कमजोर नहीं है नारी : व्यंग

 कमजोर नहीं है नारी : व्यंग

---------------------------------


कौन कहता है कमजोर है नारी

कमजोर कभी नहीं थी वो बेचारी.

मुझे तो याद आते हैं बचपन के वो दिन

जब साथी मुझे धमकाते थे, डराते थे, हड़़काते थे, 

साथ ही कहते जाते थे, ;नानी याद आ जाएगी, 

तभी मुझे पता लगा था कि नानी तो नाना से ज्यादा पॉवरफुल है

स्कूल में ही एक पहलवानी का मुकाबला हुआ.

वहाँ भी यही सुना;जिसने अपनी माँ का दूध पिया हो, सामने आ जाए

मुझे लगा मैं व्यर्थ ही पिताजी से डरता हूँ,

असली ताकतवर तो माँ है

जिसके दूध में इतनी ताकत है, कि पहलवान भी उसी से डरता है.

फिर पहलवान को यह भी कहते सुना, इतनी मार लगाऊँगा कि   छठी का दूध याद आ जाएगा,

अब भाई छठी का दूध तो बच्चा माँ का ही पीता है.

वैसे तो आजकल तमाम बच्चे सीजेरियन से पैदा होते हैं, 

लेकिन छठी का दूध तो वह भी माँ का ही पीते हैं,

बल्कि आजकल तो डाक्टर छह महीने तक सिर्फ माँ का दूध ही पिलवाते हैं

भले ही बाप फिर बड़े होने तक खिलाता हो, पिलाता हो, पढ़ाता हो, लिखाता हो, लेकिन याद छठी का दूध ही आता है, याद नानी ही आती है, काम माँ का दूध ही आता है. इतनी शक्तिशाली है नारी.

हाँ अभी कल ही एक कार्यक्रम में एक अजीब प्रतियोगिता हुई. जो व्यक्ति अपनी पत्नि से डरता है, हाथ ऊपर उठाए. कसम से सारे हाथ ऊपर उठ गए. लेकिन सामने ही एक दुबला पतला व्यक्ति दोनों हाथ नीचे रखे चुपचाप बैठा था. सबने उसे बड़ी ईर्ष्या से देखा. उसे पुरस्कार देने के बाद पूछा गया, क्या.वाकई तुम अपनी पत्नी से नहीं डरते हो?

वो डायस पर बैठी अपनी पत्नी की ओर देखता हुआ बोला, मुझे कुछ नहीं पता, मुझसे तो इन्होंने कहा था बगैर हिलेडुले चुपचाप बैठे रहना.

मान गए भाई, यहाँ भी पत्नियां ही ताकतवर हैं

आज जब मैं आसपास चारों ओर नजर डालता हूँ

तो साफ साफ देख पाता हूँ

यहाँ तो हर व्यक्ति अपनी पत्नि से डरता है,

और सच कहूँ तो मैं भी बाहर भले ही शेर बनता हूँ,

लेकिन घर में तो भीगी बिल्ली बना रहता हूँ,

तभी तो कहता हूँ शक्तिमान है नारी, 

मत समझो उसको बेचारी.

वो तो इसीलिए कमजोर पड़ जाती है,

क्योंकि आज नारी ही नारी की दुश्मन बन जाती है.

सास बनकर बहू को सताती है,

कोख में पलती बेटी को मरवाती है,

खुद की बेटी से दिनभर घर का काम कराती है,

और बेटे को दूध मलाई खिलाती है,

सोचती है, बेटा बड़ा होकर बहू लाएगा, साथ में दहेज भी लाएगा,

बेटी का क्या, ये तो पराया धन है, पराए घर जाएगी, और घर भी खाली कर जाएगी,

यही सोच, मित्रों बस यही सोच नारी को बेबस कर जाती है,

वास्तव में नारी ही नारी को कमजोर बनाती है,

नारी ही नारी को कमजोर बनाती है।


श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

Comments

Popular posts from this blog

आठ फरवरी को किसकी होगी दिल्ली।

ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I

होली पर मुंह काला कर दिया