तीज मेला

तीज मेले
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मेले तो अब भी लगते हैं, लेकिन अब वो बात कहाँ है।
इस पिज्जा बर्गर डोसे में, घेवर वाला स्वाद कहाँ है।।
पहले घर की सब महिलाएँ, आपस में मिल कर सजती थीं।
बारी बारी इक दूजे के, हाथों में मेंहदी रचती थीं।।
तीजो वाले दिन घर घर में, झूले पटली आ जाते थे।
जगह.जगह अमराई  में भी, बड़े बड़े झूले पड़ते थे
ननद और भौजाई मिलकर, सावन के गाने गाती थीं।
पींग बढ़ाकर बारी बारी,  सभी झूलती थीं गाती  थीं।।
अब तीजो पर गायब झूले, गायब हैं सावन के गीत।
हाउजी के नंबर में ही अब, सिमट गयी उत्सव की प्रीत।।
हम विकास के पथ पर चलकर, परंपराएं भूल गये हैं।
मिलते हैं पर उत्सव का, आनंद मनाना भूल गये हैं।।

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

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