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Showing posts from 2021

पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है

  गीत ( पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है) वसुंंधरा पर जहाँ जहाँ तक, पर्वत का विस्तार है, ऐसा लगता है वसुधा ने किया हुआ श्रंगार है, पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है पर्वत हैं तो हरियाली है पर्वत हैं तो खुशहाली है पर्वत में रहने वालों के गालों पर दिखती लाली है, पर्वत में संपूर्ण प्रकृति का, बसा हुआ संसार है पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है हरि हर का आगार यहाँ है और मोक्ष का द्वार यहाँ है हिमशिखरों से कल कल बहती गंगा जमुना धार यहाँ है इनमें ही कैलाश बसा है, इनमें ही केदार है! पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है खनिजों का भंडार यहाँ है सदानीर जलधार यहाँ हैं यहीं हिमशिखर, और सघन वन चंदन और दयार यहाँ है जड़ी बूटियो, औषधि फल की तो इनमें भरमार है पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है मृद जल इनसे ही मिलता है मानसून इनमें टिकता है इनसे सब संसाधन मिलते जीवन इनसे ही चलता है पर्वत से ही प्राणवायु का, होता नित संचार है पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है जल,जन, जंगल, अरु, जमीन सब, परबत की अच्छी होती है परबत में रहने वालों की,  नीयत भी सच्ची होती है सीमित संसाधन हैं फिर भी, मृदु इनका व्यवहार है पर्वत हैं तो ...

गज़ल (हाथ में इक ख़त पुराना आ गया)

गज़ल (हाथ में इक ख़त पुराना आ गया) हाथ में इक खत पुराना आ गया। या द फिर गुज़रा जमाना आ गया।। सोचते ही सोचते हम सो गये। स्वप्न में किस्सा पुराना आ गया।। साथ जब से आपका हमको मिला। दर्द में भी मुस्कुराना आ गया।। जिन्दगी तो एक नाटक मात्र है। पात्र बन इसको निभाना आ गया।। आप आये तो लगा ऐसा हमें। दौर शायद वो पुराना आ गया। कुछ चुहल हमने करी कुछ आपने! इस तरह हँसना हँसाना आ गया!! प्यार फूलों से किया है इस कदर! कंटकों से भी निभाना आ गया!! मानसूनी बादलों की आड़ में! कृष्ण अब आंसू छुपाना आ गया!! श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद

बेटी बनाम बहू

  लघुकथा: बेटी बनाम बहू --------------- मम्मी कल तीजो है, शालिनी को मायके वालों ने बुलाया है। आप कहो तो इसे सुबह छोड़ आऊँगा, तीजो करके शाम को आ जायेगी; सतीश ने सोने से पहले अपनी माँ शकुंतला से कहा। अरे, बहू ने तो मुझसे नहीं कहा; कल ही बबली भी ससुराल से घर आयेगी, उसकी पहली तीजो है, उसके ससुराल वाले भी सिंदारा लेकर आयेंगे, शालिनी चली जायेगी तो मैं अकेली कैसे सम्हालूंगी, शकुंतला बोली।  बात आयी गयी हो गयी। अगले दिन सुबह सुबह ही बबली का फोन आया; मम्मी मैं तीजो करने घर नहीं आ पाऊँगी, हमारी ननद की भी पहली तीजो है, वह और उनकी ससुराल वाले आ रहे हैं, जिस कारण मुझे रुकना पड़ेगा, मेरा इंतजार मत करना। अरे ऐसा कैसे, तेरी भी तो पहली तीजो है, तेरा भी तो आना जरूरी है, शकुंतला बोली। कोई बात नहीं मम्मी, मैं चली आऊँगी तो यहाँ मम्मी जी अकेले कुछ नहीं कर पायेंगी, इसीलिये उन्होंने मुझे रोका है, मैं फिर बाद में किसी दिन आ जाऊँगी, बबली बोली और फोन रख दिया। उधर शकुंतला बड़बड़ाने लगी; कैसे लोग हैं, बहू को पहली तीजो पर भी मायके नहीं भेजते, अपनी लड़की को बुला लिया और बहू को नौकरानी बना दिया, खैर ईश्वर सब ...

