प्रेम को अभिव्यक्त करने वाले सशक्त हस्ताक्षर थे स्मृति शेष आनंद स्वरूप मिश्रा जी
प्रेम को अभिव्यक्त करने वाले सशक्त हस्ताक्षर थे स्मृति शेष आनंद स्वरूप मिश्रा जी
स्मृति शेष आनंद स्वरूप मिश्रा जी से मेरा कोई पूर्व परिचय तो नहीं रहा। पटल पर उपलब्ध विवरण से ज्ञात हुआ कि वह जुलाई 1969 में महाराजा अग्रसेन इंटर कालेज में नियुक्त हुए थे। मैं भी महाराजा अग्रसेन इंटर कालेज में ही पढ़ता था किंतु मैं जून 1969 में इंटरमीडिएट पास करके कालेज छोड़ चुका था।
श्री मिश्र जी की पटल पर उपलब्ध सामग्री से उनके भीतर के श्रेष्ठ कथाकार का परिचय मिलता है। उनकी कहानियां अधिकांशतः प्रेम व रोमांस पर आधारित हैं, ज्यादातर कहानियों में प्रेम त्रिकोण की परिस्थितियों को मूर्तरूप दिया गया है।
कहानी मन की पीर भी शुरू तो हुई थी एक ऐसे पिता की व्यथा से जिसने अपने बच्तों को लायक बनाने हेतु अपना सर्वस्व लगा दिया था और अपना बुढ़ापा पुत्रों की उपेक्षा के बीच एकाकी काट रहा था, उसी मोड़ पर उन्हें युवावस्था का वह प्यार मिला जो परवान नहीं चढ़ सका था और दोनों ने अलग अलग गृहस्थी बसा ली थी,और कालांतर में फिर एकाकी हो गये थे, कहानी इसी मोड़ पर समाप्त हो गई थी। यदि यह कहानी वर्तमान काल में लिखी गई होती तो निश्चय ही दोनों का साथ दिखाकर सुखान्त कथा हो सकती थी, लेकिन जिस कालखंड में यह कथा लिखी गई थी तब समाज में ऐसे सुखांत की कोई कल्पना ही नहीं कर सकता था।
कहानी इंतजार भी विवाहेत्तर संबंधों के कारण पति द्वारा
प्रेमी की गोली मारकर हत्या करने तथा फलस्वरूप परिवार बिखर जाने पर आधारित है।
ये सभी कहानियां अपने आस पास की सामाजिक परिस्थितियों पर आधारित महसूस होती हैं सभी कहानियों में तारतम्य बना रहता है और पाठक जब पढ़ना शुरू करता है तो अंत तक पढ़कर ही छोड़ता है, यही उनकी लेखनी की खूबी है।
श्री मिश्र ने कविताएं भी लिखी हैं और एक काव्य संग्रह 'विस्मृतियां' भी प्रकाशित हुआ है। कहानियों की तरह उनकी कविताएं भी प्रेम पर ही आधारित हैं।
उनकी कविताओं की कुछ पंक्तियां देखें:
प्रणय का हर पात्र ही परमात्मा है,
सृष्टि में कोई नहीं पापात्मा है,
आत्माएं मैं मिलाना चाहता हूँ,
इस उमर में प्यार करना चाहता हूँ,
असफल प्रेम उनकी कविताओं में भी परिलक्षित होता है:
यह यौवन का मधुमास नया, नाम तुम्हारे कर दूँगा,.
लेकिन कुछ अड़चन ऐसी थी, राहों में था अनजानापन,
जिनके कारण जो कुछ चाहा, तुमने वह कुछ भी न माना,
उनके रचनाकर्म तो देखकर यह कहना अनुचित न होगा कि मूलतः मिश्र जी प्रेम को अभिव्यक्त करने वाले सशक्त हस्ताक्षर थे। प्रेम की विसंगतियां, असफल प्रेम और विवाहेत्तर संबंधों पर उन्होंने निस्संकोच अपनी लेखनी चलाई थी, जो उस समय के सामाजिक वातावरण की दृष्टि से निश्चय ही पाठकों के दिलो दिमाग को प्रभावित करने में सक्षम थीं। उनकी सभी कहानियां इतनी अच्छी हैं कि प्रत्येक कहानी पर फिल्म बनाई जा सकती है।
इन्हीं शब्दों के साथ मैं श्री मिश्र को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।
साथ ही साहित्यिक मुरादाबाद समूह के प्रशासक डाक्टर मनोज रस्तोगी जी का भी ह्रदय से धन्यवाद करता हूँ, क्योंकि उन्हीं के सार्थक प्रयासों से हम श्री मिश्र के व्यक्तित्व व कृतित्व से परिचित हो सके।
श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद (उ.प्र.)
भारत।
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