ह्रदय के भावों का काव्यात्मक रूप है भावामृत।

 ह्रदय के भावों का काव्यात्मक रूप है भावामृत।

श्री चंद्रहास कुमार हर्ष जी का प्रथम काव्य संग्रह भावामृत यद्यपि काव्य संग्रह है, तथापि काव्य रचनाओं के साथ साथ इसमें संस्मरण युक्त आलेख भी हैं, जो लेखक के जीवन वृत्त का परिचय देते हैं। काव्य संग्रह के प्रारंभ में अपनी बात में श्री हर्ष ने अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के साथ साथ अपने जीवन काल के विभिन्न घटनाक्रमों  का उल्लेख किया है, जिनमें कुछ कष्टप्रद हैं तो कुछ सुखमय भी हैं। उनके जीवन वृत्त को पढ़कर उनके संघर्षपूर्ण जीवन का परिचय मिलता है, साथ ही उनके साहसी व जुझारू व्यक्तित्व का भी पता चलता है। काव्य संग्रह के अंत में उनके पैतृक गांव का नाम हैजरी केसे पड़ा, इसके विषय में भी एक अत्यंत रोचक संस्मरण है। वस्तुतः अपनी बात में निहित आत्मकथ्य और अंत में गांव के हैजरी नामकरण संबंधी संस्मरण, दोनों ही इस पुस्तक को और अधिक पठनीय बनाते हैं।

लेखक की सेवानिवृत्ति के पश्चात जीवन की दूसरी पारी में अपने मन की भावनाओं का अक्स काव्यरूप में उकेर देने के प्रयास ने ही उन्हें रचनाधर्मिता की प्रेरणा दी और मन के भाव काव्य रूप में परिवर्तित होने लगे। यद्यपि उनकी रचनाओं में छंदबद्धता का अभाव है तथापि यथासंभव उन्होंने अपने विचारों का प्रस्तुतीकरण काव्यरूप में किया है, जो कहीं कहीं गेय भी है, तो कहीं गेयता का अभाव है। वस्तुत: उनका सृजन छंद मुक्त, या स्वच्छंद सृजन है, जो स्वान्त: सुखाय सृजन भी कहा जा सकता है। काव्य संग्रह के रूप में आकार लेकर ये पुस्तक अपने पाठकों को भी कुछ न कुछ प्रेरणा देने में अवश्य सक्षम है।

इस काव्य संग्रह का नामकरण भावामृत अत्यंत उचित हुआ है, क्योंकि इस संग्रह में निहित रचनाओं में उनके मन के भावों का अमृत ही देखने को मिलता है।

वह स्वयं लिखते हैं:

शब्द नहीं मेरे मन में,

भावों की सरिता का स्पंदन है।

सुह्रदय, वात्सल्य, स्नेह शीलता,

जीवन भर चिर स्मरण है।


श्री चंद्रहास कुमार हर्ष ईश्वर की सार्वभौम सत्ता में पूर्ण निष्ठा रखने वाले तथा आर्य समाज के अनुयाई हैं। इसकी स्पष्ट झलक उनके रचनाकर्म में दृष्टिगोचर होती है।


हे दीनबंधु, हे दया निधान।

हे करुणानंद, हे ईश महान।।

निर्भय होकर जियें जगत में,

सहें कभी ना हम अपमान।

तेजस्वी बलशाली होकर,

मनुष्यता का रखें ध्यान।


उसी सार्वभौमिक ईश्वरीय सत्ता से साक्षात्कार के बाद व्यक्ति के अंतर्चक्षु खुल जाते हैं, अज्ञान का तिमिर दूर हो जाता है और अंतर्मन प्रकाशित हो जाता है। उनकी निम्न पंक्तियां यही व्यक्त कर रही हैं:


