आओ आशा दीप जलाएं

 माना चहुँ दिशि अंधकार है। सासों पर निष्ठुर प्रहार है।।

लेकिन देखो हार न जाना।

आशा को तुम जीवित रखना।।

आशा का इक दीप जलाकर,

अंधकार से लड़ते रहना।

केवल एक दीप जलने से,

ठिठका रहता अंधकार है।


रात भले हो घोर अँधेरी, 

उसकी भी सीमा होती है।

रवि के रथ की आहट से ही,

निशा रोज ही मिट जाती है।

आशा दीपों की उजास से,

बस करना तम पर प्रहार है।


रात अंततः ढल जाएगी।

भोर अरुणिमा ले आएगी।।

सूर्य रश्मियों के प्रकाश से,

कलुष कालिमा मिट जाएगी।।

तब तक आशा दीप जलाएं,

आशा है तो दूर हार है।


श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

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