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Showing posts from 2019
सैनिक के जीवन पर तीन मुक्तक दिवाली पर न आऊँगा, उमंगों को सुला देना। छुट्टी मिल नहीं पायी, अकेले घर सजा लेना। यहां सरहद पे हम मिलकर, पटाखे खूब फोड़ेंगे। हमारे नाम के दीपक, वहाँ तुम ही जला देना। सफर अब पूर्ण होता है, मुझे हँसकर विदा करना। जो मेरी याद आये तो, कहीं छुपकर के रो लेना। अकेलेपन का जीवन में, तुम्हें अहसास हो जब भी। गुजारे साथ जो लम्हे, उन्हीं को याद कर लेना।। आँसू पोंछ लो माँ अब, नहीं तुमको रुलाऊँगा। बड़ा होकर वतन के वास्ते, सेना में जाऊँगा। मैं दुश्मन को उसी के घर में घुसकर के मिटा दूँगा। अधूरा काम पापा का, मैं पूरा कर के आऊँगा।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

नागरिकता संशोधन पर कुंडलिया

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           नागरिकता संशोधन बिल पास होने पर                         त्वरित कुंडलिया।             सी ए बी बिल भी हुआ, राज्यसभा में पास।             सिब्बल, राहुल, दिग्विजय सारे भये उदास।।             सारे भये उदास, घड़ी संकट की आयी।             जाने कितने और नियम बदलेंगे भाई।।             रहा अगर ये हाल, बनेगी हालत कैसी।             कांग्रेस की 'कृष्ण', हुई ऐसी की तैसी।।             श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।             12.12.2019

मुक्तक

             एक मुक्तक सामने आकर मधुर स्वर बोलता है। पीठ पीछे सिर्फ विष ही घोलता है।। आदमी से मित्र दर्पण ही भला है। नित्य मेरे राज खुलकर खोलता है।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

नमामि गंगे हर हर गंगे

नमामि गंगे हर हर गंगे ============== नमामि गंगे सुनते सुनते, इक दिन हमने भी ये सोचा गंगा को हम भी दे आएं, पापों का सब लेखा जोखा स्वच्छ मिलेगी गंगा भी अब, तन मन निर्मल हो जाएगा अनजाने जो पाप हुए हैं, उनका मोचन हो जाएगा लगा लगा कर डुबकी जल में, हो जाएंगे मस्त मलंगे निर्मल मन निर्मल तन होगा, खूब कहेंगे हर हर गंगे हर हर गंगे हर हर गंगे, नमामि गंगे हर हर गंगे फिर चिंतन का चला सिलसिला, मन पर बस गंगा ही छाई निर्मल गंगा के प्रवाह की, आस स्वतः मन में जग आई अबकी बार कुम्भ में देखो, स्वच्छ मिलेगी हर हर गंगे साफ रहेगा गंगा का जल, धन्य धन्य हे नमामि गंगे साधू, स्वादू, योगी ढोंगी, नहा नहा होवेंगे चंगे सबके पाप हरेगी गंगा , सभी कहेंगे हर हर गंगे हर हर गंगे हर हर गंगे, नमामि गंगे हर हर गंगे नमामि गंगे के चिंतन की, धारा भी बहती रहती है स्वच्छ बहे गंगा की धारा, ये मंथन करती रहती है अरबों खरबों खर्च हो गया, गंगा मैली ही रहती है आरोपों प्रत्यारोपों की, रस्म सदा निभती रहती है नेता अभिनेता भी इसमें. धोकर पाप हुए हैं चंगे हर हर गंगे हर हर गंगे, नमामि गंगे हर हर गंगे परदे के पीछे भी गंगा, अविरल ही ब...

धार के विपरीत ही मैं तो सदा चलता रहा।

एक दर्पण रूप मेरे नित्य नव गढ़ता रहा। मैं स्वयं की झुर्रियों के बिंब ही पढ़ता रहा।। दौड़ता हरदम रहा लेकिन कहीं पहुँचा नहीं। धार के विपरीत ही मैं.तो सदा चलता रहा। ढूँढकर पदचिन्ह मेरे, छू चुके हैं जो शिखर। मैं तो बस शुभकामनाएं ही सदा देता रहा।। तुम जलाकर बत्तियाँ फोटो खिंचा कर चल दिये। एक दीपक अँधेरों से रात भर लड़ता रहा।। 'कृष्ण' मंदिर में पहुँच, कंचन से तुम तो लद गये। पर सुदामा द्वार पर ही ऐड़ियां घिसता रहा।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

जैसी करनी वैसी भरनी

दूर दूर तक धुआँ धुआँ है दिन में ही अँधकार हुआ है घोर कुहासे के बादल में बेबस सूरज कैद हुआ है. दृश्य सभी धूमिल दिखते हैं चक्षु हारते से लगते हैं कैनवास पर चित्र बने हों दृश्य सभी ऐसे दिखते हैं लेकिन जीवन कठिन हुआ है प्राण वायु का ह्रास हुआ है श्वास श्वास लेने को मानव बना प्रकृति का दास हुआ है नहीं प्रकृति की है ये करनी ये सारी त्रुटियाँ हैं अपनी जो बोया है वह काटोगे जैसी करनी वैसी भरनी अभी समय है खुद को बदलो धूल धुँए को सीमित कर लो रोपो वृक्ष बढ़ाओ जंगल पुनः धरा को स्वर्ग बना लो श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद.

