सखी ये है कैसा सावन

 सखी ये है कैसा सावन।


पहले तो तीजो पर भैया, लेने आ जाते थे।

आँगन में अमुआ के नीचे, झूले पड़ जाते थे।

ननद भावजें मिल जुलकर सब, झूले झुलवाती थीं।

घेवर फैनी चाट पकौड़ी अम्मा बनवाती थीं।

भैया भाभी अपने में ही, अब तो रहें मगन।

सखी ये है कैसा सावन।


दूर देस में बिटिया रहती, कैसे तीज मनाये।

जी करता है चिड़िया जैसी, उड़कर ही आ जाये।।

उसके बिन तो कोना कोना, लगता सूना सूना ।

झूले खाली पूछ रहे  हैं, कौन किसे झुलवाये।

मम्मी पापा भी उदास हैं, भर भर रहे नयन।

सखी ये है कैसा सावन।


पढ़ लिख कर सब दूर हो गये, पहुँचे देश विदेश।

अलग अलग परिवार सभी के, अलग अलग परिवेश।

मेले झूले भूल गये सब, अब क्लब में जाते हैं।

तम्बोला का खेल खेलकर, बनते बड़े विशेष।

सोच रहा है कृष्ण वक्त ने बदले सभी चलन,

सखी ये है कैसा सावन।


श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

Comments

Popular posts from this blog

आठ फरवरी को किसकी होगी दिल्ली।

ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I

होली पर मुंह काला कर दिया