सखी ये है कैसा सावन

 सखी ये है कैसा सावन। पहले तो तीजो पर भैया, लेने आ जाते थे। आँगन में अमुआ के नीचे, झूले पड़ जाते थे। ननद भावजें मिल जुलकर सब, झूले झुलवाती थीं। घेवर फैनी चाट पकौड़ी अम्मा बनवाती थीं। भैया भाभी अपने में ही, अब तो रहें मगन। सखी ये है कैसा सावन। दूर देस में बिटिया रहती, कैसे तीज मनाये। जी करता है चिड़िया जैसी, उड़कर ही आ जाये।। उसके बिन तो कोना कोना, लगता सूना सूना । झूले खाली पूछ रहे  हैं, कौन किसे झुलवाये। मम्मी पापा भी उदास हैं, भर भर रहे नयन। सखी ये है कैसा सावन। पढ़ लिख कर सब दूर हो गये, पहुँचे देश विदेश। अलग अलग परिवार सभी के, अलग अलग परिवेश। मेले झूले भूल गये सब, अब क्लब में जाते हैं। तम्बोला का खेल खेलकर, बनते बड़े विशेष। सोच रहा है कृष्ण वक्त ने बदले सभी चलन, सखी ये है कैसा सावन। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

मानसून की बिगड़ी चाल

 आज की बाल कविता मानसून की बिगड़ी चाल। ------–------------------- मानसून की बिगड़ी चाल। सूखे हैं सब पोखर ताल। जून गया जौलाई आयी। गरमी से है विकट लड़ाई।। बदन चिपचिपा रहा उमस में, गरमी में हैं खस्ता हाल। अरे बादलों अब तो आओ धरती माँ की प्यास बुझाओ। उमड़ घुमड़ कर अब तो बरसो, बंद करो अपनी हड़ताल। छत पर जम कर हम भीगेंगे। चाय पकौड़ी भी जीमेंगे। आ भी जाओ झमझम बरसो सब हो जायेंगे खुशहाल। श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG - 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद।

पिता बनकर पिता का मोल अब अपनी समझ आया।

  पिता बनकर पिता का मोल अब अपनी समझ आया। नहीं चिंता रही कोई, न कोई डर सता पाया पिताजी आपके आशीष.की हम पर रही छाया हमारी प्रेरणा है आपका सादा सरल जीवन  सदा हम पर रहे बस आपके व्यक्तित्व का साया. नहीं सोचा कि कैसी है, पिता की जेब की सेहत। रखी जिस चीज पर उंगली, उसी को हाथ में पाया। जरूरत के समय अपना, न कोई काम रुकता था। भुला अपनी जरूरत को, हमारा काम करवाया। भले थी जेब खाली किंतु चिंता में नहीं देखा अभावों का हमारे पर नहीं पड़ने दिया साया। पिता खामोश रहकर हर, घड़ी चिंता करे सबकी, पिता बनकर पिता का मोल अब अपनी समझ आया। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

पत्थरों सा जो हो गया होता।

  गज़ल  (पत्थरों सा जो हो गया होता) -------------------------------------- पत्थरों सा जो हो गया होता। आज मैं भी खुदा हुआ होता। फूल ये इस तरह न मुरझाता। प्यार से आपने  छुआ होता।। हम अँधेरों से पार पा लेते। एक भी दीप यदि जला होता। आपने यदि हवा न दी होती।  जख्म फिर से न ये हरा होता।   कंटकों से न घर सजाते तो। आज दामन न ये फटा होता।। काश तू पहले मिल गया होता हाल तेरा न यूँ बुरा होता राज दिल में अगर रखा होता दोस्त तू यूँ न बेवफा होता। कृष्ण  रहमत खुदा की हो जाती। उसकी चौखट पे जो झुका होता।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।

