मुक्तक

             एक मुक्तक

सामने आकर मधुर स्वर बोलता है।
पीठ पीछे सिर्फ विष ही घोलता है।।
आदमी से मित्र दर्पण ही भला है।
नित्य मेरे राज खुलकर खोलता है।।

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

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