बेटी बनाम बहू

 लघुकथा:


बेटी बनाम बहू

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मम्मी कल तीजो है, शालिनी को मायके वालों ने बुलाया है। आप कहो तो इसे सुबह छोड़ आऊँगा, तीजो करके शाम को आ जायेगी; सतीश ने सोने से पहले अपनी माँ शकुंतला से कहा।

अरे, बहू ने तो मुझसे नहीं कहा; कल ही बबली भी ससुराल से घर आयेगी, उसकी पहली तीजो है, उसके ससुराल वाले भी सिंदारा लेकर आयेंगे, शालिनी चली जायेगी तो मैं अकेली कैसे सम्हालूंगी, शकुंतला बोली। 

बात आयी गयी हो गयी।

अगले दिन सुबह सुबह ही बबली का फोन आया; मम्मी मैं तीजो करने घर नहीं आ पाऊँगी, हमारी ननद की भी पहली तीजो है, वह और उनकी ससुराल वाले आ रहे हैं, जिस कारण मुझे रुकना पड़ेगा, मेरा इंतजार मत करना।

अरे ऐसा कैसे, तेरी भी तो पहली तीजो है, तेरा भी तो आना जरूरी है, शकुंतला बोली। कोई बात नहीं मम्मी, मैं चली आऊँगी तो यहाँ मम्मी जी अकेले कुछ नहीं कर पायेंगी, इसीलिये उन्होंने मुझे रोका है, मैं फिर बाद में किसी दिन आ जाऊँगी, बबली बोली और फोन रख दिया।

उधर शकुंतला बड़बड़ाने लगी; कैसे लोग हैं, बहू को पहली तीजो पर भी मायके नहीं भेजते, अपनी लड़की को बुला लिया और बहू को नौकरानी बना दिया, खैर ईश्वर सब देखता है, उनकी करनी उनके साथ, शकुंतला बड़बड़ाती जा रही थी, उसे यह भी भान न रहा कि उसकी बहू शालिनी भी उसकी बातें सुन रही है। 


श्रीकृष्ण शुक्ल,

MMIG -69,

रामगंगा विहार,

मुरादाबाद।

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