मुक्तक

एक मुक्तक।

एक दर्पण रूप मेरे नित्य नव गढ़ता रहा।
मैं स्वयं की झुर्रियों के बिंब ही पढ़ता रहा।।
दौड़ता हरदम रहा लेकिन कहीं पहुँचा नहीं।
धार के विपरीत ही मैं तो सदा चलता रहा।।

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
मोबाइल:9456641400।

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