनके मन में विद्वेष भरा, बस अहंकार की गर्मी है। कुरुकुल विनाश का बीज स्वयं, कुरुकुल दीपक ने बोया है। ज्यों वस्त्र पुराने त्याग मनुज,  नित नूतन वस्त्र पह...

ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I

 ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I -------------------------------------------------------------------------- ओस की बूँदें यद्यपि आकार प्रकार में छोटी सी होती हैं किंतु सौंदर्य में अप्रतिम होती हैं, पत्ते पर पड़ी ओस की बूँद मोती का अहसास दिलाती है, घास पर पड़ी ओस पर नंगे पाँव चलने से उसकी शीतलता मस्तिष्क तक पहुँचती है I कुछ कुछ ऐसी ही अनुभूति आदरणीय अशोक विश्नोई जी के हाइकू संग्रह 'ओस की बूँदें'  पढ़ने पर होती है I हाइकू यद्यपि जापानी छंद है किंतु यह सूक्ष्म आकार का छंद ओस की बूँद की तरह ही अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम है I हाइकू केवल तीन पंक्तियों का वार्णिक छंद है, जिसमें विषम चरणों में पाँच वर्ण होते हैं तथा सम चरण में सात वर्ण होते हैं I  दोहों की तरह हाइकू भी काव्य की ऐसी विधा है जिसमें छोटी सी कविता में बड़ा संदेश दिया जा सकता है I श्री अशोक विश्नोई जी की इस पुस्तक में लगभग चार सौ हाइकू प्रकाशित हैं, जिनमें उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में विभिन्न परिस्थितियों पर सशक्त अभिव्यक्ति दी है, फिर चाहे वह सामाजिक हो, राजनीतिक हो, व्यक्तिगत व्यवहार पर...

कब तक शिखंडी भीष्म पितामह का आखेट करता रहेगा।

कब तक शिखंडी भीष्म पितामह का आखेट करता रहेगा। दैनिक आर्यावर्त केसरी के आज 11 जुलाई, बृहस्पतिवार के अंक में प्रकाशित श्री बृजेन्द्र सिंह वत्स का आलेख 'कब तक शिखंडी भीष्म पितामह का आखेट करता रहेगा' अत्यंत ज्वलंत प्रश्न उठा रहा है।  संदर्भ कठुआ में आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर सेना के ट्रक पर हमला करने की घटना का है जिसमें एक सैन्य अधिकारी समेत 5 सैनिक मारे गये थे। इससे पूर्व पिछले माह भी ऐसी ही एक घटना में 2 सैनिक मारे गये थे। इस आलेख में वत्स जी ने कश्मीर समस्या के उद्भव से आज तक, सरकारों द्वारा की गई गलतियों के बारे में मुखरता से लिखा है। कब कब और कहॉं कहॉं किस सरकार से समस्या से निपटने में शिथिलता बरती गई इसका स्पष्ट उल्लेख उन्होंने किया है।  कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद घाटी से आतंकवाद के सफाये के दावे की ओर भी उन्होंने प्रश्न उठाया है, क्योंकि आतंकवाद तो धीरे धीरे वहॉं फिर पॉंव पसारने लगा है। बल्कि अब तो आतंकी कठुआ में सक्रिय हो रहे हैं जो जम्मू में प्रवेश करते ही स्थित है। उन्होंने आतंकी तैयारियों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है। यही नहीं वत्स जी ने अपने आलेख में महाभारत...

छॉंव की बयार : समीक्षा: समीक्षक रवि प्रकाश

* छॉंव की बयार (गजल संग्रह)* *सम्पादक, डॉ मनमोहन शुक्ल व्यथित*  *अंतरंग प्रकाशन,रामपुर,*  *प्रथम संस्करण 1987*  पृष्ठ संख्या 112,  मूल्य 25 रुपये  🍃🍃🍃🍃🍂🍂 *समीक्षक : रवि प्रकाश*  बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश  मोबाइल 9997 615451 🍃🍃🍃🍂🍂 *कुछ गजलें, कुछ गजलकार*  ➖➖➖➖➖➖➖ अरबी और फारसी में गजल के मायने भले ही इश्क-मुहब्बत हों मगर आज की गजल सिर्फ ॲंखियॉं लड़ने या उसके बाद आंसू गिराने तक सिमटी हुई नहीं हैं। जमाने के साथ साथ गजल भी बदली है, गजल के तेवर भी बदले हैं। हो सकता है बहुतों के लिए गजल के मतलब आज भी पायल की झनकार से हों, मगर हिन्दी और उर्दू दोनों में आज इस काव्य विधा को विचार-क्रान्ति के शक्तिशाली औजार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। हर कविता असर करती है, पर गजल तेज, धारदार और देर तक असर करती है। हिन्दी में गजल इसलिए नहीं लिखी गई कि इसके बिना लैला-मजनू का किस्सा नहीं लिखा जा सकता था, गजल इसलिए उर्दू से हिन्दी में आई क्योंकि गीत और दोहे दोनों का अद्भुत सम्मिश्रण गजल में था। अपने गेय गुणों और प्रत्येक शेर की आन्तरिक सम्पूर्ण स्वतंत्र...

