संस्मरण : छिंदवाड़ा की आध्यात्मिक यात्रा






इस बार नववर्ष के अवसर पर सहजयोग के अंतर्राष्ट्रीय युवाशक्ति सेमिनार में जाने का संयोग बना। सामान्यतः सहजयोग के अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार क्रिसमस दिवस के आस पास होते हैं। वह सेमिनार भी 23 से 26 दिसंबर तक गणपतिपुले (महाराष्ट्र) व नारगौल (गुजरात) में विधिवत आयोजित हुए थे, लेकिन नववर्ष के अवसर पर युवाशक्ति का सेमिनार पहली बार आयोजित किया गया था। यह सेमिनार श्री माताजी निर्मला देवी जी की जन्मस्थली छिंदवाड़ा नगर में आयोजित हुआ था। 

दिनांक 29 दिसंबर को प्रातः 6.00 बजे टैक्सी द्वारा हमने यात्रा प्रारंभ की‌, प्रातः 9.20 पर हम दिल्ली सफदरजंग स्टेशन पहुंचे, जहां से 11.00 बजे पातालकोट एक्सप्रेस से आगे की यात्रा करनी थी। यह ट्रेन फीरोजपुर से आती थी। ट्रेन लगभग एक घंटा देरी से आई और केवल पॉंच मिनट रुककर चल दी। चूंकि छिंदवाड़ा के लिये यह एकमात्र ट्रेन थी अतः स्वाभाविक ही गाड़ी में अधिकतर सहयात्री सहजयोग अनुयाई ही थे। 45 सदस्यों का दल तो मुरादाबाद का ही था। अपनी अपनी बर्थ पर पहुंच कर सामान आदि व्यवस्थित करके सर्वप्रथम पेटपूजा की गई फिर धीरे-धीरे आपस में बातचीत का दौर चला ध्यान में अपने अपने अनुभवों का आदान-प्रदान हुआ और भजनों का दौर चला। मथुरा, आगरा, ग्वालियर, झांसी, बीना, भोपाल, इटारसी पहुंचते पहुंचते रात्रि हो गयी और सब अपनी अपनी बर्थ पर सो गये। गाड़ी सुबह छह बजे छिंदवाड़ा पहुंचनी थी। हम सब समय पूर्व ही सामान आदि समेटकर तैयार थे कि गाड़ी समय से आधा घंटा पूर्व ही छिंदवाड़ा स्टेशन पर पहुंच गयी।

स्टेशन से बाहर आकर इंतजार अवश्य करना पड़ा। लगभग छह बजे एक बस आई व लगभग आधे यात्रियों को लेकर चली गयी। वहीं बस पुनः चालीस मिनट बाद आयी और शेष यात्रियों के साथ हम भी लगभग साढ़े सात बजे सेमिनार स्थल पर पहुंच गये।आयोजन स्थल छिंदवाड़ा से लगभग दस किलोमीटर दूर लिंगा पर्वत नामक स्थान पर आयोजित हुआ था। यहीं पर प्रतिवर्ष श्री माताजी के जन्मोत्सव का आयोजन भी होता है, वह भी लगभग तीन दिवसीय कार्यक्रम होता है। आयोजन स्थल की सारी जगह ट्रस्ट की है तथा धीरे-धीरे उसको विकसित किया जा रहा है। लगभग 7-8 हजार साधकों के बैठने लायक स्थान विकसित कर लिया गया है। यद्यपि कंक्रीट के स्तंभों पर अभी पी वी सी शीट्स का डोम बनाया गया है। साथ ही एक बड़ा सा मंच भी निर्मित किया जा चुका है। सेमिनार में आने वाले प्रतिभागियों के लिये स्थाई आवास भी निर्मित किये जा चुके हैं जिनमें लगभग 2 हजार प्रतिभागी ठहर सकते हैं। यह तीन मंजिला हॉस्टल सरीखी इमारत है, जिसमें सीनियर सिटीजंस हेतु भूतल पर कमरे हैं जिनमें बाथरूम संयुक्त है। पुरुष व महिला प्रतिभागियों के अलग अलग कक्ष हैं। ऊपरी मंजिलों पर बड़ी बड़ी डारमेट्री बनायी गई हैं। भोजन बनाने व सामग्री भंडारण हेतु बहुत बड़ा हॉल बना है जहॉं हजारों प्रतिभागियों का भोजन तैयार होता है। सहजयोग में ये सारे विकास कार्य सहजयोगियों द्वारा प्रदत्त दान राशि से ही होते हैं। यहॉं बाहर से कोई दान राशि नहीं स्वीकारी जाती है। यह भी आश्चर्य की बात ही कही जा सकती है कि सहजयोगियों द्वारा प्रदत्त दान राशि से सहजयोग के तमाम प्रोजेक्ट्स सुचारू रूप से विकसित हो रहे हैं। शहर शहर में सहजयोग केंद्रों के निजी भवन भी इसी प्रकार बने हैं।