जिंदगी से दर्द ये जाता नहीं (तरही गज़ल)

  जिंदगी से दर्द ये जाता नहीं (तरही गज़ल) जिन्दगी से दर्द ये जाता नहीं और अपना चैन से नाता नहीं। आस की कोई किरण दिखती नहीं। बेबसी में कुछ कहा जाता नहीं।।  जिन्दगी मजदूर की देखो जरा दो घड़ी भी चैन वो पाता नहीं।। रात दिन खटता है रोटी के लिये। माल फोकट का कभी खाता नहीं।। सत्य की जो राह पर चलने लगा, साजिशों के भय से घबराता नहीं।। काम आयेगी न ये दौलत तेरी, मौत का धन से तनिक नाता नहीं।। वो कहाँ किस हाल में है क्या पता, यार की कोई खबर लाता नहीं।। कृष्ण जय जयकार के इस शोर से झुग्गियों के शोर का नाता नहीं।। श्रीकृष्ण शुक्ल,  MMIG - 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद,  (उ.प्र.)

सहजयोग पर मुक्तक

अपने आत्मतंत्र को जानो, आत्मशक्ति का भान करो। तुम ने खुद को कितना जाना, इस पर अनुसंधान करो। आ त्मज्ञान देने माँ निर्मल, पृथ्वी पर अवतरित हुईं। श्री माताजी को पहचानो, सहजयोग का ध्यान करो।। 'मानव मानव का दुश्मन है, कैसे इसको समझायें। द्वेष घृणा के चंगुल से अब, कैसे इसको छुड़वायें। सहज प्रेम से अब मानव को परिवर्तित करना होगा। प्रेम करोगे प्रेम मिलेगा, बात इसे ये समझायें ।'

आओ आशा दीप जलाएं

  माना चहुँ दिशि अंधकार है। सासों पर निष्ठुर प्रहार है।। लेकिन देखो हार न जाना। आशा को तुम जीवित रखना।। आशा का इक दीप जलाकर, अंधकार से लड़ते रहना। केवल एक दीप जलने से, ठिठका रहता अंधकार है। रात भले हो घोर अँधेरी,  उसकी भी सीमा होती है। रवि के रथ की आहट से ही, निशा रोज ही मिट जाती है। आशा दीपों की उजास से, बस करना तम पर प्रहार है। रात अंततः ढल जाएगी। भोर अरुणिमा ले आएगी।। सूर्य रश्मियों के प्रकाश से, कलुष कालिमा मिट जाएगी।। तब तक आशा दीप जलाएं, आशा है तो दूर हार है। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

पशु पक्षी आजाद मगर इन्सान बंद है।

कोरोना के चलते पूरा देश बंद है। घ र, दफ्तर, बाजार पूर्ण परिवेश बंद है।। रै ली, रेले, मेले, टेले, हाट, सिनेमा, आलू, टिक्की, चाट,बंद, संदेश बंद है। घर से बाहर आवाजाही पूर्ण बंद है दफ्तर और बजार बंद हैं, रेल बंद है। कुदरत ने भी देखो कैसा खेल रचाया। पशु पक्षी आजाद मगर इन्सान बंद है। मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे अरु चर्च बंद हैं। ट्रीट, पार्टी और मॉल का खर्च बंद है। रबड़ी, कुल्फी, फालूदा के इस मौसम में, काढ़ा चालू है पर फ्रिज की बर्फ बंद है।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद। प्रार्थना:   मानव के कष्टों का प्रभु जी अब तो अंत करो। त्राहि त्राहि हर ओर मची है अब तो बंद करो। करुणासागर हो अब करुणा का घट भी खोलो। मरघट की इन ज्वालाओं को अब, तो मंद करो। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

