Posts

Showing posts from July, 2024

ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I

 ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I -------------------------------------------------------------------------- ओस की बूँदें यद्यपि आकार प्रकार में छोटी सी होती हैं किंतु सौंदर्य में अप्रतिम होती हैं, पत्ते पर पड़ी ओस की बूँद मोती का अहसास दिलाती है, घास पर पड़ी ओस पर नंगे पाँव चलने से उसकी शीतलता मस्तिष्क तक पहुँचती है I कुछ कुछ ऐसी ही अनुभूति आदरणीय अशोक विश्नोई जी के हाइकू संग्रह 'ओस की बूँदें'  पढ़ने पर होती है I हाइकू यद्यपि जापानी छंद है किंतु यह सूक्ष्म आकार का छंद ओस की बूँद की तरह ही अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम है I हाइकू केवल तीन पंक्तियों का वार्णिक छंद है, जिसमें विषम चरणों में पाँच वर्ण होते हैं तथा सम चरण में सात वर्ण होते हैं I  दोहों की तरह हाइकू भी काव्य की ऐसी विधा है जिसमें छोटी सी कविता में बड़ा संदेश दिया जा सकता है I श्री अशोक विश्नोई जी की इस पुस्तक में लगभग चार सौ हाइकू प्रकाशित हैं, जिनमें उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में विभिन्न परिस्थितियों पर सशक्त अभिव्यक्ति दी है, फिर चाहे वह सामाजिक हो, राजनीतिक हो, व्यक्तिगत व्यवहार पर...

कब तक शिखंडी भीष्म पितामह का आखेट करता रहेगा।

कब तक शिखंडी भीष्म पितामह का आखेट करता रहेगा। दैनिक आर्यावर्त केसरी के आज 11 जुलाई, बृहस्पतिवार के अंक में प्रकाशित श्री बृजेन्द्र सिंह वत्स का आलेख 'कब तक शिखंडी भीष्म पितामह का आखेट करता रहेगा' अत्यंत ज्वलंत प्रश्न उठा रहा है।  संदर्भ कठुआ में आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर सेना के ट्रक पर हमला करने की घटना का है जिसमें एक सैन्य अधिकारी समेत 5 सैनिक मारे गये थे। इससे पूर्व पिछले माह भी ऐसी ही एक घटना में 2 सैनिक मारे गये थे। इस आलेख में वत्स जी ने कश्मीर समस्या के उद्भव से आज तक, सरकारों द्वारा की गई गलतियों के बारे में मुखरता से लिखा है। कब कब और कहॉं कहॉं किस सरकार से समस्या से निपटने में शिथिलता बरती गई इसका स्पष्ट उल्लेख उन्होंने किया है।  कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद घाटी से आतंकवाद के सफाये के दावे की ओर भी उन्होंने प्रश्न उठाया है, क्योंकि आतंकवाद तो धीरे धीरे वहॉं फिर पॉंव पसारने लगा है। बल्कि अब तो आतंकी कठुआ में सक्रिय हो रहे हैं जो जम्मू में प्रवेश करते ही स्थित है। उन्होंने आतंकी तैयारियों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है। यही नहीं वत्स जी ने अपने आलेख में महाभारत...

छॉंव की बयार : समीक्षा: समीक्षक रवि प्रकाश

* छॉंव की बयार (गजल संग्रह)* *सम्पादक, डॉ मनमोहन शुक्ल व्यथित*  *अंतरंग प्रकाशन,रामपुर,*  *प्रथम संस्करण 1987*  पृष्ठ संख्या 112,  मूल्य 25 रुपये  🍃🍃🍃🍃🍂🍂 *समीक्षक : रवि प्रकाश*  बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश  मोबाइल 9997 615451 🍃🍃🍃🍂🍂 *कुछ गजलें, कुछ गजलकार*  ➖➖➖➖➖➖➖ अरबी और फारसी में गजल के मायने भले ही इश्क-मुहब्बत हों मगर आज की गजल सिर्फ ॲंखियॉं लड़ने या उसके बाद आंसू गिराने तक सिमटी हुई नहीं हैं। जमाने के साथ साथ गजल भी बदली है, गजल के तेवर भी बदले हैं। हो सकता है बहुतों के लिए गजल के मतलब आज भी पायल की झनकार से हों, मगर हिन्दी और उर्दू दोनों में आज इस काव्य विधा को विचार-क्रान्ति के शक्तिशाली औजार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। हर कविता असर करती है, पर गजल तेज, धारदार और देर तक असर करती है। हिन्दी में गजल इसलिए नहीं लिखी गई कि इसके बिना लैला-मजनू का किस्सा नहीं लिखा जा सकता था, गजल इसलिए उर्दू से हिन्दी में आई क्योंकि गीत और दोहे दोनों का अद्भुत सम्मिश्रण गजल में था। अपने गेय गुणों और प्रत्येक शेर की आन्तरिक सम्पूर्ण स्वतंत्र...

