मुरारी की चौपाल, आम आदमी की जिंदगी की विषमताओं को अभिव्यक्ति देती कविताओं का विलक्षण संग्रह। ।

मुरारी की चौपाल, आम आदमी की जिंदगी की विषमताओं को अभिव्यक्ति देती कविताओं का विलक्षण संग्रह। ।


अन्धेरी रातों और बेबुनियाद बातों के बीच,
सिसक सिसक कर जी रही है,
जिन्दगी हर इन्सान की,
हर जीव की चिंता बस पेट भर रोटी की है,,
ये पंक्तियां हैं संभल के निवासी लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री अतुल कुमार शर्मा के काव्य संग्रह 'मुरारी की चौपाल' में निहित कविता 'अंधेरे में तीर' की।
ये पंक्तियां ही रचनाकार के अंतर्मन की संवेदनशीलता और उनके रचनाकर्म से परिचित कराने के लिये पर्याप्त हैं।
उनका काव्य संग्रह 'मुरारी की चौपाल' मुझे पिछले माह ही प्राप्त हो गया था। यद्यपि काव्य संग्रह में सभी कविताएं अतुकांत शैली में हैं, फिर भी एक बार जब पढ़ना शुरु किया तो पूरा पढ़ने से स्वयं को रोक न पाया। सभी रचनाएं वर्तमान सामाजिक परिवेश में जीवन की विषमताओं, सामाजिक ताने बाने में मानवीय स्वभाव, आर्थिक असमानता के कारण उत्पन्न विषमताओं तथा हमारे व्यक्तिगत, सामाजिक और राजनीतिक सरोकारों से संबंधित परिस्थितियों को प्रतीकों के माध्यम से  अभिव्यक्ति देती हैं, जिसमें दर्द भी है, विवशता भी है,खीज और आक्रोश भी है। सामाजिक विषमताओं पर चोट करती रचनाओं में व्यंग का समावेश स्वाभाविक ही होता है, जो इन रचनाओं में भी दृष्टिगोचर होता है। 
यही कारण है कि काव्य संग्रह में प्रारंभ से अंत तक रुचि बनी रहती है,क्योंकि ये रचनाएं पाठक के स्वयं के जीवन के इर्द गिर्द घूमती प्रतीत होती हैं।
मैंने इस पुस्तक पर अपने समीक्षात्मक अध्ययन को लिपिबद्ध करने से पूर्व इसमें निहित रचनाओं को बार बार पढ़ना उचित समझा, क्योंकि इस प्रकार की संवेदनशील रचनाओं के मर्म तक पहुँचने के लिये शब्दों के माध्यम से रचनाकार के ह्रदय तक पहुँचना आवश्यक था। उन संवेदनाओं को, उस पीड़ा को महसूस करना आवश्यक था।
यद्यपि उक्त काव्य संग्रह की सभी रचनाएं अपने दायरे में श्रेष्ठ हैं, किंतु सभी रचनाओं का यहाँ उल्लेख करना संभव न होगा।
उनकी कुछ रचनाओं में निहित अर्थपूर्ण पंक्तियों को यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ 
उनकी रचना कोल्हू का बैल जो जीवन की संघर्षशीलता, उठापटक, हताशा, निराशा और फिर नई आशा की निरंतरता को व्यक्त करती है:
कभी दो कदम इधर, कभी दो कदम उधर,
भटकता रहा मैं, ठिठक ठिठक कर,
हताशा और संशय में, अटक अटक कर,
बना हुआ कोल्हू का बैल।
उनकी रचना 'तू फिर हार गई', जीवन की जिजीविशा के मृत्यु से संघर्ष की सशक्त अभिव्यक्ति है जिसमें अंततः मृत्यु हार जाती है और जिन्दगी जीत जाती है।
दूरी शायद कुछ ज्यादा न बची होगी,
दूसरी पार के मिलन होने में,
बीच में थी तो केवल जद्दोजहद,
मेरे इधर आने की या उधर जाने की,
------
आखिर जीत ही गये मेरे सिपाही,
जीत गई जिंदगी
और तू हार गई, 

रचना चोंच भर पानी पक्षियों के प्रति संवेदनाएं जगाने में सक्षम है, और पक्षियों के लिये छत पर दाना पानी रखने के महत्व को दर्शाती है।
आ जाते हैं आपके इर्द गिर्द,
नन्हे पेट की खातिर,
दिखाते ही मुट्ठी भर दाने,
बदले में उड़ेल जाते हैं ढेर सारा आशीर्वाद।
और चोंच भर पानी के बदले बना जाते हैं,
तुम्हें भी 'पानीदार'।