वक्त की अब नजाकत भी पहचान ले।।

  वक्त की अब नजाकत भी पहचान ले।। --------------------------------------- वक्त की अब नजाकत भी पहचान ले।। वक्त क्या कह रहा है जरा जान ले। मौत का कुछ हवा से मसौदा हुआ। बेवज़ह मौत से रार मत ठान ले।। कुछ दिनों घर के भीतर ही रह बंद तू। बंद सपनों की गठरी में अरमान ले।। मिलने जुलने के मौके मिलेंगे बहुत। कुछ दिनों घर की खटिया पे ही तान ले। क्या मिलेगा किसी कुंभ के स्नान में। बस कठौती में गंगा है ये मान ले।। मृत्यु से आज थोड़ा तो भयभीत हो। ये अचानक ही आयेगी फरमान ले।। रिश्ते नाते न होंगे न दौलत तेरी । काम कोई  न आयेगा ये मान ले।।  चार कंधे भी होंगे मयस्सर नहीं। साथ कोई न होगा तू ये जान ले।। तेरी कीमत यहाँ मात्र इक वोट है। कृष्ण औकात अपनी तू पहचान ले । श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

तटस्थ धर्मराज

तटस्थ धर्मराज ------------------ वाह रे धर्मराज, कलियुग में भी दिखा ही दिया अपना प्रभाव। तब एक युधिष्ठिर थे, यद्यपि धर्मराज कहलाते थे, लेकिन उन्होंने घोर अधर्म किया हारा हुआ राज्य फिर से पाने के लिये,  द्रुपदसुता को ही दाँव पर लगा दिया। उसकी लाज लुटती रही,धर्मराज तटस्थ बने रहे। कलियुग में फिर  धर्मराज आ गये, इस बार चुनाव आयोग के रूप में आये, वायरस के संक्रमण का फैलाव भी उन्हें डिगा न सका, लोग मरते रहे, आंकड़े बढ़ते रहे, रैलियां, रोड शो होते रहे,  किंतुु धर्मराज तटस्थ रहे। एक राज्य की विजय का सवाल  आज भी धर्मराज से अधर्म करवाता रहा, भीष्म, द्रोणाचार्य और विदुर,  आज भी कुछ कहने का साहस न जुटा सके,  और राजा तो तब भी धृतराष्ट थे, जन्मान्ध थे,  आज भी धृतराष्ट सम ही हैं, उन्हें कुछ दीखता ही नहीं, उस समय द्रुपदसुता की लाज बचाने कृष्ण को आना पड़ा, आज तो वह भी नहीं हैं कहीं, हाँ न्याय के मंदिर से एक आवाज आयी तो है, धर्मराज पर उँगली उठाई तो है। लेकिन युद्ध तो आज अपने चरम पर है, तब द्रौपदी ही एकमात्र पीड़ित थी, आज समस्त प्रजा ही पीड़ित है, मर रही है। जरा सोचो तो ...

आज है बेबस हर इन्सान।

आज है बेबस हर इन्सान। सभी के संकट में हैं प्राण।। करोना मचा रहा उत्पात। कर रहा है छिप छिप कर घात। मनुज है बेबस औ लाचार, हो रहा सांसों पर आघात। एक वायरस के प्रभाव से,  हार रहा इन्सान। नहीं हैं संसाधन पर्याप्त। हताशा चहुं दिशि में है व्याप्त। सांस की डोर रही है टूट, वृक्ष से ज्यों झरते हैं पात।। क्रूर काल के सम्मुख कितना, बेबस है इन्सान। यहाँ पर भी अपना है दोष, व्यर्थ ही है शासन पर रोष, मुनाफाखोर हुए निर्लज्ज, भर रहे सारे अपना कोष। नोंच रहे हैं इन्सानों को, जमाखोर शैतान। जगाना होगा सकल समाज। जगाओ मानवता को आज। सभी हों सेवा को तैयार, बनेंगे बिगड़े सारे काज।‌ हाथ मदद को उठें असंख्यों बचें सभी के प्राण। निराशा का अब हो अवसान, पुकारो आयेंगे भगवान। वही हैं सबके खेवनहार, रखो बस श्री चरणों में ध्यान।। श्वास श्वास में याद करो तुम, होवेगा कल्याण। श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद।

