पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है

 गीत (पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है)


वसुंंधरा पर जहाँ जहाँ तक, पर्वत का विस्तार है,

ऐसा लगता है वसुधा ने किया हुआ श्रंगार है,

पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है


पर्वत हैं तो हरियाली है

पर्वत हैं तो खुशहाली है

पर्वत में रहने वालों के

गालों पर दिखती लाली है,

पर्वत में संपूर्ण प्रकृति का, बसा हुआ संसार है

पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है


हरि हर का आगार यहाँ है

और मोक्ष का द्वार यहाँ है

हिमशिखरों से कल कल बहती

गंगा जमुना धार यहाँ है

इनमें ही कैलाश बसा है, इनमें ही केदार है!

पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है


खनिजों का भंडार यहाँ है

सदानीर जलधार यहाँ हैं

यहीं हिमशिखर, और सघन वन

चंदन और दयार यहाँ है

जड़ी बूटियो, औषधि फल की तो इनमें भरमार है

पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है


मृद जल इनसे ही मिलता है

मानसून इनमें टिकता है

इनसे सब संसाधन मिलते

जीवन इनसे ही चलता है

पर्वत से ही प्राणवायु का, होता नित संचार है

पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है


जल,जन, जंगल, अरु, जमीन सब,

परबत की अच्छी होती है

परबत में रहने वालों की, 

नीयत भी सच्ची होती है

सीमित संसाधन हैं फिर भी, मृदु इनका व्यवहार है

पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है


हम जंगल को काट रहे हैं,

अरु नदियों को बाँध रहे हैं

सड़कें और सुरंग बनाकर,

चट्टानों को छाँट रहे हैं

अंधाधुंध विकास वस्तुत:, इन पर अत्याचार है

पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है


आओ अब सचेत हो जायें

जन जन को हम आज जगायें

रोपें वृक्ष बढ़ाएं जंगल,

पुन: धरा को स्वर्ग बनायें

घायल वसुंधरा का मिल कर, अब करना उपचार है,

पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है I


श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद I

Comments

Popular posts from this blog

आठ फरवरी को किसकी होगी दिल्ली।

ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I

होली पर मुंह काला कर दिया