महाराजाओं की गाड़ी।
महाराजाओं की गाड़ी।
पिछले सप्ताह हम सहजयोग सेमिनार में सम्मिलित होने के लिए छिंदवाड़ा जा रहे थे। छिंदवाड़ा हेतु गाड़ी दिल्ली सफदरजंग स्टेशन से पकड़नी थी। सुबह लगभग 10 बजे हम सफदरजंग स्टेशन पहुंचे।
सफदरजंग स्टेशन का प्रवेश द्वार उस दिन बहुत सजा हुआ था। प्रवेश द्वार पर रंगीन कपड़ों की सजावट से भव्य द्वार बना था, नीचे रैड कार्पेट बिछा था, द्वार पर रेलवे की नीली यूनीफार्म में कुछ रेलवे अधिकारी पुष्प मालाएं लिए खड़े थे। हमें लगा कि कोई वीवीआईपी आज स्टेशन आ रहे होंगे। हमें भी स्टेशन के अंदर जाना था, हमने आगे जाकर एक अधिकारी से पूछा, क्या स्टेशन के अंदर जाने का कोई अन्य रास्ता है, वह तुरंत बोले आप भी आइए, अन्य कोई रास्ता नहीं है, हमने भी मुस्कुराते हुए कहा, वाह, अब तो हमें भी वी आई पी वाली फीलिंग आ रही है, इस पर सभी हॅंस पड़े।
अंदर जाकर देखा तो पूरे प्लेटफार्म पर भी रैड कार्पेट बिछा था, ऊपर छत के नीचे रंगीन कपड़ों की सीलिंग लगाई हुई थी। प्लेटफार्म पर एक हेरिटेज ट्रेन, महाराजा एक्सप्रेस खड़ी हुई थी। तमाम टीटीई व एटेंडेंट्स अपनी साफ सुथरी वर्दियों में मुस्तैदी से खड़े थे। महाराजा एक्सप्रेस के प्रत्येक यात्री का प्रवेश द्वार पर ही माल्यार्पण से भव्य स्वागत किया जा रहा था और उनके साथ साथ एटेंडेंट्स उन्हें गाड़ी में उनके डब्बे तक पहुंचा रहे थे।
हमने एक टीटीई से पूछा कि यह गाड़ी कहॉं कहॉं तक जायेगी, कितना किराया है आदि आदि। उन्होंने बताया कि ऐसी अन्य हेरिटेज गाड़ियां भी चलती हैं, जिनमें पैलेस ऑन व्हील्स (पहली हेरिटेज ट्रेन) भी शामिल हैं।
महाराजा एक्सप्रेस का यात्रावृत्त नौ दिनों का है तथा यह आगरा, जयपुर, उदयपुर आदि होते हुए मुंबई तक जाती है और दिल्ली वापस आ जाती है। इसका किराया न्यूनतम 8 लाख व अधिकतम 25 लाख है। किराया इस पर निर्भर करता है कि आप गाड़ी में किस प्रकार का कक्ष चाहते हैं। जितना अधिक सुविधायुक्त कक्ष होता है, उतना ही अधिक किराया होता है। इस गाड़ी के कक्ष में डबल बैड, सोफ़ा सैट, टेलीफोन , वाई फाई, टीवी, एयर कंडीशनर, सुविधायुक्त टॉयलेट आदि सभी व्यवस्थाएं होती हैं। एक अटेंडेंट भी घंटी बजाने पर हाजिर होता है।
इन सब बातों को देखकर हमें अहसास हो गया कि भले ही राजे रजवाड़े खत्म हो गये हों, लेकिन राजा महाराजाओं के विलासितापूर्ण जीवन की इच्छा अभी तक व्यक्ति के मन में बनी हुई है, और जिस भी व्यक्ति की हैसियत इस गाड़ी में सफर करने लायक होती है, वह एक बार जरूर इस गाड़ी में सफर करता है। वैसे भी इस गाड़ी से यात्रा का उद्देश्य सफर करना नहीं, क्योंकि यह सफर तो वातानुकूलित टिकट लेकर भी अधिकतम दस हजार रुपये में किया जा सकता है, उद्देश्य यही है कि राजा महाराजाओं की तरह से एक इशारे पर सजा धजा अर्दली हमें सलाम करे, एक इशारे पर जो भी चीज चाहो वह हाजिर हो जाये, राजाओं जैसा बिस्तर, रेशमी पर्दे लगीं खिड़कियां, मनपसंद लजीज खाना और न जाने क्या क्या।
खैर साहब अपना समय होते ही महाराजाओं की वह गाड़ी चली गई। गाड़ी के जाते ही रैड कार्पेट लपेटे जाने लगे, पर्दे व कपड़ों की सीलिंग समेटी जाने लगी और जब तक हमारी गाड़ी आती तब तक रेलवे स्टेशन भी आम आदमी जैसा आम स्टेशनों जैसा ही हो गया था।
रेलवे को सर्वाधिक आय प्रदान करवाने वाले आम यात्री अब भी सर्वाधिक उपेक्षित थे। वह दीगर बात है कि थोड़ी देर के लिये ही सही हमें भी उस रैड कार्पेट पर चलने देना रेलवे की मजबूरी थी, अन्यथा ट्रेन के जाते ही हम जैसे यात्रियों को उनकी औकात बता दी गई थी।
हमने महाराजा एक्सप्रेस के सामने व ट्रेन के टीटीई के साथ कुछ सैल्फी लीं थीं, वह आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
04.01.2025





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