हम जब तक पहुंचे लगभग सभी कमरे घिर गये थे। फिर भी निवेदन करने पर युवाशक्ति की राष्ट्रीय कोर्डिनेटर ने सीनियर सिटीजन होने के नाते हमें व हमारी पत्नी को पुरुषों व महिलाओं के कमरों में एक एक पलंग दिलवा दिया।

हमने भी तुरत फुरत नहा धोकर, नाश्ता किया और ठीक 10 बजे सेमिनार पंडाल में आकर बैठ गये। 

सेमिनार में दिन के समय सहजयोग ध्यान के विषय में बताया गया, किस प्रकार ध्यान में प्रगति करें, ध्यान नहीं लग रहा है तो क्या-क्या प्रक्रियाएं की जा सकती हैं, ध्यान हेतु अन्य सहजयोगी किस प्रकार सहायता कर सकते हैं, सामूहिक ध्यान के महत्व पर प्रकाश डाला गया। ध्यान व सहजयोग की उपचार प्रक्रियाओं व चक्रों को जागृत करने की विधियों पर चर्चा हुई। सहजयोग के माध्यम से खेती, 'सहज कृषि' के बारे में भी बताया गया। सहज कृषि की विधियों पर विस्तृत चर्चा हुई। यह भी बताया गया कि सहज कृषि बिना कैमिकल खाद के प्रयोग से की जाती है, केवल कम्पोस्ट व वर्मी कम्पोस्ट का ही प्रयोग किया जाता है। सहज कृषि के द्वारा प्राप्त उत्पादन के आंकड़े चमत्कृत करने वाले थे। सहज कृषि को इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च द्वारा पूर्व में ही मान्यता दी जा चुकी है। इसी प्रकार सहजयोग उपचार पद्धतियों पर चर्चा हुई।  शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों द्वारा सहजयोग का नियमित अभ्यास करने पर विद्यार्थियों में अनुशासन व परीक्षा परिणाम बेहतर होने के प्रमाण की विद्यालयों के आंकड़ों के साथ जानकारी दी गयी।

सहजयोग में विवाह के बारे में, विवाह की मर्यादाओं के बारे में भी विस्तार से चर्चा हुई। ये सभी चर्चाएं दिन के समय विभिन्न सत्रों में होती थीं।

सायंकाल के सत्रों में दोनों दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। पहले दिन शाम के कार्यक्रम में मुरादाबाद की सामूहिकता द्वारा एक नाटक की प्रस्तुति की गई। आधे घंटे का उक्त नाटक हमने ही लिखा था तथा तैयारी भी करवाई थी, मंच पर हमारे निर्देशन में ही नाटक हुआ व कुछ प्रमुख किरदारों के डॉयलॉग भी हमने बोले। नाटक की प्रस्तुति अत्यंत असरदार रही व सभी ने नाटक की बहुत सराहना की। 

अगले दिन अपरान्ह में हम श्री माताजी की जन्मस्थली गये। उक्त भवन व उसके आस-पास की जगह भी ट्रस्ट द्वारा खरीद ली गई है। जिस कक्ष में श्री माताजी का जन्म हुआ था वहॉं श्री माताजी का बड़ा सा चित्र लगा है। पूरे भवन में वही पुराने पत्थरों वाले फर्श हैं ऊपर खपरैल है ( जिस प्रकार के ब्रिटिश काल में बॅंगले होते थे वैसा ही बॅंगला है। ‌श्री माताजी के जीवनकाल के बाल्यकाल से लेकर सभी चित्र, उनके माता-पिता भाई-बहनों के चित्र वहॉं लगे हैं।

मध्य कक्ष में विभिन्न स्थानों से समय समय पर आने वाले सहजयोगी बैठकर ध्यान करते हैं तथा भक्ति संगीत, गायन व वादन की प्रस्तुतियां देते हैं, जो वर्ष पर्यंत चलती रहती हैं। इस भवन के पीछे की जगह में एक बहुत बड़ा सा हॉल बनाया गया है, जिसमें श्री माताजी का बड़ा सा चित्र सिंहासन पर प्रतिष्ठित है। सहजयोगी उसके सम्मुख भी ध्यान करते हैं। जन्मस्थली  परिसर में सर्वत्र शांति व्याप्त रहती है और अत्यंत ठंडे वाइब्रेशंस आते रहते हैं। मन मस्तिष्क तनाव मुक्त हो जाता है। 