हे गोवर्धन गिरधारी

हे गोवर्धन गिरधारी, हे माधव मदन मुरारी सब भ्रम में पड़े हुए हैं धर्मों में बँटे हुए हैं कैसी ये माया भारी हे माधव मदन मुरारी धरती अब हार रही है चुपचाप कराह रही है हर ओर प्रदूषण भारी हे गोवर्धन गिरधारी हे जन नायक अब आओ कुछ लीला पुनः रचाओ मिट जाएं पापा चारी हे माधव मदन मुरारी। हे गोवर्धन गिरधारी। अन्नकूट एवं गोवर्धन पूजा की शुभकामनाएं। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

मुक्तक

एक मुक्तक। एक दर्पण रूप मेरे नित्य नव गढ़ता रहा। मैं स्वयं की झुर्रियों के बिंब ही पढ़ता रहा।। दौड़ता हरदम रहा लेकिन कहीं पहुँचा नहीं। धार के विपरीत ही मैं तो सदा चलता रहा।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद। मोबाइल:9456641400।

जहरीली हवा

वायु प्रदूषण पर : मुक्त छंद रचना फिर जहरीली हुई हवा। घुलने लगी वातावरण में जलाँध दोष है किसानों पर। पराली जलाने का। कारीगरों पर, ई कचरा जलाने का। प्रश्न यही है दोषी कौन। चश्मा लगाया तो असली दोषी का पता चला। वो तो वसूली कर रहा था। चैन से घर पर सो रहा था। अब प्रशासन ने बना दी है एक कमेटी। क्या वो वायु प्रदूषण कम करेगी। नहीं, अब वो वसूली करेगी। पराली ऐसे ही जलेगी। हवा में जलाँध ऐसे ही घुलेगी। साँसों में घुटन बसती रहेगी। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

बाल कविता:केबीसी का खेल

बाल कविता: केबीसी का खेल ------------------------------------- टी वी पर नित देखकर के बी सी का खेल। छोटू बोला एक दिन खेलूँगा ये खेल।। सारे ही प्रश्नों के उत्तर मुझको आते। किन्तु कार्यक्रम वाले मुझको नहीं बुलाते।। पापा बोले कोशिश करना कार्य हमारा। क्या जाने किस पल जग जाये भाग्य तुम्हारा।। छोटू बोला सच है, पापा, लगा रहूँगा। और एक दिन हॉट सीट पर मैं बैठूँगा।। रकम जीतकर लाखों, मैं लेकर आऊँगा। बच्चन जी के साथ, सैल्फी खिंचवाऊँगा।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

बाबूजी का श्राद्ध

पितृपक्ष चल रहे हैं। इसी संदर्भ में एक मुक्तछंद हास्य रचना प्रस्तुत है बाबूजी का श्राद्ध --------------------- बाबूजी के श्राद्ध पर पंडित जी बोले, सुनो जजमान, जो बाबूजी खाते थे, वही बनवाना पकवान। यदि कुछ कमी रही तो, बाबूजी की आत्मा अतृप्त रह जाएगी। और उनका आशीर्वाद न मिला तो तुम्हारी भी बरक्कत रुक जाएगी। श्राद्ध के दिन थाली में सजे थे ढेरों पकवान। चखते चखते पंडित जी भी थे हैरान। बोले, अरे ये क्या जजमान न सब्जी में नमक, न खीर में मीठा, न तड़का, न छौंका। थाली में हैं छत्तीस व्यंजन, लेकिन सब फीका फीका। क्यों पंडित को सताते हो, यदि खिलाने का मन नहीं, तो क्यों बुलाते हो। तुरत हाथ जोड़ कर बोला जजमान। ऐसी बात नहीं है श्रीमान। हमारे बाबूजी डायबिटीज और ब्लड प्रैशर के मरीज थे। नमक और चीनी दोनों का परहेज रखते थे। यदि फीका न बनाते तो बिना खाये चले जाएंगे। और सब कुछ करने के बाद भी पितर अतृप्त रह जाएंगे। पंडित जी निरुत्तर हो चुपचाप खाने लगे। खा पीकर, डकार ले मूँछें सुखाने लगे। तभी गिलास में पानी लेकर फिर आया जजमान बोला ये गोलियाँ भी गटकिये श्रीमान। हमारे बाबूजी रोज दवा ...

