अँधेरा खुद ब खुद मिटने लगा है।
अँधेरा खुद ब खुद मिटने लगा है।
क्षितिज से सूर्य जो उगने लगा है।
अँधेरा खुद ब खुद मिटने लगा है।
सफर में साथ जो चलने लगा है।
वो अपना सा मुझे लगने लगा है।
किसी के प्यार के दो बोल सुनकर,
ह्रदय में स्वप्न एक पलने लगा है।
जरा सी शोहरत जो मिल गयी है
जमाना हमसे अब जलने लगा है,
अभावों में भी खुश रहना हमारा
किसी को आज ये खलने लगा है।
इन्हीं हाथों से जो सींचा था हमने
वृक्ष वह कृष्ण अब फलने लगा है।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
T-5 / 1103,
आकाश रेजीडेंसी,
मधुबनी के पीछे, कांठ रोड,
मुरादाबाद (उ.प्र.),
भारतवर्ष।
दिनांक 24.12.2023
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