दैनिक आर्यावर्त केसरी : साप्ताहिकी दिनांक 1 जुलाई 2024 : समीक्षात्मक अध्ययन

 साप्ताहिकी दिनांक 1 जुलाई 2024 : समीक्षात्मक अध्ययन दैनिक आर्यावर्त केसरी के सह संपादक आदरणीय श्री बृजेन्द्र सिंह वत्स जी ने अपने समाचार पत्र में एक अच्छी परंपरा चला रखी है, वह है प्रत्येक सप्ताह साप्ताहिकी का प्रकाशन, जिसमें कभी किसी एक विषय पर केंद्रित और कभी स्वैच्छिक विषयों पर विभिन्न साहित्यकारों की रचनाएं प्रकाशित की जाती हैं।साप्ताहिकी का पृष्ठ इतना रोचक होता है कि सदैव उसकी प्रतीक्षा रहती है और एक बार में ही सभी रचनाएं पढ़ ली जाती हैं। कविताओं के साथ साथ वत्स जी का छोटा सा संपादकीय आलेख भी होता है। इस बार पहली तारीख को कुछ अधिक व्यस्तता रही, और मोबाइल से दूरी बनी रही। इसी कारण पहली तारीख की साप्ताहिकी आज देखी। यह वत्स जी का कौशल है कि वह एक पृष्ठ में अधिकाधिक रचनाओं का समावेश कर लेते हैं।इस साप्ताहिकी में एक छोटा सा संपादकीय आलेख था, जो माननीय प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रम 'मन की बात ' के संदर्भ में था। कहना न होगा कि वत्स जी ने प्रधानमंत्री जी के लगभग एक घंटे के कार्यक्रम का सार बिंदुवार उल्लेख करते हुए छोटे से आलेख में पिरो दिया। वस्तुतः संपूर्ण साप्ताहिकी विभिन्न परि...

मुफ्तखोर

 मुफ्त में मिल रहा है सब, यही तो मुश्किल है। तुमने स्वयं ही इनको निकम्मा कर दिया। माना अब रोटियां मुफ्त में मिलती हैं, किंतु ऑंखें सपने देखना बंद कब करती हैं। उनके सपनों में तो जन्नत के ख्वाब पलते हैं, जो फेंके गये टुकड़ों से ही पूरे होते हैं, बस जरूरत है कि कहीं से कोई टुकड़ा फेंके, ये गिद्ध की तरह, टूट पड़ते हैं  अपना दृष्टिकोण,बदल देते हैं अपनी आत्मा, बेच देते हैं जहॉं से सब मुफ्त में मिल रहा था, उसी खजाने को, लूट लेते हैं  काटना चाहते हैं उसी पेड़ को जड़ से,  जिसकी छाया में निरंतर सुस्ताते थे, जिसके फल तोड़ तोड़ कर खाते थे, मुफ्त में। लूट की प्रवृत्ति की कोई हद नहीं होती, सच है, मुफ्त के माल की कोई कद्र नहीं होती, इनका न कोई दीन है न ईमान है। मुफ्तखोरी में ही इनकी जान है। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

विकास की बाट जोहता एक सरोवर।

 द्रोण सागर तीर्थ  : काशीपुर,  विकास की बाट जोहता एक सरोवर। --------------------------------------- विगत 13 जून को ससुराल पक्ष के अपने एक संबंधी के दसवें में द्रोण सागर तीर्थ काशीपुर जाना हुआ।  इससे पूर्व भी अनेकों बार द्रोण सागर जाना हुआ था, लेकिन इस बार लगभग तीन वर्ष बाद जाना हुआ था। इस बार वहॉं जाने पर मन बहुत खिन्न हुआ। कारण समस्त तीर्थ क्षेत्र में सफाई का अभाव था। सरोवर में पानी बिल्कुल नहीं था, बल्कि बाकायदा खेती हो रही थी। यद्यपि तीर्थ क्षेत्र में पिछले वर्षों में तमाम विकास कार्य हुए थे किंतु रखरखाव व सफाई के अभाव में व्यर्थ थे। द्रोण सागर तीर्थ से मेरा लगभग पचास वर्ष पुराना लगाव है। वर्ष 1973 में मेरी प्रथम नियुक्ति स्टेट बैंक की काशीपुर शाखा में ही हुई थी और मैं लगभग पॉंच वर्ष काशीपुर रहा था। उस समय मैं प्रतिदिन प्रातः टहलते हुए द्रोण सागर जाता था। वहॉं दौड़ते हुए सरोवर के 1 - 2 चक्कर लगाता था, फिर आकर व्यायामशाला में थोड़ा बहुत व्यायाम करता था। वहीं भूमिगत जल का स्रोत निरंतर पानी देता रहता था, जिस पर हाथ मुंह धोकर, जल पीता था। वह जल अत्यंत शीतल और मृदु होत...