दूध के दाँत।

बाल कविता: दूध के दाँत -------------- नटखट छोटू लगा बिलखने उसका दाँत लगा था हिलने दाँत कहाँ से मैं लाऊँगा बाबा जैसा हो जाऊँगा मम्मी पापा ने समझाया दाँत दूध के हैं बतलाया बारी बारी गिर जाएंगे फिर मजबूत दाँत आएंगे मिली तसल्ली तो मुस्काया। बच्चों के सँग रौल मचाया।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद। 17.09.2019

विद्या का मोल

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विद्या का मोल ---------------- पहले थे गुरुदेव, फिर कहलाये अध्यापक,                 बदलती परिस्थितियों में अब साहब,                 संबोधन में भी परिवर्तन है आवश्यक,                 इसीलिये अब वे कहलाते हैं शिक्षक।                 मेरे पूज्य पिताजी कहते थे,                 जब वो पढ़ने जाते थे,                 गुरुदेव पहले पाठ पढ़ाते थे,                 फिर घर का काम कराते थे,                 कोई भी छात्र हो न जाये फेल,                 इसीलिये घर पर भी क्लास चलाते थे।                 जब मैं पढ़ने जाता था,                 अध्यापक जी का ह...

गजानन तुमको करूँ नमन।

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           गजानन तुमको करूँ नमन।            आपका शत शत अभिनंदन।।            पार्वती सुत जग हितकारी।            तुमको पूजे दुनिया सारी।            विघ्न विनाशक लंबोदर ने,            मूषक जैसी चुनी सवारी।            रिद्धि सिद्धि के अधिपति            गणपति तुमको करूँ नमन।           आपका शत शत अभिनंदन।            भक्तों के प्रतिपाल तुम्हीं हो,            गणनायक गजभाल तुम्हीं हो।            तुमको साधे सब सध जाएं,            पार्वती के लाल तुम्हीं हो।            मेरी सब बाधाएँ हर लो            काटो भव बंधन        ...

बाल कविता: मैं हूँ नंबर वन

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          बाल कविता ः           मैं हूँ नंबर वन           -----------------           नटखट छोटूराम मुहल्ले भर का प्यारा।           हर चाची ताई नानी का रहा दुलारा।।           खेल कूद में बच्चों का अगुआ रहता था।           घर घर जाकर खूब शरारत भी करता था।।           रक्षाबंधन पर सबसे राखी बँधवाई।           कुहनी तक राखी से दोनों सजी कलाई।।           मम्मी पापा ने सबको घर में बुलवाया।           बहनों को उपहार दिया, मीठा खिलवाया।।           पूरे दिन छोटू घर घर घूमा इतराया।           मैं हूँ नंबर वन कह कह कर शोर मचाया।।           श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।           17.08.2019...

राह अपनी खुद बनाना, जिन्दगी आसान होगी।

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           राह अपनी खुद बनाना, जिंदगी आसान होगी।            --------------------------------------            कर्म करना तुम निरंतर, हर खुशी परवान होगी            राह अपनी खुद बनाना, जिंदगी आसान होगी।            मार्ग के कंटक तुम्हारे, पाँव को घायल करेंगे            और पर्वत से खड़े अवरोध, मन दुर्बल करेंगे,            छुओगे जिस पल शिखर, उस पल तुम्हारी शान होगी            राह अपनी खुद बनाना, जिंदगी आसान होगी            एक से सब दिन न होंगे, एक सी नहिं रात होगी            उजाले यदि साथ देंगे, अँधेरों में घात होगी            तुम सतत् चलते रहे तो, जीत भी आसान होगी            राह अपनी खुद बनाना, जिंदगी आसान होगी।  ...

तीज मेला

तीज मेले ------------- मेले तो अब भी लगते हैं, लेकिन अब वो बात कहाँ है। इस पिज्जा बर्गर डोसे में, घेवर वाला स्वाद कहाँ है।। पहले घर की सब महिलाएँ, आपस में मिल कर सजती थीं। बारी बारी इक दूजे के, हाथों में मेंहदी रचती थीं।। तीजो वाले दिन घर घर में, झूले पटली आ जाते थे। जगह.जगह अमराई  में भी, बड़े बड़े झूले पड़ते थे ननद और भौजाई मिलकर, सावन के गाने गाती थीं। पींग बढ़ाकर बारी बारी,  सभी झूलती थीं गाती  थीं।। अब तीजो पर गायब झूले, गायब हैं सावन के गीत। हाउजी के नंबर में ही अब, सिमट गयी उत्सव की प्रीत।। हम विकास के पथ पर चलकर, परंपराएं भूल गये हैं। मिलते हैं पर उत्सव का, आनंद मनाना भूल गये हैं।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

बारिश आयी (बाल कविता)

बारिश आई (बाल कविता) सुबह सवेरे बारिश आई मौज सभी बच्चों की आई अब तो छुट्टी हो जायेगी गर्मी में राहत आयेगी बारिश में छत पर जाकर अब भीगेंगे हम जमकर भाई भरा सड़क पर भी पानी है सब बच्चों की मनमानी है कागज की कश्तियाँ बनाकर पानी पर अब तैरानी हैं। किसकी पानी में डूबेगी किसकी पार करेगी भाई मम्मी बेसन घोल रही हैं आलू पालक काट रही हैं रोज परांठा ही मिलता था आज नया कुछ बना रही हैं आज बनेगी चाय पकौड़ी और साथ में दूध मलाई। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।