मानसून की बिगड़ी चाल
आज की बाल कविता
मानसून की बिगड़ी चाल।
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मानसून की बिगड़ी चाल।
सूखे हैं सब पोखर ताल।
जून गया जौलाई आयी।
गरमी से है विकट लड़ाई।।
बदन चिपचिपा रहा उमस में,
गरमी में हैं खस्ता हाल।
अरे बादलों अब तो आओ
धरती माँ की प्यास बुझाओ।
उमड़ घुमड़ कर अब तो बरसो,
बंद करो अपनी हड़ताल।
छत पर जम कर हम भीगेंगे।
चाय पकौड़ी भी जीमेंगे।
आ भी जाओ झमझम बरसो
सब हो जायेंगे खुशहाल।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद।
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