दैनिक आर्यावर्त केसरी : साप्ताहिकी दिनांक 1 जुलाई 2024 : समीक्षात्मक अध्ययन

 साप्ताहिकी दिनांक 1 जुलाई 2024 : समीक्षात्मक अध्ययन दैनिक आर्यावर्त केसरी के सह संपादक आदरणीय श्री बृजेन्द्र सिंह वत्स जी ने अपने समाचार पत्र में एक अच्छी परंपरा चला रखी है, वह है प्रत्येक सप्ताह साप्ताहिकी का प्रकाशन, जिसमें कभी किसी एक विषय पर केंद्रित और कभी स्वैच्छिक विषयों पर विभिन्न साहित्यकारों की रचनाएं प्रकाशित की जाती हैं।साप्ताहिकी का पृष्ठ इतना रोचक होता है कि सदैव उसकी प्रतीक्षा रहती है और एक बार में ही सभी रचनाएं पढ़ ली जाती हैं। कविताओं के साथ साथ वत्स जी का छोटा सा संपादकीय आलेख भी होता है। इस बार पहली तारीख को कुछ अधिक व्यस्तता रही, और मोबाइल से दूरी बनी रही। इसी कारण पहली तारीख की साप्ताहिकी आज देखी। यह वत्स जी का कौशल है कि वह एक पृष्ठ में अधिकाधिक रचनाओं का समावेश कर लेते हैं।इस साप्ताहिकी में एक छोटा सा संपादकीय आलेख था, जो माननीय प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रम 'मन की बात ' के संदर्भ में था। कहना न होगा कि वत्स जी ने प्रधानमंत्री जी के लगभग एक घंटे के कार्यक्रम का सार बिंदुवार उल्लेख करते हुए छोटे से आलेख में पिरो दिया। वस्तुतः संपूर्ण साप्ताहिकी विभिन्न परि...

मुफ्तखोर

 मुफ्त में मिल रहा है सब, यही तो मुश्किल है। तुमने स्वयं ही इनको निकम्मा कर दिया। माना अब रोटियां मुफ्त में मिलती हैं, किंतु ऑंखें सपने देखना बंद कब करती हैं। उनके सपनों में तो जन्नत के ख्वाब पलते हैं, जो फेंके गये टुकड़ों से ही पूरे होते हैं, बस जरूरत है कि कहीं से कोई टुकड़ा फेंके, ये गिद्ध की तरह, टूट पड़ते हैं  अपना दृष्टिकोण,बदल देते हैं अपनी आत्मा, बेच देते हैं जहॉं से सब मुफ्त में मिल रहा था, उसी खजाने को, लूट लेते हैं  काटना चाहते हैं उसी पेड़ को जड़ से,  जिसकी छाया में निरंतर सुस्ताते थे, जिसके फल तोड़ तोड़ कर खाते थे, मुफ्त में। लूट की प्रवृत्ति की कोई हद नहीं होती, सच है, मुफ्त के माल की कोई कद्र नहीं होती, इनका न कोई दीन है न ईमान है। मुफ्तखोरी में ही इनकी जान है। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

