आज है बेबस हर इन्सान।

आज है बेबस हर इन्सान।

सभी के संकट में हैं प्राण।।


करोना मचा रहा उत्पात।

कर रहा है छिप छिप कर घात।

मनुज है बेबस औ लाचार,

हो रहा सांसों पर आघात।

एक वायरस के प्रभाव से, 

हार रहा इन्सान।


नहीं हैं संसाधन पर्याप्त।

हताशा चहुं दिशि में है व्याप्त।

सांस की डोर रही है टूट,

वृक्ष से ज्यों झरते हैं पात।।

क्रूर काल के सम्मुख कितना,

बेबस है इन्सान।


यहाँ पर भी अपना है दोष,

व्यर्थ ही है शासन पर रोष,

मुनाफाखोर हुए निर्लज्ज,

भर रहे सारे अपना कोष।

नोंच रहे हैं इन्सानों को,

जमाखोर शैतान।


जगाना होगा सकल समाज।

जगाओ मानवता को आज।

सभी हों सेवा को तैयार,

बनेंगे बिगड़े सारे काज।‌

हाथ मदद को उठें असंख्यों

बचें सभी के प्राण।


निराशा का अब हो अवसान,

पुकारो आयेंगे भगवान।

वही हैं सबके खेवनहार,

रखो बस श्री चरणों में ध्यान।।

श्वास श्वास में याद करो तुम,

होवेगा कल्याण।


श्रीकृष्ण शुक्ल,

MMIG-69,

रामगंगा विहार,

मुरादाबाद।

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