दूध के दाँत।

बाल कविता:

दूध के दाँत
--------------

नटखट छोटू लगा बिलखने
उसका दाँत लगा था हिलने
दाँत कहाँ से मैं लाऊँगा
बाबा जैसा हो जाऊँगा
मम्मी पापा ने समझाया
दाँत दूध के हैं बतलाया
बारी बारी गिर जाएंगे
फिर मजबूत दाँत आएंगे
मिली तसल्ली तो मुस्काया।
बच्चों के सँग रौल मचाया।।

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
17.09.2019

Comments

Popular posts from this blog

आठ फरवरी को किसकी होगी दिल्ली।

ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I

होली पर मुंह काला कर दिया