विकास की बाट जोहता एक सरोवर।

 द्रोण सागर तीर्थ  : काशीपुर,  विकास की बाट जोहता एक सरोवर। --------------------------------------- विगत 13 जून को ससुराल पक्ष के अपने एक संबंधी के दसवें में द्रोण सागर तीर्थ काशीपुर जाना हुआ।  इससे पूर्व भी अनेकों बार द्रोण सागर जाना हुआ था, लेकिन इस बार लगभग तीन वर्ष बाद जाना हुआ था। इस बार वहॉं जाने पर मन बहुत खिन्न हुआ। कारण समस्त तीर्थ क्षेत्र में सफाई का अभाव था। सरोवर में पानी बिल्कुल नहीं था, बल्कि बाकायदा खेती हो रही थी। यद्यपि तीर्थ क्षेत्र में पिछले वर्षों में तमाम विकास कार्य हुए थे किंतु रखरखाव व सफाई के अभाव में व्यर्थ थे। द्रोण सागर तीर्थ से मेरा लगभग पचास वर्ष पुराना लगाव है। वर्ष 1973 में मेरी प्रथम नियुक्ति स्टेट बैंक की काशीपुर शाखा में ही हुई थी और मैं लगभग पॉंच वर्ष काशीपुर रहा था। उस समय मैं प्रतिदिन प्रातः टहलते हुए द्रोण सागर जाता था। वहॉं दौड़ते हुए सरोवर के 1 - 2 चक्कर लगाता था, फिर आकर व्यायामशाला में थोड़ा बहुत व्यायाम करता था। वहीं भूमिगत जल का स्रोत निरंतर पानी देता रहता था, जिस पर हाथ मुंह धोकर, जल पीता था। वह जल अत्यंत शीतल और मृदु होत...

उगें हरे संवाद, वर्तमान परिदृश्य पर समग्र चिंतन करता दोहा संग्रह।

 उगें हरे संवाद, वर्तमान परिदृश्य पर समग्र चिंतन करता दोहा संग्रह।- -------------------------------------------------------- योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' यद्यपि नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर हैं, लेकिन यह भी सच है कि वह दोहों के भी विशेषज्ञ हैं। फेसबुक पर प्रतिदिन उनका एक दोहा पढ़ने को मिलता है। उनके दोहों में भी नवगीत की छाप मिलती है। उनके दोहों के बिंब नवगीत की आधारशिला सरीखे प्रतीत होते हैं। उनका ही एक दोहा देखते हैं: मिट जाएं मन के सभी, मनमुटाव अवसाद।                        चुप के ऊसर में अगर, उगें हरे संवाद।। यह दोहा उनके सद्य प्रकाशित दोहा संग्रह 'उगें हरे संवाद' का परिचयात्मक दोहा है। यह दोहा संग्रह अभी कुछ दिन पूर्व ही एक कार्यक्रम में उन्होंने मुझे बड़े अपनत्व के साथ भेंट किया था, साथ ही आग्रह भी किया कि पुस्तक पर अपना अभिमत व्यक्त करूॅं। वस्तुतः दोहा चार चरण और चौबीस मात्राओं का एक छोटा सा छंद है, लेकिन इसकी विशेषता यह है कि इसमें गूढ़ से गूढ़तम बात सूक्ष्म रूप में प्रभावशाली तरीके से व्यक्त की जा सकती है। दोहे की विशेषता ...

चुनावी चुटकी

 आबोहवा चुनावी मौसम की भी अजब निराली है, कुछ चेहरों पर मायूसी है तो कुछ पर खुशहाली है। झूठे वादे और झुनझुने, चाहे जितने दिखला दो, मोदी की गारंटी सबसे भारी पड़ने वाली है। जनता आज बड़ी शातिर है, खबर सभी की रखती है। झूठे नारों वादों में ये नही उलझने वाली है। पाले बदले दर दर भटके, टिकट नहीं मिल पाया है, नेताओं की रंग बदलती शक्ल देखने वाली है। पी एम बनने का सपना कैसे कैसों ने पाला है। बात सुनो तो लगता है, ऊपर का माला खाली है। रायबरेली और अमेठी इंतजार में बैठे हैं, गॉंधी गीरी इस चुनाव में शायद जाने वाली है। क्या जाने कब ई डी आकर इनके दर को खटका दे, पता नहीं कब पॉंव तले की भूमि खिसकने वाली है। फ्रीज पड़े हैं खाते अपने ये कैसी बदहाली है, कैसे लड़ें चुनाव बताओ, जेब हमारी खाली है। गठबंधन के गुब्बारे को फुला फुला कर दिखा रहे, किंतु सभी को आशंका है हवा निकलने वाली है। ई डी, सी बी आई, ने भी, कुछ कुचक्र रच डाला है, दिल्ली की सरकार जेल से, ही अब चलने वाली है। मौसम वैज्ञानिक भी देखो पलटी मारे फिरते हैं। इन्हें पता है किधर वोट की बारिश होने वाली है। चार जून तक रुक जाओ, ई वी एम सब बतला देगी, किसकी न...

