गज़ल (हाथ में इक ख़त पुराना आ गया)


गज़ल (हाथ में इक ख़त पुराना आ गया)

हाथ में इक खत पुराना आ गया। याद फिर गुज़रा जमाना आ गया।।

सोचते ही सोचते हम सो गये।

स्वप्न में किस्सा पुराना आ गया।।


साथ जब से आपका हमको मिला।

दर्द में भी मुस्कुराना आ गया।।


जिन्दगी तो एक नाटक मात्र है।

पात्र बन इसको निभाना आ गया।।


आप आये तो लगा ऐसा हमें।

दौर शायद वो पुराना आ गया।


कुछ चुहल हमने करी कुछ आपने!

इस तरह हँसना हँसाना आ गया!!


प्यार फूलों से किया है इस कदर!

कंटकों से भी निभाना आ गया!!


मानसूनी बादलों की आड़ में!

कृष्ण अब आंसू छुपाना आ गया!!


श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद

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