मक्खन मुरादाबादी जी, महाप्रयाण




कल किसी सम्मान समारोह में जाना था। कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने ही वाला था कि व्योम जी का फोन आया और दुखद समाचार मिला। आदरणीय दादा मक्खन मुरादाबादी जी नहीं रहे। तुरंत वहीं से सीधा मक्खन जी के अंतिम दर्शन करने पहुंचा। विगत दो वर्ष से अस्वस्थ चल रहे थे। काफी कमजोर भी हो गये थे। बीमारी ने उन्हें बिल्कुल कृशकाय कर दिया था। चेहरे पर अजीब शांति थी मानो सभी संघर्षों से मुक्त होने की शांति हो। मन अत्यंत विह्वल हो रहा था। अधिक देर नहीं रुक सका और व्यथित मन से घर वापस आ गया।

कीर्त शेष मक्खन मुरादाबादी जी का जाना साहित्यिक जगत की अपूरणीय क्षति है।

कीर्त शेष मक्खन मुरादाबादी जी से मेरा प्रथम परिचय वर्ष 1985 में रामपुर में हुआ था। बैंक में हमारे सहकर्मी, मुकेश गुप्ता के निवास पर काव्य गोष्ठी थी। उसमें मक्खन जी आये थे। उसी गोष्ठी में मेरे काव्य पाठ की उन्होंने काफी प्रशंसा की थी और आगे लिखते रहने को प्रोत्साहित भी किया था। तभी मक्खन जी ने रामपुर में भी सवेरा संस्था की इकाई बनाई थी जिसमें हम व मुकेश गुप्ता प्रमुख कार्यकर्ता थे। वर्ष 1986 में रामपुर में ही सवेरा संस्था का राष्ट्रीय कवि सम्मेलन व मुशायरा हुआ था, जिसमें नीरज जी, कुंवर बेचैन, किशन सरोज, बशीर बद्र आदि तमाम प्रतिष्ठित कवि आये थे। मक्खन जी के संचालन में हमने पहली बार इतने उच्च स्तर के कार्यक्रम में काव्य पाठ किया। 

उसके बाद निरंतर उनका मार्गदर्शन मिलता रहा।

वर्ष 2013 में सेवानिवृत्ति के पश्चात काव्य गोष्ठियों व अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों में उनका सान्निध्य मिलता रहा।

लगभग पांच वर्ष पूर्व दिनांक 01 मार्च 2020 को अखिल भारतीय साहित्य परिषद , मुरादाबाद द्वारा मुझे साहित्य मनीषी सम्मान से सम्मानित किया गया था और वह सम्मान मुझे दादा माहेश्वर तिवारी जी व मक्खन मुरादाबादी जी द्वारा संयुक्त रूप से दिया गया था, जो मेरे लिये चिर स्मरणीय रहेगा।

वह अत्यंत सरल व मितभाषी थे। 

एक बार रोटरी क्लब मुरादाबाद में हमें होली मिलन कार्यक्रम के अवसर पर काव्य पाठ हेतु निमंत्रण मिला था। छोटी सी गोष्ठी की उन्होंने व्यवस्था की थी। मेरे आग्रह पर कीर्ति शेष दादा माहेश्वर तिवारी जी व मक्खन जी उसमें सम्मिलित हुए थे। उसी कार्यक्रम में उनके सुपुत्र प्रत्यक्ष देव त्यागी भी आमंत्रित थे। मक्खन जी ने मुझसे कहा कि शुक्ल जी कार्यक्रम का संचालन प्रत्यक्ष देव करेंगे। मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि इससे पहले कभी प्रत्यक्ष देव को सुना नहीं था। उस कार्यक्रम में प्रत्यक्ष देव त्यागी ने बहुत सुंदर संचालन किया और कुछ स्वरचित ग़ज़लें भी सुनाईं। उस समय उनके मुखमंडल पर जो संतोष के भाव थे, वह स्वाभाविक ही एक पिता के मुख पर पुत्र की सफलता से आने वाले भाव थे। 

उनके निधन से साहित्यिक जगत की अपूरणीय क्षति हुई है। ईश्वर उनकी आत्मा को सद्गति दें।

इन्हीं शब्दों के साथ उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूॅं।

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

12.01.2025

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