यही समय है, सही समय है, जाओ जाकर वोट करो।

 यही समय है, सही समय है, जाओ जाकर वोट करो।। -------------------------------------------------------- अवसर आया है चुनाव का बटन दबाकर वोट करो। यही समय है, सही समय है, जाओ जाकर वोट करो।। बैठे बैठे स्वप्न देखना नहीं सार्थक होता है, मनवांछित फल पाने को तो उद्यम करना पड़ता है, इसीलिए आलस को त्यागो, पहले जाकर वोट करो, यही समय है सही समय है जाओ जाकर वोट करो। गठबंधन या ठगबंधन है, इसका भेद समझना है, इनके वादों झॉंसों के लालच में नहीं उलझना है, इनका सब इतिहास याद कर बटन दबाकर चोट करो। यही समय है सही समय है, जाओ जाकर वोट करो।। ऐसे प्रत्याशी को चुनना, जो सबका हित साध सके, जो जन जन का सेवक बनकर, सबके हित की बात करे,  जो विकास के रथ को हॉंके, उसको जाकर वोट करो। यही समय है सही समय है , जाओ जाकर वोट करो। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

तुम मेरे दिल की धड़कन हो।

 तुम मेरे दिल की धड़कन हो। जीते तो पहले भी थे पर, जीवन जीना तुमसे जाना, तुमसे ही सीखा अभाव में भी मिलकर आनंद उठाना। घर तो पहले भी था लेकिन बेजुबान छत दीवारें थीं, तुमने इनमें रंग भर दिये, शुरू किया इनसे बतियाना। दीवारें भी बोल रही हैं तुम ही इस घर का जीवन हो, तुम मेरे दिल की धड़कन हो। मेरे जीवन की बगिया को तुमने अपने श्रम से सींचा। सूखी बंजर सी धरती पर हरीतिमा का मंडप खींचा।। पतझर जैसे इस जीवन में तुम मधुमास सरीखी आयीं, ‌साज बेसुरे ही थे सारे, तुमने स्वर लहरियां जगाईं, जीवन पथ पर जो भी साधा, पृष्ठभूमि में तुम साधन हो, तुम मेरे दिल की धड़कन हो। मैं पर्वत के शुष्क शिखर सा, तुम सरिता सी कल कल बहतीं, कभी मचलतीं, कभी ठहरतीं, कभी प्रपात बन झर झर झरतीं, कभी सघन वन, कभी तपोवन, कभी तीर्थ बन दिया आचमन, मुझ नीरस से शैल शिखर के कण कण में स्पंदन धरतीं, मेरे मरुस्थल से जीवन में, तुम सुरभित नंदन कानन हो, तुम मेरे दिल की धड़कन हो। मैंने जो जो सपने देखे, तुमने उनमें पंख लगाये, जो सोचा साकार कर लिया, चाहे कितने कष्ट उठाये, जब जब भी बाधाएं आईं, तुमने नव उल्लास जगाया, जब भी तपिश धूप की आई, झट तुमने ऑं...

हमें सुहाता जाड़ा

 ठंड बढ़ी है जबसे , तबसे सबकी शामत आई, स्वेटर, टोपी, मफलर कंबल पड़ने लगे दिखाई हाड़ कॅंपाता दॉंत किटकिटा, सता रहा है जाड़ा दुबके हुए रजाई में बस पढ़ते रहो पहाड़ा। सूरज को ढक बादल बोले, पड़े रहो चुपचाप, कोहरा बोला तभी अकड़कर, मैं हूॅं सबका बाप। विद्यालय भी बंद हो गये, कैसे करें पढ़ाई, उधर किचन में मम्मी जी की दिन भर चढ़ी कढ़ाई। तिल के लड्डू, गाजर हलवा, दिन भर बनता रहता, दिन भर छोटू टीवी खोले गेम खेलता रहता। गरमागरम चाय मिलती है, ज्यों अदरक का काढ़ा। भले सताता हो बूढ़ों को हमें सुहाता जाड़ा।। श्रीकृष्ण शुक्ल, T 5 / 1103, आकाश रेजीडेंसी, मधुबनी के पीछे, कांठ रोड, मुरादाबाद। ठंड बढ़ी है जबसे , तबसे सबकी शामत आई, स्वेटर, टोपी, मफलर कंबल पड़ने लगे दिखाई हाड़ कॅंपाता दॉंत किटकिटा, सता रहा है जाड़ा दुबके हुए रजाई में बस पढ़ते रहो पहाड़ा। सूरज को ढक बादल बोले, पड़े रहो चुपचाप, कोहरा बोला तभी अकड़कर, मैं हूॅं सबका बाप। विद्यालय भी बंद हो गये, कैसे करें पढ़ाई, उधर किचन में मम्मी जी की दिन भर चढ़ी कढ़ाई। तिल के लड्डू, गाजर हलवा, दिन भर बनता रहता, दिन भर छोटू टीवी खोले गेम खेलता रहता। गरमागरम च...