बेसुरे राग: भ्रष्ट व्यवस्था की विद्रूपता से त्रस्त आदमी की परेशानी को व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना हैं
पंक्तियां देखें:
कर्कश ककहरा, जिसके बदल रहे हैं अर्थ,
और निरंतर हो रहे हैं संग्राम,
नित नये अंदाज में,
चक्की में आखिर पिस रहा है,
वही अनपढ़ अबोध,
और कमजोर आदमी।

वहीं उनकी रचना 'बोझ' वर्तमान पीढ़ी में पारिवारिक मूल्यों और संस्कृति के क्षरण को अत्यंत प्रभावी ढंग से दर्शाती है।
पुरानी परंपराओं पर,पटरी पटरी चलना
नई पीढ़ी को बर्दाश्त नहीं,
आजकल गैर संस्कारी युवा
बुरी तरह परेशान हैं,
बुजुर्गों के बढ़ते बोझ से।

व्यवस्था में भीतर तक व्याप्त भ्रष्टाचार पर बड़ी सहजता से कटाक्ष करती हुईं उनकी रचना 'काम के बापू' की ये पंक्तियां किसी भी सरकारी कार्यालय में काम कराने हेतु जाने वाले हर आम आदमी की विवशता को बखूबी चित्रित करती हैं:
मेज के नीचे से हाथ बढ़ाना,
हिम्मत का काम तो है ही,
लेकिन बड़े ही काम का है,
और बड़े ही काम के हैं,
बापू की तस्वीर लगे ये नोट।

साथ ही भ्रष्टाचार की नकेल कसने के लिये जब कठोरता बरती जाती है तो जो परिस्थिति बनती है, देखिए उनकी रचना कालकोठरी की इन पंक्तियों में:
जब भ्रष्टाचार की कालकोठरी पर,
पहरा थोड़ा कड़ा हो जाता है,
पीड़ितों का जमघट भी,
पहले से बड़ा हो जाता है।

अपनी रचना 'निर्मल मन से' मैं कवि ने स्वयं बेबाक भाव से अपनी सृजन शीलता पर ईमानदारी के साथ अपना मत प्रदर्शित किया है, कविता पढ़ते पढ़ते उनकी, संवेदनशीलता, निर्भीक, निष्पक्ष और निस्षार्थ भाव से सत्य को अभिव्यक्ति देने की क्षमता प्रदर्शित होती है।
कविता हो सकती है,
विपदाओं से घिरी हो,
मगर रखती होगी सामर्थ्य,
तूफानों को थामने की,
हॉं ! यह भी हो सकता है
मेरी कविताओं का श्रृंगार अधूरा हो,
चाटुकारिता नदारद हो,
झॉंक न सकी हो ईर्ष्या,
और लिख दी गई हो
मिलावटखोरी की कहानी,
निर्भय होकर
निष्पक्ष वो कर,
निष्ठुर होकर
निःस्वार्थ भाव से। ।

इतनी स्पष्टवादिता एक सहज और सरल ह्रदय के व्यक्ति में ही हो सकती है, और ऐसा व्यक्ति जब साहित्यिक रचनाधर्मिता में उतरता है तब बिना लाग लपेट के, बगैर मुलम्मा चढ़ाये जो देखता है, जो अनुभव करता है वही लिखता है। ऐसी रचनाएं पाठक के मस्तिष्क से होते हुए ह्रदय तक पहुँचती हैं और अपना अमिट प्रभाव छोड़ती हैं।
इन सभी कसौटियों पर श्री अतुल कुमार शर्मा का काव्य संग्रह 'मुरारी की चौपाल' खरा उतरता है और पठनीय है।
इन्हीं शब्दों के साथ मैं उनके रचनाकर्म को नमन करता हूँ और आशा करता हूँ कि भविष्य में उनकी नई नई कृतियां प्रकाशित होती रहेंगी, और हम उनकी रचनाधर्मिता के नये नये आयामों से परिचित होते रहेंगे।

समीक्षक,
श्रीकृष्ण शुक्ल,
T-5/1103,
आकाश रेजीडेन्सी अपार्टमेंट्स,
मधुबनी के पीछे, कांठ रोड,
मुरादाबाद  (उ.प्र.)

 दिनांक: 19.12.2023

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