अथ माला महात्म्य

  अथ माला महात्म्य ----------------------- आजकल प्रत्येक कार्यक्रम में माला की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कार्यक्रम का शुभारंभ भी सरस्वती जी को माला पहनाए बगैर नहीं होता। मंच पर बैठने वालों के गले में भी जब तक माला सुशोभित न हो तब तक कार्यक्रम की शुरुआत नहीं होती। यहाँ माला पहनने वाला ही नहीं माला पहनाने वाला भी खुद को कुछ विशेष समझने लगता है या यों कह लीजिए कि संतोष कर लेता है कि चलो पहनने वालों में नही तो पहनाने वालों में ही सही, नाम तो आया।  माला पहनाकर वह फोटू अवश्य खिंचवाता है ताकि सनद रहे। जिन्हें माला पहनने पहनाने का सौभाग्य नहीं मिलता वह ऐसे ही नाराज नाराज से बैठे रहते हैं जैसे शादी वाले घर में फूफा रहता है। उनकी पैनी दृष्टि कार्यक्रम के संचालन व अन्य व्यवस्थाओं का छिद्रान्वेषण करने में लगी रहती है और संयोग से कुछ कमी रह गई तो उनकी आत्मा को परम संतोष की अनुभूति होती है। आखिर कार्यक्रम की निंदा का कुछ मसाला तो मिला। कभी कभी माला पहनने वाले इतने अधिक हो जाते हैं कि कार्यक्रम के संचालक भी सभी को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते, और असमंजस रहता है कि कहीं रामलाल की माला ...

होली पर मुंह काला कर दिया

  होली के अवसर आज ही रचित: होली के दिन सवेरे ही सवेरे हमारे पडोसी ने घंटी बजा दी। जब तक हम कुछ समझ पाते , हमारे चेहरे पे कालिख लगा दी। हमने कहा भैय्ये क्यूं पैसे बरबाद कर रहे हो। ब्लैक बोर्ड पर कोयला रगड़ रहे हो। हमारे कालिख लगाकर अपना टाइम भी बरबाद कर रहे हो। कालिख ही मलनी थी तो किसी एजरी केजरी का मुँह काला करते। या किसी सहारा वहारा के जा के मलते। या किसी कोयला मंत्री को ही घेर लेते। तुम्हारा भी अखबार में फोटू छप जाता , फुटेज पा लेते हो सकता है कोई आम आदमी लपक लेता और टिकट पा लेते। मामू सुबह सुबह रंग लगाकर तुमने हमारा ही नहीं अपनी भाभी का मूड भी खराब कर दिया। भला उनसे पहले हमारा मुंह तुमने कैसे काला कर दिया। अब तो तुम्हें हमारे यहां से चाय और गुझिया भी नहीं मिलेगी। और मामू जब बोहनी ही खराब हुई है तो पूरी होली ऐसी ही रहेगी। रही बात हमारी तो हम जैसों से तो सूरदास भी रह गया था दंग। तभी तो कह गया था: सूरदास ये काली कमली चढै न दूजो रंग। रचयिता: श्रीकृष्ण शुक्ल दिनांक: 16.3.2014.