जगमग जगमग दीप जलाकर, भौतिक अंधेरा दूर किया।

अंतर्मन में दीप जलाकर, क्या मन के तिमिर को दूर किया।

इसी के साथ साथ उनका चिंतन देश, समाज, प्रकृति और पर्यावरण के प्रति भी अत्यंत सजग है। सर्वत्र व्याप्त प्रदूषण के दुष्प्रभावों से चिंतित होकर वह लिखते हैं:

आओ मिलकर हम सब प्रयास करें,

प्रदूषणमुक्त होवे चमन, कुछ ऐसा उपाय करें।ज

हरीला बना देखो वातावरण,

आओ मिलकर शुद्ध मन से विचार करें।


साथ ही साथ वह समाज में साक्षरता के प्रति भी अत्यंत सजग हैं। वह जानते हैं कि समाज में निरक्षरता एक अभिशाप है और समाज में यदि सभी साक्षर हो जायें तो तमाम कुरीतियां खुद ब खुद समाप्त हो जायेंगी। इसीलिए उनकी इस रचना में सभी को साक्षर बनाने का दृढ़ संकल्प दिखाई देता है।

संकल्प दृढ़ लेकर हम साक्षर सबको बनायेंगे।

कोटि कोटि जन में हम, भावना यह जगायेंगे।।

और

ज्ञान विज्ञान की अलख जगाकर, समृद्ध जीवन बनायें हम।

निरक्षरता मिटाकर सब जनों की, साक्षर राष्ट्र बनाये हम।।


जैसा मैंने पूर्व में उल्लेख किया है कि वह ईश्वर की सार्वभौम सत्ता के प्रति समर्पित, आर्य समाज के अनुयाई हैं, तो उनके रचनाकर्म में इसका भी दर्शन अवश्यंभावी है। राष्ट्र की संस्कृति, सभ्यता के प्रति उनका आवाहन निम्न पंक्तियों में स्पष्ट दिखाई देता है:


संस्कृति सभ्यता अपने देश की, न भूलें कभी सारे जीवन।

आर्य राष्ट्र का निर्माण करेंगे, दृढ़ता पूर्वक लें ये प्रण।।


लेखक अपने मनोभावों को काव्य रूप में प्रकट करें और उसके निजी सुख दुख का प्रभाव रचनाओं पर न पड़े ऐसा संभव ही नहीं है। चंद्रहास जी की कुछ रचनाओं में भी उनके जीवन की विषमताओं का आभास मिलता है:


उम्मीदों की मंजिल पर घना कुहासा छाया है।

सुख का साथी अतीत रहा, दुख वर्तमान में पाया है।।


समग्रता में देखें तो उनका यह काव्य संग्रह एक ऐसा गुलदस्ता है जिसमें पारिवारिक संस्मरण, वैचारिक व आध्यात्मिक चिंतन, सामाज में व्याप्त अज्ञानता व कुरीतियों के प्रति चिंतन, देश राष्ट्र व संस्कृति के प्रति चिंतन को व्यक्त करती हुई रचनाओं के रूप में विविध फूल हैं। भाषा व शैली अत्यंत सरल व सुग्राह्य है। 

कुल मिलाकर उनका प्रथम काव्य संग्रह भावामृत उनके विचारों को अभिव्यक्ति देने में पूर्णतः सक्षम है।


श्री चंद्रहास कुमार हर्ष जी के अनुसार उनका दूसरा काव्य संग्रह 'अनुभूति' भी प्रकाशनाधीन है। प्रथम काव्य संग्रह की ही भांति उसमें भी उनके मनोभावों व विचारों का अमृत हमें मिलेगा, इसी विश्वास के साथ मैं उन्हें उनके दूसरे काव्य संग्रह 'अनुभूति' के प्रकाशन हेतु ह्रदय से शुभकामनाएं देता हूॅं।


श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

16.11.2024





Comments

Popular posts from this blog

आठ फरवरी को किसकी होगी दिल्ली।

ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I

होली पर मुंह काला कर दिया