दैनिक आर्यावर्त केसरी : साप्ताहिकी दिनांक 1 जुलाई 2024 : समीक्षात्मक अध्ययन

 साप्ताहिकी दिनांक 1 जुलाई 2024 : समीक्षात्मक अध्ययन


दैनिक आर्यावर्त केसरी के सह संपादक आदरणीय श्री बृजेन्द्र सिंह वत्स जी ने अपने समाचार पत्र में एक अच्छी परंपरा चला रखी है, वह है प्रत्येक सप्ताह साप्ताहिकी का प्रकाशन, जिसमें कभी किसी एक विषय पर केंद्रित और कभी स्वैच्छिक विषयों पर विभिन्न साहित्यकारों की रचनाएं प्रकाशित की जाती हैं।साप्ताहिकी का पृष्ठ इतना रोचक होता है कि सदैव उसकी प्रतीक्षा रहती है और एक बार में ही सभी रचनाएं पढ़ ली जाती हैं। कविताओं के साथ साथ वत्स जी का छोटा सा संपादकीय आलेख भी होता है।

इस बार पहली तारीख को कुछ अधिक व्यस्तता रही, और मोबाइल से दूरी बनी रही। इसी कारण पहली तारीख की साप्ताहिकी आज देखी।

यह वत्स जी का कौशल है कि वह एक पृष्ठ में अधिकाधिक रचनाओं का समावेश कर लेते हैं।इस साप्ताहिकी में एक छोटा सा संपादकीय आलेख था, जो माननीय प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रम 'मन की बात ' के संदर्भ में था। कहना न होगा कि वत्स जी ने प्रधानमंत्री जी के लगभग एक घंटे के कार्यक्रम का सार बिंदुवार उल्लेख करते हुए छोटे से आलेख में पिरो दिया। वस्तुतः संपूर्ण साप्ताहिकी विभिन्न परिस्थितियों पर आधारित छोटी छोटी रचनाओं का एक खूबसूरत गुलदस्ता है, जिसमें कहीं वफादारी पर प्रश्न चिन्ह लगाती मनोज चौहान की लघुकथा है, स्वदेश भटनागर जी की रचना वीथोवन है हर आदमी, स्वयं ईश्वर को खुद के भीतर खोजने को विवश करती है, तो आतंकी संकट के प्रति सचेत करती संतोष कुमार सिंह की सजल है, जो कल सवेरा आने के प्रति आश्वस्त भी करती है। मोहन  सिंह कुशवाहा की भोजपुरी वाणी वंदना वाकई मन के तार झंकृत करने की क्षमता रखती है।

वीरेंद्र सिंह राजपूत जी की बंदा बैरागी काव्य श्रंखला पढ़ते पढ़ते मन के भाव भी ओजपूर्ण हो जाते हैं।

इसी के बाद हमारी वीरांगनाओं के शौर्य और पराक्रम का वर्णन करती डा. रीता सिंह की रचना वीर क्षत्राणी जिसमें तमाम पौराणिक व ऐतिहासिक वीरांगनाओं का उल्लेख है, यह रचना हमारे पूर्वजों में सम्मिलित इन नारियों के प्रति मन में श्रद्धा और सम्मान की भावना को जागृत करती है। 

तत्पश्चात मनीषा सिंह की रचना ईश्वर से प्रार्थना की ताकत और प्रतिफल में मिलने वाले वरदान की सशक्त अभिव्यक्ति है, तो डा. जमना बीबी की रचना बचे रहने की उम्मीद जगाती है।

मुझे साप्ताहिकी की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति अजय कुमार सिंह भदौरिया का गीत कोई नवल उजास दे गया लगा।              यह गीत मैंने कई बार पढ़ा और बार बार पलट कर पढ़ा।      गीत का मुखड़ा तो मेरे मन मस्तिष्क में मानो घर कर गया है:

नीरसता के ॳधियारों को, कोई नवल उजास दे गया।        मृदुल कल्पनाओं को नीला, सपनों का आकाश दें गया।

समग्रता में देखें तो साप्ताहिकी का यह अंक अत्यंत सुंदर गुलदस्ता बन पड़ा है, जो निश्चय ही इस गुलदस्ते के लिए सुंदर सुंदर विविध रंग रूप के फूलों को चुन-चुनकर गुलदस्ते में सजाने वाले माली के कौशल का कमाल है।

इतने खूबसूरत अंक के लिए मैं ह्रदय से श्री बृजेन्द्र सिंह वत्स का आभार व्यक्त करता हूॅं। उनके संपादन में आगे भी हमें निरंतर ऐसे ही अंक पढ़ने को मिलते रहेंगे, ऐसा मुझे विश्वास है।

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

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