स्पंदन: मॉं की स्मृतियों को जीवंत करती अनूठी पुस्तक

 स्पंदन: मॉं की स्मृतियों को जीवंत करती अनूठी पुस्तक

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आज अचानक श्रीमती अनीता गुप्ता की पुस्तक 'स्पंदन' मेरे समक्ष आ गई। यद्यपि यह पुस्तक मैंने पहले ही पूरी पढ़ ली थी, फिर भी एक बार पुनः पन्ने पलटने लगा और धीरे-धीरे पूरी पुस्तक दोबारा पढ़ी गयी। वस्तुत: श्रीमती अनिता गुप्ता की यह पुस्तक 'स्पंदन' मॉं की यादों के साथ साथ लेखिका के पुश्तैनी घर की यादों के संस्मरणों का एक अद्भुत संग्रह है। 

अपनी माताजी के साथ बालपन, शैशव काल, युवावस्था तथा विवाह के बाद की स्मृतियों का अनमोल खजाना है यह संग्रह। अत्यंत भावपूर्ण व स्मृति पटल पर उन दृश्यों को चलचित्र की भांति उकेरती उनकी शैली पुस्तक को पठनीय बनाते रखती है‌। बीच बीच में मॉं के महत्व को दर्शाती उनकी पंक्तियां अत्यंत प्रभावशाली हैं

कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं:


'मॉं  सृष्टि के अनुरूप परमात्मा का अनमोल उपहार है। मॉं में संपूर्ण प्रकृति है, मॉं का कोई मोल नहीं।'


'मॉं की ममता में कोई मिलावट नहीं, कोई दिखावट नहीं, कोई गिरावट नहीं।'

'मॉं  बेटी का रिश्ता सबसे खास होता है। बेटी मॉं की परछाई होती है।

मॉं तुम्हारी ही तो लिखावट हूॅं मैं,

तुम्हारी ही तो बनावट हूॅं मैं।'


अपने पुश्तैनी मकान के साथ मॉं की स्मृतियों को जोड़ती यह पंक्तियां भी अत्यंत भावपूर्ण हैं:

'बरसों से बंद पुराने घर के दरवाजे को देखते ही पिता के आकर्षक चेहरे के साथ मॉं का मुस्कान लिए सिंदूर बिंदी लगा गोरा चेहरा स्मृति पटल पर छा गया।'


अपनी मॉं के अंतिम समय की मुलाकात का यह विवरण तो भावुक कर देता है:


'मॉं के अंतिम सांस लेने से पहले मैंने अपने पहले कहानी संग्रह मयूर पंख, जो मॉं को ही समर्पित भी थी, को उनके हाथों में दिया था तो अनायास उनके मुॅंह से निकला था,'लल्ली, तूने मेरा सपना पुरा कर दिया। अपने समय में मैं अध्यापन कार्य की व्यस्तता व परिवार की जटिलता के कारण अपनी भावनाओं को लिखकर पुस्तक का रूप न दे पायी'।'


जिंदगी में कब क्या होगा, अनिश्चित ही है।

शरीर कब साथ छोड़ेगा पता नहीं।

मॉं का आसपास की चीजों को न पहचानना, न सुनाई देना, याददाश्त न होना, शारीरिक पीड़ा तक को न बताने की शक्ति आदि से मॉं कुछ ही दिन की मेहमान लग रही थीं। मैंने मॉं के कान के पास जोर से कहा: मम्मी देखो आपकी छोटी नातिन आई है। पता नहीं उनकी किस शक्ति ने सुना कि मूर्छारत मॉं की आंखें एकाएक छोटी बेटी की ओर मुड़ीं और उसे देखा और थोड़ी देर में फिर निढाल हो गई और।

उसी दिन हम वहॉं से घर आकर चाय ही पी रहे थे कि भाई का फोन आया मम्मी नहीं रहीं।


मॉं के तीजे के दिन बड़ी बेटी ने नानी के पुराने घर की देहरी पर फूल अर्पित करने की इच्छा व्यक्त की।

दरवाजे पर फूल अर्पित करते वक्त अनजाने में चौखट का सहारा लिया ही था कि दिल धड़का और बचपन से लेकर अब तक का सफर चलचित्र की भांति आंखों के आगे घूम गया:

ऐसा लगा कि वह जर्जर दरवाजा आज भी इस घर में रहने वालों का इंतजार कर रहा है, पर जाने वाले वापस कहॉं आते हैं।

सांसों का त्याग किया है तुमने, मॉं

फिर कैसे हो ह्रदय में स्पंदन।

इतनी सच्ची, भावपूर्ण संस्मरणों की पुस्तक लिखने के लिए श्रीमती अनीता गुप्ता बधाई की पात्र हैं। मॉं के प्रति उनके स्नेह के फलस्वरूप रचित उसकी यह पुस्तक उनकी माताजी को इस पुस्तक के रूप में अमर कर गई। इन्हीं शब्दों के साथ मैं भी उनकी माताजी की स्मृतियों को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता हूॅं।

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

02.12.2024

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