जन्मस्थली से वापस आकर फ्रैश होकर चाय पी, व पुनः सांस्कृतिक संध्या हेतु पंडाल में पहुंच गये। इस दिन भी विभिन्न प्रांतों से आये हुए सहजयोगी प्रतिभागियों ने, नृत्य, गायन व नाटिकाओं के माध्यम से उत्कृष्ट प्रस्तुतियां दीं। इस दिन भी मुरादाबाद की ओर से एक राजस्थानी सामूहिक नृत्य की प्रस्तुति हुई। यह नृत्य प्रस्तुति भी बहुत सराही गई। बारह बजने ही वाले थे कि मंच पर सहजयोग यमुनानगर के डाक्टर राजेश यूनीवर्स, जो एक स्थापित गायक हैं मंच पर आये और उनके भजन शुरु होते ही धीरे-धीरे युवाओं में जोश आना शुरू हो गया और पॉंव थिरकने लगे, कुछ देर बाद अधेड़ व वयोवृद्ध सहयोगी भी शामिल हुए और थोड़ी ही देर में पूरे पंडाल में सभी अपने अपने तरीके से आनंदमग्न होकर नाच रहे थे। बारह बजते ही एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं देने व गले लगने का दौर शुरू हुआ, पटाके और आतिशबाजी चालू हुई, बाहर खुले में कंदील उड़ाये गये। यह मस्ती और आनंद देर तक चला। लगभग एक बजे हम अपने कमरे में आकर सो गये। सुबह 4 बजे नववर्ष की पहली भोर में ध्यान किया, फिर 6.00 बजे पंडाल में आकर सामूहिक ध्यान किया।

नाश्ता आदि करने के बाद 10 बजे पुनः पंडाल में आ गये। नववर्ष का प्रारंभ था, अतः आज श्री गणेश की पूजा की गई। गणपति अथर्वशीर्ष के उच्चारण से जलाभिषेक हुआ, पंचगव्य से अभिषेक हुआ, तत्पश्चात देवी के 108 नाम से श्री चरणों का श्रृंगार हुआ और पुष्पार्पण व आरती हुई। पूजा के पश्चात प्रसाद व भोजन आदि गृहण करते करते 1.00 बज गया था। हम सबने अपना सामान पहले ही समेट लिया था। लगभग 2 बजे हमारी बस आ गई थी। बस में सवार होते होते व चलते-चलते 3 बज गये थे। 3 बजे हमने नागपुर के लिए प्रस्थान किया जहॉं से हमारी वापसी यात्रा होनी थी। लगभग साढ़े सात बजे हम नागपुर पहुंचे गये। स्टेशन पर वेटिंग रूम तलाश करके वहॉं जगह ली। कैंटीन से मॅंगवा कर खाना खाया। लगभग साढ़े नौ बजे केरल एक्सप्रेस आ गई और हमारी वापसी यात्रा प्रारंभ हो गई।

अगले दिन गाड़ी ढाई घंटे लेट नई दिल्ली पहुंची। 4.35 पर इंटर सिटी थी, जिसमें हमारा रिजर्वेशन था। इंटरसिटी से 9.00 बजे रात्रि मुरादाबाद पहुंच गये और साढ़े नौ तक घर वापस आ गये। संपूर्ण यात्रा अत्यंत सुखद व आनंदमय रही। 

सेमिनार में विभिन्न राज्यों से सहजयोगी आये थे। सुदूर  उत्तर पूर्व आसाम, पूर्व में बंगाल व उड़ीसा, उत्तर में बिहार, उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश , दक्षिण भारत से आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु व केरल , पश्चिम से महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य भारत में राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि से सहजयोगी आये थे, कुछ विदेश से भी आये थे। अलग अलग उम्र के सहजयोगियों से मिलना मिलाना रहा, कुछ हमसे बहुत छोटे, कुछ हमउम्र तो कुछ हमसे भी बड़े थे। आपस मे सब मिलकर सहज का आनंद लें रहे थे, उम्र मानो कोई बाधा ही नहीं रही थी।

यात्रा की सुखद अनुभूतियां जब जब याद आती हैं  मन को आनंदित करती रहती हैं।

ऐसी यात्राएं ईश्वरीय अनुकंपा से ही हो पाती है। अतः इस यात्रा के लिए भी ईश्वर का ह्रदय से आभार और प्रार्थना भी कि ऐसी यात्राओं का अवसर हमें आगे भी मिलता रहे।

जय श्री माताजी।

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

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