कमजोर नहीं है नारी : व्यंग

 कमजोर नहीं है नारी : व्यंग --------------------------------- कौन कहता है कमजोर है नारी कमजोर कभी नहीं थी वो बेचारी. मुझे तो याद आते हैं बचपन के वो दिन जब साथी मुझे धमकाते थे, डराते थे, हड़़काते थे,  साथ ही कहते जाते थे, ;नानी याद आ जाएगी,  तभी मुझे पता लगा था कि नानी तो नाना से ज्यादा पॉवरफुल है स्कूल में ही एक पहलवानी का मुकाबला हुआ. वहाँ भी यही सुना;जिसने अपनी माँ का दूध पिया हो, सामने आ जाए मुझे लगा मैं व्यर्थ ही पिताजी से डरता हूँ, असली ताकतवर तो माँ है जिसके दूध में इतनी ताकत है, कि पहलवान भी उसी से डरता है. फिर पहलवान को यह भी कहते सुना, इतनी मार लगाऊँगा कि   छठी का दूध याद आ जाएगा, अब भाई छठी का दूध तो बच्चा माँ का ही पीता है. वैसे तो आजकल तमाम बच्चे सीजेरियन से पैदा होते हैं,  लेकिन छठी का दूध तो वह भी माँ का ही पीते हैं, बल्कि आजकल तो डाक्टर छह महीने तक सिर्फ माँ का दूध ही पिलवाते हैं भले ही बाप फिर बड़े होने तक खिलाता हो, पिलाता हो, पढ़ाता हो, लिखाता हो, लेकिन याद छठी का दूध ही आता है, याद नानी ही आती है, काम माँ का दूध ही आता है. इतनी शक्तिशाली है ...

जिस जगह पूज्य होती नारी, उस जगह देवता बसते हैं।

जिस जगह पूज्य होती नारी, उस जगह देवता बसते हैं नारी तो सबकी जननी है, उससे ही जीवन पाया है, उसने पयपान कराकर ही, हमको बलवान बनाया है, वह जननी है, वह भगिनी है, सहचरिणी है, पुत्री भी है, निज प्रेम और निज करुणा से उसने संसार चलाया है। उस नारी को तुम आज जन्म लेने से पहले मार रहे, निज अहंकार, निज दानवता से मानवता को मार रहे, नारी विहीन ये सृष्टि भला, कितने बरसों चल पाएगी, तुम आज मार कर नारी को, आने वाला कल मार रहे। नर नारी के संयोजन से ही सृजन सदा होता आया, रथ के दो पहियों जैसे हैं, नर नारी ये सुनता आया, यदि एक चक्र रुक जाता है, तो सफर वहीं रुक जाता है, फिर भी नारी को ये समाज, नित अपमानित करता आया हम अहंकार में नारी पर सामाजिक बंधन कसते हैं, हम राहु बने अवसर पाकर, उसकी आजादी ग्रसते हैं, हम अहंकार में अँधे हैं, पर ये क्यों भूले बैठे हैं, जिस जगह पूज्य होती नारी, उस जगह देवता बसते हैं। ऐ मानव अब तो हो सचेत, मत नारी का अपमान करो, उसको कुलक्षिणी कह कह कर, निज कुल का मत संधान करो, वह गृह लक्ष्मी है, किन्तु तुम्हें आराध्य मानती रहती है, उस शक्ति स्वरुपा नारी का, प्रतिपल प्रतिक्षण सम्मान करो। श्रीक...

मुस्कुराने के लिये

  मुस्कुराने के लिए  रूठना भी है जरूरी, मान जाने के लिये। कुछ बहाना ढूंढ लीजे मुस्कुराने के लिए । जिन्दगी की जंग में उलझे हुए हैं इस कदर। वक्त ही मिलता नहीं, हँसनै हँसाने के लिये। काम ऐसा कर चलें जो नाम सदियों तक रहे। अन्यथा जीते सभी हैं सिर्फ खाने के लिये। ग़मज़दा कोई नहीं है, मौत पर भी आजकल। लोग जुड़ते हैं फक़त चेहरा दिखाने के लिये। कृष्ण ये धरना यहाँ पर अनवरत चलता रहे। माल म‌‌‌िलता है यहाँ भरपूर खाने के लिये। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।