राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग, 12 जून जन्म जयंती पर विशेष

 कीर्ति शेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रंग जी का जन्म 12 जून 1934 को अपनी ननिहाल में चंदौसी में हुआ था। उनके पिता श्री रामगोपाल शर्मा काशीपुर के रहने वाले थे और झांसी में नायब तहसीलदार थे। बाद में उनका परिवार मुरादाबाद शिफ्ट हो गया था।

अतः: श्री शृंग जी की शिक्षा भी काशीपुर, चंदौसी व मुरादाबाद में हुई। उन्होंने हिन्दू कालिज मुरादाबाद से हिन्दी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की।

पढ़ाई के पश्चात उन्होंने विद्युत विभाग में मैनपुरी में पर्यवेक्षक के रूप में कार्य किया, तत्पश्चात वर्ष 1957 में उत्तर रेलवे में बड़ौदा हाउस दिल्ली में नौकरी की । एक वर्ष बाद 1958 में उनका स्थानांतरण मंडलीय रेल प्रबंधक कार्यालय मुरादाबाद में हो गया जहां से वह 1996 में सेवानिवृत्त हुए।

श्री राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग जी की रचनाधर्मिता का फलक अत्यंत विस्तृत था।

उनकी लेखन यात्रा वर्ष 1950 से ही प्रारंभ हो गयी थी उस समय वह हाईस्कूल में थे। तभी से वह कविताएं, कहानियां, एकांकी, आलेख, संस्मरण, समीक्षात्मक व विवेचनात्मक आलेख आदि लिखने लगे थे और विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित भी होने लगे थे।

उनके संदर्भ में एक रोचक तथ्य यह भी है कि वह ऋतुराज उपनाम से कहानियां लिखा करते थे, वह हास्य कविताएं भी लिखते थे जो मच्छर मुरादाबादी उपनाम से लिखते थे, और गीतोंं का सृजन श्रृंग उपनाम से करते थे।

उनका प्रथम गीत संग्रह अर्चना के गीत 1960 में ही प्रकाशित हो गया था।

तत्पश्चात 47 वर्ष बाद 2007 में उनका गीत संग्रह मैंने कब ये गीत लिखे, और प्रबंध काव्य, शकुंतला प्रकाशित हुए। स्वाभाविक ही यह प्रकाशन आर्थिक आधार पर ही हो सका था।

17 दिसंबर 2013 को उनका स्वर्गवास हो गया था।

उनका अधिकांश सृजन अभी तक अप्रकाशित है, जिनमें मुक्तक शतक, गहरे पानी पैठ (लघुकथा संग्रह), श्रृंगारिकता (मुक्त छंद), सीख बड़ों ने हमको दी (बाल कविताएं), भूली मंजिल भटके राही, अंबर के नीचे (कहानी संग्रह), अंतर्दृष्टि, लेखांजलि, साहित्य के गवाक्ष में (मुरादाबाद के साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व के संदर्भ में विवेचनात्मक आलेख)

निश्चित ही अर्थाभाव ही इन बहुमूल्य संग्रहों के अप्रकाशित रह जाने का कारण रहा।

श्री शृंग जी मूलतः गीतों के कवि थे, यद्यपि इसका श्रेय वह स्वयं न लेकर मॉं बागीश्वरी को ही देते थे। उन्होंने स्वयं लिखा है:

मैंने कब ये गीत लिखे हैं,

जो इनको अपना बतला दूं।

किसने लिखवाये हैं मुझसे,

कैसे उसका भेद बता दूं।

उनके गीतों में श्रंगार के साथ साथ प्रकृति चित्रण प्रमुख रहा। उनके गीतों में छायावाद की झलक भी दृष्टिगोचर होती है।

चंद्रिका में नहाती रही चांदनी,

निशि मचलती रही,

शशि मनाता रहा,

ज्योत्स्ना में जगत को डुबाता रहा।

रात तो ढल चली,

चांदनी गल चली,

साथ लेकर सुगंधि ,

पवन बह चली,

जोटती बांट प्रिय की रही कामिनी।

निर्मोही मेरा साजन था,

पाती नहीं अभी तक आई,

गिन गिन मैंने दिवस बिताए,

तारे गिन गिन रात बिताई।

ऐसा नहीं है कि वह केवल श्रंगार और प्रकृति चित्रण पर ही लिखते थे। उन्होंने सामाजिक विषमताओं, समसामयिक परिस्थितियों पर भी दृढ़ता के साथ कलम चलाई है। सामाजिक संदर्भों पर उनकी कुछ पंक्तियां देखिए:

ओ गॉंधी के मानस पुत्रों कुछ सोचो तो,

क्यों असंतोष है आजादी की पीढ़ी में।

भ्रष्टाचारी फल फूल रहे हर ओर यहॉं,

ईमानदार की कोई कद्र नहीं होती।

कहकहे हैं होटलों में और कुटिया में उदासी,

कैबरे गुलजार इनमें, बीच जल के मीन प्यासी,

मूंदकर के आंख इनसे हम सभी हैं बेखबर,

वर्ष 1960 में श्रृंग जी ने साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संघ की स्थापना की, जिसके अंतर्गत वह समय समय पर काव्य गोष्ठियों का आयोजन करते थे।

वर्ष 1964 में इस संस्था का नाम हिन्दी साहित्य संगम कर दिया गया। आज भी इसी संस्था द्वारा महीने के पहले रविवार को काव्य गोष्ठी आयोजित की जाती है, तथा प्रत्येक वर्ष हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर 13 सितंबर को एक साहित्यकार को साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित किया जाता है, तथा प्रत्येक वर्ष दिसंबर में एक साहित्यकार को राजेन्द्र मोहन श्रृंग स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाता है।

आज उनकी जन्म जयंती के अवसर पर साहित्यिक मुरादाबाद के तत्वावधान में संस्थापक डा. मनोज रस्तोगी जी तथा वरिष्ठ साहित्यकार श्री योगेन्द्र वर्मा व्योम जी व जितेंद्र जौली जी के संयोजन में उनकी स्मृति में वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदत्त द्विवेदी जी को सम्मानित किया गया है।

वस्तुत: श्री श्रृंग जी के बाद इस संस्था के अध्यक्ष आदरणीय श्री रामदत्त द्विवेदी जी ही हैं, और निस्संदेह वह आज इस राजेन्द्र मोहन श्रृंग स्मृति सम्मान हेतु सर्वाधिक पात्र साहित्यकार हैं।

आदरणीय द्विवेदी जी भी वर्तमान में 88 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके हैं तथा कीर्ति शेष श्रृंग जी के साथ साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय रहे, तथा आज 88 वर्ष की अवस्था में भी निरंतर सक्रिय रहते हैं। यद्यपि वृद्धावस्था के कारण स्वाभाविक ही शारीरिक क्षमता पहले जैसी नहीं है, लेकिन उनकी सक्रियता में कोई कमी नहीं है। मुरादाबाद में कहीं भी साहित्यिक कार्यक्रम हो, वह सदैव उपस्थित रहते हैं, साथ ही हिन्दी साहित्य संगम में निरंतर अध्यक्ष का दायित्व निभा रहे हैं।

आप गीत, कविता, मुक्तक, कुंडलियां, दोहे, लघुकथा व संस्मरण सहित विभिन्न विधाओं में सृजन करते हैं।

आपके दो काव्य संग्रह हम अंधेरों को मिटाएं और खुद को बदलना होगा प्रकाशित हो चुके हैं।

समय समय पर आप विभिन्न साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं, और विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित हो चुके हैं।

आज उनको सम्मानित करते हुए हम सभी स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं।

इन्हीं शब्दों के साथ कीर्ति शेष श्रृंग जी को श्रद्धा पूर्वक नमन करता हूं, तथा आदरणीय द्विवेदी जी को ह्रदय से शुभकामनाएं देता हूं।

साथ ही साहित्यिक मुरादाबाद संस्था के डा. मनोज रस्तोगी जी को दिवंगत साहित्यकारों की स्मृति में वरिष्ठ साहित्यकारों को सम्मानित करने के इस अभूतपूर्व आयोजन हेतु साधुवाद देता हूं, और श्री योगेन्द्र वर्मा व्योम जी व जितेंद्र जौली जी को भी इस पुनीत आयोजन के संयोजन हेतु बधाई व साधुवाद व्यक्त करता हूं।

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

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