जितेंद्र कमल आनंद: हिंदी कविता को समर्पित व्यक्तित्व
जितेंद्र कमल आनंद: हिंदी कविता को समर्पित व्यक्तित्व
हिन्दी कविता के क्षेत्र में यद्यपि नगर नगर मैं तमाम कवियों ने अनेकों संस्थाएं बना रखी हैं जो हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये काम करने का दावा कर रही हैं, लेकिन इन्हीं संस्थाओं में एक संस्था है अखिल भारतीय काव्यधारा, रामपुर, जिसके संस्थापक रामपुर के लब्धप्रतिष्ठित कवि आदरणीय जितेंद्र बहादुर सक्सेना, अर्थात जितेंद्र कमल आनंद जी हैं। वस्तुतः आनंद जी स्वयं में एक संस्था हैं, जो निस्पृह भाव से बिल्कुल नये नवांकुर व उदीयमान कवियों व कवियित्रियों को अपनी संस्था से जोड़कर उन्हें निखारने व सँवारने का कार्य करते हैं। अपनी संस्था के व्हाट्सएप ग्रुप्स के माध्यम से रचनाकारों को विभिन्न छंदों के विधान का प्रशिक्षण देते हैं, गीत, गज़ल, मुक्तक, रुबाई व दोहा आदि छंदों पर आधारित कार्यक्रम करते हैं। यही नहीं इसके अतिरिक्त वह लगभग प्रत्येक माह किसी न किसी नगर में एक कवि सम्मेलन का आयोजन करते हैं जिसमें सभी नवोदित व उदीयमान कवियों को भी काव्यपाठ का अवसर मिलता है और उनकी प्रतिभा को निखारा जाता है। साथ ही इन रचनाकारों का योग्यतानुसार सम्मान भी किया जाता है। इसी के साथ आनंद जी काव्यधारा की ई पत्रिका भी निकालते हैं तथा प्रतिवर्ष 2 - 3 साझा काव्य संग्रह भी प्रकाशित करवाते हैं जिनमें सभी रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित होती हैं। ये सारे कार्य संस्था नगण्य योगदान पर करती है।
स्वयं में श्री आनंद जी एक बेहद सरल व शांत व्यक्तित्व के स्वामी, अत्यंत मितभाषी व मिलनसार व्यक्ति हैं। पहली ही मुलाकात में जिस अपनत्व से मिलते हैं कि लगता ही नहीं कि यह पहली मुलाकात है।
श्री आनंद जी का जन्म 5 अगस्त 1951 में बरेली के भूड़ मुहल्ले में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री शमशेर बहादुर सक्सेना तथा माताजी का श्रीमती शकुंतला देवी सक्सेना है।
आप उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा के अंतर्गत विभिन्न स्थानों पर शिक्षक के रूप में नियुक्त रहे तथा वर्ष 2012 में विद्या मंदिर इंटर कालेज, रामपुर से प्रधानाचार्य के पद से सेनानिवृत हुए।
हिन्दी साहित्य व काव्य लेखन की रुचि आपको छात्र जीवन में ही उत्पन्न हो गयी थी। विभिन्न स्थानों पर नियुक्त रहते हुए भी रचनाकर्म चलता रहा और कवि गोष्ठियों व सम्मेलनों में काव्यपाठ हेतु आना जाना लगा रहा, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन के साथ साथ आकाशवाणी रामपुर से भी आपकी कविताओं का प्रसारण होता रहा।
जहाँ तक काव्य विधा की बात है वह सामान्यतः ताटंक छंद, घनाक्षरी, सवैया, गीत, गीतिका आदि शताधिक छंदों में लिखते हैं।
उनकी अब तक निम्न कृतियां भी प्रकाशित हो चुकी हैं:
1. जय बाला जी, 2. आनंद प्रवाह, 3. हनुमत उपासना, 4. गीत आनंद के, 5. राजयोग महागीता, 6. मधुशाला -हाला-प्याला।
साथ ही निम्नलिखित काव्य संकलनों में वह प्रधान सम्पादक रहे हैं:
जागो प्यारे हिंदुस्तान, समर्पण,प्रवाह, 21 वीं सदी के काव्यकार, स्वातंत्रयोत्तर कवि- कवयित्रियाँ, स्वर्णाक्षरा काव्यधारा, तभी लेखनी कर में आयी, आजादी का अमृत महोत्सव, गीत-गीतिका-ग़जल आदि 27 संकलन एवं मासिक ई पत्रिकाएँ ।
वर्तमान में वह निम्न संस्थाओं के संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं:
संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष : आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा रामपुर (उ प्र )।
राष्ट्रीय अध्यक्ष:" अखिल भारतीय काव्यधारा रामपुर, (उ प्र) भारत ।
इसके अतिरिक्त 50 साहित्यिक फेसबुक समूह के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं।
आदरणीय आनंद जी भारत के विभिन्न प्रांतों की संस्थाओं द्वारा विभिन्न प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित होते रहे हैं, यदि उनका उल्लेख करने लगेंगे तो लेख अत्यंत लंबा हो जायेगा।
जहाँ तक उनकी कृतियों का प्रश्न है, उनकी कृति राजयोग महागीता एक खंड काव्य है जो राजा जनक की सभा में अष्टावक्र तथा धर्मगुरु बंदी के मध्य शास्त्रार्थ के प्रसंग पर आधारित है। यह काव्य उन्होंने घनाक्षरी छंद में लिखा है।
एक उदाहरण: राजा जनक को आत्मज्ञान के संबंध में समझाते हुए अष्टावक्र कहते हैं:
आत्मज्ञान के लिये, संसार का न त्याग करो,
चित्त की उदारता ही आपको पर्याप्त है।
आत्मलीन हो गये यदि, देह मुक्त हो गये,
न रहे संकीर्णता भी आपको पर्याप्त है।
उनकी कृति गीत आनंद के, उनके नायाब गीतों का संकलन है।
सभी गीत उत्कृष्ट व भावपूर्ण हैं कथ्य, छंद व शिल्प के दृष्टिकोण से भी अत्युत्म हैं। उनके गीतों को पढ़कर ही काव्य रचनाधर्मिता तथा हिन्दी के प्रति उनका समर्पण स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है। उनके गीतों में श्रंगार भी है, वियोग भी है, अध्यात्म भी है, तथा जीवन-दर्शन भी परिलक्षित होता है। कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं:
गीत आनंद के से:
1. इन पंक्तियों से रचनाधर्मिता के प्रति उनके समर्पण की स्पष्ट झलक मिलती हैं
मेरी सहधर्मिणी लेखनी ने, जीवन भर साथ निभाया।
धूप छाँव में फूल शूल में खुशी खुशी सम्मिलित बिताया।
2. निम्न पंक्तियां उनके हिन्दी के प्रति समर्पण व हिन्दी के राष्ट्रभाषा के रूप में दिग दिगन्त तक वर्चस्व की उत्कट इच्छा को दर्शाती हैं:
हिंदी है भारत की बिंदी, इसको लाल चमकने दो।
प्राची, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण,
दिग दिगन्त वर्चस्व हो।
राष्ट्र मातृभाषा हिंदी का,
मुखमंडल तेजस्व हो।
3. जीवन दर्शन को अभिव्यक्त करती यह पंक्तियां अत्यंत शिक्षाप्रद हैं:
एक दीपक जला, जगमगा पथ उठा,
ज्योति कण मिल गले, सीढ़ियां पा गये।
राग के साथ जब मिल गयी रागिनी,
कण्ठ फिर गा सका गान मल्हार का।
अथवा,:
भले लगे प्रतिकूल सत्य यह, नीरस में भी रस मिलता है।
4. निम्न लिखित दोनों गीतों की इन पंक्तियों में वियोग को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्ति दी है:
अंदर जब दर्पण बन,धुँधलाता यादों को,
विरहाकुल नयनों से नीर छलक आता है।
अथवा:
सारंगों के नयन आज फिर भर आये।
उनका सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह मधुशाला हाला प्याला उन्हीं के शब्दों में एक अनुपम कृति है, जो आध्यात्मिक संचेतना और नैतिकता के भाव जगाने में सक्षम है। वह कहते हैं:
काव्यात्मक अभिव्यक्ति कमल है
सरस मधुर है यह हाला
नामकरण इसका कर डाला
मधुशाला हाला प्याला।
वास्तव में यह संपूर्ण कृति आध्यात्मिकता की ओर चलने का आह्वान करती है। भौतिकवाद की निरर्थकता से हटकर अध्यात्म के सात्विक पथ पर अग्रसर होने की आवश्यकता जताती है।
भौतिकता की मत पी बंदे , भक्ति सुधा से भर प्याला।
प्यार वासना स्वर्ण कामना, भले मधुर छोड़े हाला।
सच्चे सीधे पथ पर बढ़कर, जारी रख जीवन यात्रा।
दर्शायेगा रहबर पथ का, छोड़ सभी दो मधुशाला।
आध्यात्मिक जीवन में भक्ति का भी अत्यंत महत्व है। भक्ति को परिभाषित करते हुए वह कहते हैं:
भक्ति दृगों से नहीं ह्रदय से, देखी समझी जाती है।
भक्ति विकल के पोंछे आँसू, भक्ति वही कहलाती है।
भक्ति गीत है, भक्ति मीत है, प्रेम पंथ है उजियाला।
नीराजन है आराधन है, भक्ति कमल दीपक बाला। ।
कवि इसी भक्ति मय आनंद से उपजे प्रेम को अपने छंदों के माध्यम से पाठकों तक पहुँचा कर उनके जीवन में भी आनंद की अनुभूति करवाना चाहता है:
उमड़ पड़े हैं भाव अनगिनत, मोती सीप सँजोता हूँ।
फसल प्रीत की उग आयेगी, बीज ह्रदय में बोता हूँ।
कभी न रीता कोई निर्जल, रह पाये खाली प्याला।
जीवन में उल्लास भरेगी, मधुशाला हाला प्याला।
निम्न पंक्तियों में कवि ने इस कृति की रचना की पृष्ठभूमि में अपने मन के भावों को व्यक्त किया है।
शब्द शब्द सौंदर्य उकेरे, तथ्य कथ्य रसमय हाला।
पृष्ठ पृष्ठ पर भाव घनेरे, मधुमय कर लाया प्याला।
छंदबद्ध रचना हो प्यारी, बस इतना ही चाहा है।
चाहत मेरी चाह आपकी, मधुशाला -हाला-प्याला।
वस्तुतः श्री आनंद जी ने यह कृति आध्यात्मिकता की उच्च अवस्था के अनुभवों को सँजोते हुए रची है, और उस अवस्था में एकमेव भाव यही रहता है कि पारब्रह्म से योग होने पर जो आनंद साधक कवि को प्राप्त है, वह सभी को प्राप्त हो, इसीलिये इन छंदों में कुंडलिनी जागृति की अवस्था, तथा आत्माक्षात्कार की स्थिति के आनंद का भी वर्णन आया है, सद्गुरु की कृपा के बिना यह संभव नहीं, इसीलिये गुरु की महत्ता का भी वर्णन है। सद्गुरु की कृपा से जब साधक निर्विचार समाधि तक पहुँच जाता है तब पारब्रह्म से एकाकार हो जाता है और निरानंद की स्थिति में प्रभु के प्रेम के रस का पान करता रहता है।
यही आनंद से पूर्ण प्रेम रस ही हाला है, अपनी भौतिक देह ही प्याला है, और यह चराचर जगत मधुशाला है।
इतनी अच्छी कृति की रचना के लिये आदरणीय आनंद जी को बहुत बहुत साधुवाद है, परमात्मा का उन पर विशेष अनुग्रह है तभी इतनी उत्तम कृति उनकी लेखनी से अवतरित हुई।
वस्तुतः आदरणीय आनंद जी हिन्दी काव्य के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्तित्व हैं। पत्नी की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी, तत्पश्चात सेवानिवृत्ति के बाद वह नितांत एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनकी बैठक में केवल एक मेज व कुछ कुर्सियां दिखती हैं, पीछे दीवार पर काव्यधारा का बैनर, तथा एक ओर कुछ सम्मान पत्र व स्मृति चिन्ह रखे हैं। मेज पर कुछ पत्र पत्रिकाएं व पुस्तकें रहती हैं। जब भी कभी उनसे मिलने जाना हुआ, 2-3 कवि और बैठे मिलते हैं। देखते ही अत्यंत प्रसन्नता के साथ मिलना, स्वयं चाय बनाकर लाना, व आग्रह पूर्वक खिलाना उनकी सादगी और अपनत्व को प्रमाणित करता है। चाय के साथ साथ साहित्य चर्चा होती रहती है तथा बाद मैं काव्य गोष्ठी भी होती है।
ऐसे हिन्दी कविता के प्रति पूर्णतः समर्पित मनीषी स्वरूप व्यक्तित्व के स्वामी आदरणीय जितेंद्र कमल आनंद जी को बारंबार नतमस्तक प्रणाम है, और साथ ही प्रभु से यह भी प्रार्थना है कि ईश्वर उन्हें स्वस्थ रखे व लंबी आयु प्रदान करे ताकि वह लंबे समय तक हिन्दी व हिन्दी साहित्यकारों की प्रगति के लिये कार्य करते रहें।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG 9,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद, उ.प्र.
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